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क्या रूसी सेना की ताकत का गलत आकलन किया गया?

मियोद्राग सोरिच
३० सितम्बर २०२२

यूक्रेन पर हमला करने से पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को लगता था कि वो यूक्रेन को बहुत जल्दी और आसानी से जीत लेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. रूस की सेना वास्तव में कितनी मजबूत है?

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कितनी ताकतवर है रूस की सेना
रिजर्व सैनिक युद्ध लड़ने के लिये अच्छी तैयारी में नहीं हैंतस्वीर: AP/dpa/picture alliance

सोवियत संघ के पतन के बाद रूस ने खुद को सुपरपावर बनाए रखने की हर संभव कोशिश की. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता बनाए रखना भी उन्हीं कोशिशों में से एक थी. जब यह स्पष्ट हो गया कि रूस एक आर्थिक महाशक्ति होने का दावा नहीं कर सकता तो उसने खुद को सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश की.

दशकों से रूस की सेना को दुनिया की सबसे मजबूत सेनाओं में से एक समझा जाता रहा है. एक परमाणु हथियार संपन्न सेना के तौर पर. दुनिया इस बात को हर समय याद रखे, इसके लिए राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन लगातार सेना की परेड और सैन्य अभियान कराते रहते हैं.

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हालांकि रूसी सेना वास्तव में कितनी ताकतवर है, इसका पता रेड कार्पेट पर नहीं बल्कि युद्ध के मैदान में लगता है. यूक्रेन युद्ध ने रूस की सेना की सारी पोल खोलकर रख दी है. अब तो यूक्रेन में रूस की सेना बहुत छोटी दिख रही है. यह कैसे हो सकता है?

पुतिन की सेना कितनी बड़ी है?

जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स से जुड़ी मार्गरेट क्लीन के मुताबिक, दस्तावेजों पर रूस की सशस्त्र सेना का दावा है कि उनके पास करीब दस लाख सैनिक हैं और आने वाले दिनों में इनकी संख्या 11 लाख तक पहुंच जाएगी. हालांकि डीडब्ल्यू से बातचीत में मार्गरेट क्लीन कहती हैं कि रूसी सेना की वास्तविक स्थिति इस दावे से काफी कम है.

रूसी सेना की ताकत का आकलन क्या बढ़ा चढ़ा कर हुआ
रूसी सेना की ताकत दिखाने के लिये पुतिन उनकी परेड करवाते हैंतस्वीर: AP

वो बताती हैं कि सीमा पर तैनाती योग्य रूसी सेना की ज्यादातर टुकड़ियों को यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल कर लिया गया है, "सैनिकों की संख्या के लिहाज से रूसी सेना का बहुत नुकसान हुआ है. बहुत से सैनिक या तो मारे गए हैं या फिर घायल हैं.”

घायलों की सही संख्या बता पाना मुश्किल है लेकिन अमरीकी खुफिया विभाग को लगता है कि लाखों की संख्या में रूसी सैनिक या तो मारे गये हैं या घायल हैं.

अमेरिकी थिंक टिंक, इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर से जुड़े जॉर्ज बेरोस कहते हैं कि यह धारणा सच्चाई से कोसों दूर है कि रूस के पास सीमा पर तैनात किये जाने योग्य असंख्य रिजर्व सैनिक हैं. वो आगे कहते हैं कि युद्ध का इतना लंबा खिंचना यह साबित करता है कि वैश्विक समुदाय ने रूसी सेना की ताकत के बारे में जरूरत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर अनुमान लगाया था. वो कहते हैं कि पुतिन की हालिया आंशिक लामबंदी की कोशिशें बताती हैं कि तमाम नुकसानों के बाद भी वो किसी तरह अपनी अहमियत को बनाये रखना चाहते हैं.

बिना प्रशिक्षण और हथियारों के मोर्चे पर भेजना

रूसी सैन्य ताकत की स्थिति को इस बात से भी समझा जा सकता है कि मौजूदा समय में वहां किस तरह से लोगों को भर्ती किया जा रहा है और मोर्चे पर भेजा जा रहा है. बेरोस कहते हैं, "ऐसे लोग भी मोर्चे पर भेजे जा रहे हैं जो पचास साल के हैं और सेहत की दृष्टि से भी फिट नहीं हैं.” ऐसी बातों की पुष्टि सोशल मीडिया पर पोस्ट की जा रही तमाम कहानियों ओर वीडियो से भी होती है.

