संत रविदास जयंती पर दलित वोट पाने की होड़
१६ फ़रवरी २०२२16 फरवरी को भारत के कई राज्यों में भक्तिकाल के संत-कवि रविदास की जयंती मनाई जाती है. दलित संत रविदास को अपना गुरु मानते हैं और इस वजह से राजनीतिक पार्टियां गुरु की जयंती को दलित मतदाताओं को लुभाने के आकर्षक मौके के रूप में देखती हैं.
इस साल जयंती पंजाब और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में होने वाले विधान सभा चुनावों के बीच में आई है. लिहाजा पार्टियों के बीच इस दिन का अधिकतम राजनीतिक लाभ उठाने की होड़ लगी हुई है.
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कहीं लंगर तो कहीं कीर्तन
15 फरवरी को जयंती से ठीक एक दिन पहले दिल्ली सरकार ने रविदास जयंती पर दिल्ली में सरकारी छुट्टी की घोषणा कर दी. इसके अलावा दिल्ली में सत्तारूढ़ 'आप' के उत्तर प्रदेश प्रभारी संजय सिंह बनारस के पास संत रविदास की जन्म स्थली पर गए और माथा टेका.
कांग्रेस नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी भी वहां गए और प्रार्थना की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मौके पर दिल्ली के श्री गुरु रविदास विश्राम धाम मंदिर गए और वहां कीर्तन में भाग लिया.
कुछ लोग रविदासी पंथ को सिख धर्म के अंदर ही एक सम्प्रदाय मानते हैं और लेकिन संत रविदास के अनुयायी कहते हैं कि उन्हें सिख धर्म में आस्था तो है लेकिन उनका पंथ एक अलग ही धर्म है. राजनीतिक रूप से रविदासिया लोगों की एक बड़ी भूमिका है.
पंजाब की दलित राजनीती
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पंजाब में वो लोग राज्य की करीब 32 प्रतिशत दलित आबादी का हिस्सा हैं. दोआबा इलाके की आबादी में तो लगभग 38 प्रतिशत दलित हैं. इसी इलाके में जालंधर के पास डेरा सचखंड बल्लां का मुख्यालय स्थित है. यह डेरा रविदासिया लोगों का सबसे बड़ा संगठन है जिसके अनुयायी और इकाइयां पूरी दुनिया में फैली हुई हैं.
बनारस के पास संत रविदास की जन्मस्थली पर उनका मंदिर इसी डेरा ने बनवाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहां 2016 और 2019 में गए थे. इस तरह रविदासिया लोगों के पावन स्थलों पर और कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पार्टियां दलित वोट का एक बड़ा हिस्सा पाने की अभिलाषा रखती हैं.
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इस बार चन्नी के रूप में पंजाब के इतिहास में पहला दलित मुख्यमंत्री नियुक्त करने के बाद कांग्रेस को दलित वोट का प्रबल दावेदार माना जा रहा है. इसके विपरीत 'आप' के मुख्यमंत्री पद के दावेदार भगवंत मान जाट सिख परिवार से हैं.
बीजेपी के पास राज्य में कोई भी बड़ा दलित चेहरा नहीं है. अकाली दल ने दलित वोट हासिल करने के लिए मायावती की बसपा से गठबंधन किया हुआ है. ऐसे में दलित वोट किसको मिलेगा और उससे पार्टियों की जीत-हार पर कितना असर पड़ेगा, यह देखना होगा.