कोरी कल्पना है तेल से दूरी की उम्मीदः ओपेक
२५ सितम्बर २०२४तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने कहा है कि पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना "एक कल्पना" है. सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस समूह ने भविष्यवाणी की है कि तेल की मांग कम से कम 2050 तक बढ़ती रहेगी, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण साल है.
तेल संगठन की यह भविष्यवाणी पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के आकलन के उलट है. आईईए का अनुमान है कि इस दशक में जीवाश्म ईंधनों की मांगअपने शिखर पर पहुंच जाएगी, क्योंकि दुनिया नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ रही है.
ओपेक की वार्षिक विश्व तेल संभावना (डब्ल्यूओओ) रिपोर्ट में, संगठन के महानिदेशक हैथम अल गाएस ने कहा कि आज ऊर्जा स्रोतों में तेल और गैस की हिस्सेदारी आधे से ज्यादा है और "2050 तक भी ऐसा ही रहने की उम्मीद है."
कई दशकों तक बढ़ेगी तेल की मांग
गाएस ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा, "जो संभावना सामने आई है, वह दिखाती है कि तेल और गैस को समाप्त करने की कल्पना का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है. मांग में वृद्धि का असलियत के करीब अनुमान बताता है कि आज, कल और आने वाले कई दशकों तक तेल और गैस में निवेश की जरूरत है."
रिपोर्ट में कहा गया कि केवल तेल की मांग 2050 तक 120.1 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2023 में 102.2 मिलियन बैरल प्रति दिन से 17.5 प्रतिशत अधिक है.
ओपेक ने 2045 के लिए अपने पूर्वानुमान को भी बढ़ाकर 118.9 मिलियन बैरल प्रति दिन कर दिया, जबकि पिछले साल की रिपोर्ट में इसे 116 मिलियन बैरल प्रति दिन बताया गया था, जिसमें 2050 का आकलन नहीं किया गया था.
गाएस ने कहा, "तेल की मांग में किसी भी प्रकार की कमी भविष्य में दिखाई नहीं देती."
तेल की खपत में लंबे समय तक वृद्धि ओपेक के लिए एक सकारात्मक संकेत होगी, जिसके 12 सदस्य देश तेल से होने वाली आय पर निर्भर हैं. अपनी इस धारणा के समर्थन में, ओपेक ने कई अंतरराष्ट्रीय कार कंपनियों द्वारा अपने इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने के लक्ष्यों को कम करने की योजनाओं का हवाला दिया.
पर्यावरण के लक्ष्यों के उलट
संयुक्त राष्ट्र के कॉप 28 जलवायु शिखर सम्मेलन में पिछले साल सदस्य देशों ने 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए "जीवाश्म ईंधनों से दूर जाने" के लक्ष्य पर सहमति जताई थी. इस सम्मेलन की मेजबानी ओपेक सदस्य संयुक्त अरब अमीरात ने की थी. इस ऐतिहासिक समझौते में 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का भी आह्वान किया गया था.
यह समझौता तब हुआ था जब ओपेक ने अपने सदस्यों से आग्रह किया था कि वे उस भाषा को अस्वीकार करें, जो जीवाश्म ईंधनों को "निशाना" बनाती है, क्योंकि पहले के मसौदे में "फेज आउट" यानी ‘चरणबद्ध तरीके से समाप्ति' को शामिल किया गया था.
मंगलवार को जारी ओपेक की रिपोर्ट कहती है, "हालांकि ऊर्जा नीति की महत्वाकांक्षाएं ऊंची बनी हुई हैं, लेकिन संभावना यह है कि कुछ अत्यधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को लेकर नीति निर्माता और जनता दोनों विरोध करेंगे. यह स्पष्ट है कि ऊर्जा सुरक्षा अब भी एक प्रमुख चिंता बनी हुई है."
रिपोर्ट में कहा गया कि मांग वृद्धि विश्व जनसंख्या में बढ़ोतरी और भारत तथा अन्य गैर-विकसित देशों से बढ़ती मांग के कारण हुई है. क्षेत्रों में सबसे मजबूत मांग पेट्रोकेमिकल्स, सड़क परिवहन और विमानन से आएगी.
अक्षय ऊर्जा भी बढ़ेगी
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि "कोयले को छोड़कर सभी ऊर्जा स्रोतों" को विस्तार की जरूरत है. हालांकि ओपेक जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का विरोध करता है, लेकिन उसकी रिपोर्ट में यह कहा गया कि नवीकरणीय ऊर्जा, खासकर सौर और पवन ऊर्जा की मांग 2023 से 2050 तक सबसे तेज गति से बढ़ेगी. रिपोर्ट में इसमें पांच गुना वृद्धि का अनुमान जाहिर किया गया है.
लेकिन तेल 2050 में भी ऊर्जा स्रोतों में सबसे बड़ा हिस्सा बनाए रखेगा, जो 29.3 प्रतिशत होगा, जबकि पिछले साल यह 30.9 प्रतिशत था. प्राकृतिक गैस कोयले को पीछे छोड़कर दूसरा स्थान हासिल करेगी और ऊर्जा स्रोतों में सदी के मध्य तक इसकी 24 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी. नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा पिछले साल के 3.2 प्रतिशत से बढ़कर 2050 में 14 प्रतिशत हो जाएगा. कोयला फिलहाल बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है.
हालांकि रिपोर्ट में संभावना जताई गई है कि पेट्रोल से चलने वाले वाहन सड़क परिवहन में "प्रभुत्व बनाए रखेंगे".
आईईए का अलग अनुमान
ओपेक के आंकड़े आईईए के अनुमानों के उलट हैं. आईईए अपने सदस्य देशों, खासकर पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों को ऊर्जा नीति पर सलाह देती है. आईईए के कार्यकारी निदेशक फातिह बिरोल ने पिछले हफ्ते कहा था कि तेल की मांग धीमी हो रही है. उन्होंने इलेक्ट्रिक कारों के बढ़ते उपयोग और चीनी अर्थव्यवस्था की कमजोरी को तेल की मांग में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया था.
बिरोल ने कहा, "स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तन तेजी से हो रहा है और कई लोग इसकी गति को महसूस नहीं कर पा रहे हैं."
लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि "जब तक जीवाश्म ईंधनों से दूरी नहीं बनाई जाएगी, तब तक आप कभी भी" पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे.
तेल कंपनी बीपी का अनुमान है कि 2025 में तेल की खपत शिखर पर पहुंचेगी और 2050 तक यह घटकर 75 मिलियन बैरल प्रति दिन हो जाएगी. एक्सॉन मोबिल का अनुमान है कि 2050 तक तेल की मांग 100 मिलियन बैरल प्रति दिन से ऊपर रहेगी, जो आज के स्तर के समान है.
वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)