बेरोस आगे कहते हैं किरिजर्व सैनिकों की तैनाती के लिए जरूरी है कि वो युद्ध के मोर्चे पर भेजे जाने से पहले अच्छी तरह से प्रशिक्षित हों और उनके पास हथियार हों. फिलहाल इन सैनिकों को महज एक या दो महीने के प्रशिक्षण के बाद ही भेजा जा रहा है. यहां तक कि तमाम लोगों को तो बिना किसी प्रशिक्षण और हथियार के ही भेज दिया जा रहा है. बेरोस के मुताबिक, ये स्थितियां यही बता रही हैं कि मरने वाले सैनिकों की संख्या कितनी ज्यादा है.

यूक्रेन पर रूस का हमला
रूस ने यूक्रेन के इलाकों को अपना राज्य घोषित कर दिया है

अमेरिका स्थित रूसी सुरक्षा विशेषज्ञ पावेल लुजिन के मुताबिक, यूक्रेन कभी युद्ध से नहीं भागेगा, भले ही पुतिन के कुछ वफादार लोग यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में जनमत संग्रह कराते रहें. वो आगे कहते हैं कि रूस का शस्त्र उद्योग इतने कम समय में इतनी ज्यादा संख्या में सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं है. मार्गरेट क्लीन कहती हैं कि रूसी सैनिक अब उन पुराने हथियारों और गोलियों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो सोवियत यूनियन के समय की रखी हुई हैं.

यह भी साफ नहीं है कि स्टोरेज में रखे गए कितने हथियार भ्रष्टाचार के तहत पहले ही बेचे जा चुके हैं और जो हैं भी वो कितने कारगर हैं? क्लीन कहती हैं कि रूसी शस्त्र उद्योग के पास ऊंची गुणवत्ता के हथियार और स्पेयर पार्ट्स के लिए जरूरी माइक्रोचिप्स का भी अभाव है.  

रूस के हित में फिलहाल एक ही बात दिखती है- उसकी बड़ी जनसंख्या, जिन्हें अपनी मर्जी से सेना में भर्ती किया जा सकता है. हालांकि, बेरोस कहते हैं कि किसी सेना को सफल होने के लिए सैनिकों की संख्या से ज्यादा और चीजों की भी जरूरत होती है. सेना को आधुनिक हथियार, अच्छे प्रशिक्षण, नेतृत्व, प्रेरणा और सैन्य साजो-सामान की भी जरूरत होती है.

वो कहते हैं, "मोर्चे पर बहुत से लोगों को खड़ा कर देने से रूस के लोगों की किसी समस्या का हल नहीं निकले वाला है. अच्छी तरह प्रशिक्षित और हथियारों से लैस भाड़े की सेना भी मनचाहा प्रभाव नहीं दिखा पाती.”

पश्चिमी देशों को परणामु हथियारों का भय दिखाना

विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बात करने का मतलब सिर्फ पश्चिमी देशों को डराना भर है. क्लीन कहती हैं, "यह धमकी कोई नई नहीं है. इसका लक्ष्य सिर्फ यूक्रेन को मिल रहे पश्चिमी देशों के समर्थन को कमजोर करना है.”

रूस की सेना वास्तव में कितनी ताकतवर है
पुतिन पश्चिमी देशों को परमाणु हथियारों का डर दिखा रहे हैंतस्वीर: Sefa Karacan/AA/picture alliance

सैन्य दृष्टिकोण से देखें तो परमाणु हथियारों से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है. राजनीतिक रूप से उनका कुछ इस्तेमाल किया जा सकता था लेकिन क्लीन का मानना है कि परमाणु हथियारों की तैनाती की संभावना नहीं के बराबर है क्योंकि ऐसा करने से रूस, चीन और भारत जैसे अपने अहम सहयोगियों का समर्थन भी खो सकता है.

हालांकि वॉशिंगटन स्थित काटो इंस्टीट्यूट के टेड ग्लेन कार्पेंटर का कहना है, ‘यदि पुतिन को परमाणु हथियार के इस्तेमाल या फिर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में युद्ध अपराध का सामना करने में से किसी एक विकल्प को चुनना हो तो वो परमाणु हथियार के विकल्प को ही चुनेंगे.'

कार्पेंटर कहते हैं कि पुतिन अब भी चाहते हैं कि युद्ध जल्दी खत्म हो जाए और यदि यूक्रेन और पश्चिमी देश वार्ता में दिलचस्पी दिखाते हैं तो बहुत संभव है कि रूस वार्ता की मेज पर आ जाए.

दूसरी ओर, क्लीन, बेरोस और लुजिन जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध तभी समाप्त हो सकता है जब या तो पश्चिमी देश यूक्रेन का साथ छोड़ दें या फिर पुतिन पूरी तरह से हार जाएं.