इस्राएल की सत्ता में वापसी की ओर बेन्यामिन नेतन्याहू
२ नवम्बर २०२२बुधवार को उत्साह से भरे लिकुड पार्टी के समर्थकों की एक रैली में नेतन्याहू ने कहा, "हम बड़ी जीत के करीब हैं." हालांकि उनके प्रतिद्वंद्वी और कार्यवाहक प्रधानमंत्री याइर लापिड ने तेल अवीव में अपने समर्थकों से कहा, "अभी कुछ तय नहीं है, आम अंतिम नतीजों का धैर्य के साथ इंतजार करेंगे." अंतिम नतीजे शुक्रवार तक आने की उम्मीद है.
दोनों प्रतिद्वंद्वी 120 सदस्यों वाली संसद में बहुमत के लिए दम ठोंक रहे हैं. बीते चार सालों में पांचवीं बार चुनाव के बाद शुरुआती नतीजों में नेतन्याहू का खेमा आगे नजर आ रहा है.
धुर दक्षिणपंथियों का समर्थन
पूर्व प्रधानमंत्री नेतन्याहू धुर दक्षिणपंथी रेलिजियस जियोनिस्म के इतमार बेन ग्विर का समर्थन मिलने से काफी उत्साहित हैं. इस पार्टी ने इन चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है और वह देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है.
73 साल केनेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आरोपों में मुकदमेका सामना कर रहे हैं. हालांकि उनके लिए चुनाव नतीजे के शुरुआती संकेत आशाजनक हैं. आधिकारिक तौर पर नेतन्याहू की लिकुड पार्टी 31 सीटें जीतने की ओर बढ़ रही है. इसके साथ वह पहले नंबर पर है. इसमें अगर गठबंधन में शामिल पार्टियों की सीटें जोड़ दी जायें तो आंकड़ा 65 पर पहुंच जा रहा है. अगर यह बढ़त कायम रही तो उनकी जीत देश में लापिड के नेतृत्व में चल रहे आठ पार्टियों की गठबंधन सरकार का दौर खत्म हो जायेगा. लापिड की येश आतिद पार्टी दूसरे नंबर पर है और उसे 24 सीटें मिलती दिख रही हैं.
धुर दक्षिणपंथी नेता इतमार बेन ग्विर नेतन्याहू की सत्ता में वापसी के मुख्य सूत्रधार होंगे. उनकी रिलिजियस जियोनिज्म पार्टी ने 14 सीटें जीतने की ओर बढ़ रही है. बेन ग्विर चाहते हैं कि इस्रायल पूरा पश्चिमी तट अपने कब्जे में ले ले. इस्राएल की राजनीति में उनका प्रभाव देश में सुरक्षा को लेकर चिंता के बीच बढ़ा है.
इस्राएल के प्रमुख अखबार येडियोत अहारोनोत के पहले पन्ने की हेडलाइन है, "नेतन्याहू निर्णायक जीत चाहते हैं, लापिड को ड्रॉ की उम्मीद, बेन ग्विर जश्न मना रहे हैं." हालांकि छोटी पार्टियां भी इस मुकाबले में अहम भूमिका निभा सकती हैं क्योंकि दोनों प्रमुख दलों के बीच जीत का अंतर मामूली रहने के आसार हैं. वोटों की गिनती में कभी भी पलड़ा दूसरी ओर झुक सकता है.
तेल अवीव यूनिवर्सिटी में राजनीति पढ़ाने वाले याइल शोमर का कहना है, "कुछ हजार वोट भी" सीटों पर असर डाल सकते हैं और नतीजा पलट जायेगा.
भारी मतदान
राजनीतिक गतिरोध के माहौल में वोटरों की हताशा को लेकर काफी आशंकायें उठ रही थीं हालांकि 71.5 फीसदी वोटिंग ने उन सब पर विराम लगा दिया.2015 के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने वोट डाला है. चुनाव ऐसे समय में हुए हैं जब इस्राएली कब्जे वाले पूर्वी येरुशलम और पश्चिमी तट में काफी हिंसा हुई. अक्टूबर महीने में यहां 29 फलीस्तीनी और तीन इस्राएली लोगों की मौत हुई है. वोटों की गिनती शुरू होने वाले दिन भी इस्राएली सैनिकों ने एक फलीस्तीनी को मार दिया. कहा जा रहा है कि उसने एक इस्राएली सैनिक को बुरी तरह घायल कर दिया था.
बहुत से उम्मीदवारों ने सुरक्षा स्थिति को लेकर चिंता जताई लेकिन किसी ने भी फलीस्तीनी लोगों के साथ शांतिवार्ता दोबारा शुरू करने का भरोसा नहीं दिया. फलीस्तीनी प्रधानमंत्री मोहम्मद शतायेह का कहना है कि इस चुनाव के नतीजों ने, "इस्राएली समाज में बढ़ते चरमपंथ और नस्लवाद को" की ओर ध्यान दिलाया है.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)