नेपाल से बिहार तक बाढ़ का हाहाकार
नेपाल की भारी बारिश का असर भारत के बिहार में भी बाढ़ की तबाही के रूप में दिख रहा है. नेपाल में कम से कम 200 लोगों की जान जा चुकी है. वहीं, बिहार के दो दर्जन से ज्यादा जिले और लाखों लोग बाढ़ की चपेट में हैं.
नेपाल में बरसात और बाढ़ से तबाही
नेपाल में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के कारण अब तक 209 लोगों की मौत हो चुकी है. समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, 29 लोग अब भी लापता हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में राजधानी काठमांडू भी है, जहां इस साल पिछले दो दशक की सबसे मूसलधार बरसात दर्ज की गई. भूस्खलन के कारण हाई-वे बंद हो गए और काठमांडू का संपर्क बाकी देश से कट गया. काठमांडू के पास एक सड़क धंसने से कम-से-कम 35 लोग जिंदा दफन हो गए.
फिर बाढ़ की चपेट में बिहार
बिहार एक बार फिर बाढ़ की चपेट में है. नेपाल की तराई में हुई भारी वर्षा से राज्य के 16 जिले बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं. लाखों की आबादी बाढ़ का कहर झेल रही है, वहीं हजारों एकड़ में लगी फसल को नुकसान पहुंचा है. कोसी और गंडक नदी में पानी के रिकॉर्ड डिस्चार्ज से स्थिति विकराल हो गई है. राज्य सरकार ने 20 जिलों में अलर्ट जारी किया है.
टूट गए बांध
29 सितंबर को सीतामढ़ी, शिवहर एवं दरभंगा में छह जगहों पर तटबंध टूटने तथा पश्चिम चंपारण में एक सुरक्षा बांध टूट गया है. 1 अक्टूबर तक नेपाल से आने वाला पानी मैदानी इलाकों में फैलेगा, जिससे स्थिति और गंभीर होने की संभावना है. स्थिति को देखते हुए राज्य में एसडीआरएफ की 22 टीम लोगों को बचाने में जुटी है. एनडीआरएफ की छह टीम को रांची तथा वाराणसी से बुलाया गया है.
कई इलाकों के लिए चेतावनी जारी
बाढ़ का पानी लगातार नए इलाकों में फैल रहा है, वहीं सोमवार को पांच जिलों में बारिश का अलर्ट जारी किया गया है. सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्वी व पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सीवान, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्णिया तथा मधुबनी में बाढ़ का कहर ज्यादा है. अगर पानी अभी से उतरना भी शुरू करेगा तो कम से कम इसमें 72 घंटे से अधिक का समय लगेगा.
राहत की कोशिशें
जगह-जगह बाढ़ प्रभावित लोग सुरक्षित स्थान की तलाश में पलायन कर रहे हैं. कई जगह लोग अपना घर-बार छोड़कर सड़क पर रह रहे हैं. लोगों को बाढ़ व बारिश दोनों का डर सता रहा है. सरकार की तरफ से उन्हें फौरी राहत दी जा रही है, फिर भी लोगों के समक्ष दो वक्त की रोटी के लाले हैं. खासकर, छोटे बच्चों को लेकर काफी परेशानी है.
इसी बीच चल रही है मरम्मत
राज्य की कई नदियों में पानी के तेज प्रवाह से कई जगह तटबंधों पर दबाव बना हुआ है. कहीं-कहीं इससे पानी का रिसाव भी हो रहा है. प्रशासन के लोग मरम्मत में लगे हैं, ताकि उसे टूटने से बचाया जा सके. जानकार बताते हैं कि तटबंध टूटने से ही हालात और बुरे हो जाते हैं. नदियों को जोड़ने की योजना पर काम होता तो स्थिति इतनी बदतर नहीं होती. आज बिहार की 75 प्रतिशत आबादी पर बाढ़ का खतरा मंडराता रहता है.
कोसी, गंडक उफान पर
कोसी बराज से 56 सालों में दूसरी बार एक दिन में (28 सितंबर को) सबसे अधिक 6.81 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है. इससे पहले 1968 में 7.88 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था. पानी के प्रवाह को देखते हुए बराज के सभी 56 फाटक खोल दिए गए हैं. वाल्मीकिनगर के गंडक बराज से भी 21 साल बाद जितना पानी छोड़ा गया, वह 2003 में छोड़े गए पानी से थोड़ा ही कम है. इस बार यहां से छह लाख क्यूसेक पानी डिस्चार्ज किया गया है.
खतरे के निशान से ऊपर गई गंगा
बिहार की राजधानी पटना में भी गंगा का जलस्तर बढ़ रहा है. शहर के निचले इलाके पानी की चपेट में हैं. गंडक, बागमती, गंगा, दरधा, कोसी, अधवारा, कमला बलान, महानंदा, परमान, कनकई, घाघरा व लखनदेई खतरे के लाल निशान से ऊपर हैं. गंडक नदी पश्चिम चंपारण से वैशाली तक, कोसी सुपौल से खगड़िया तक और महानंदा किशनगंज से कटिहार तक तेजी से बढ़ रही है.
कैसे होंगे अगले कुछ दिन
मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार अगले सात दिनों तक मानसून लौटने की उम्मीद नहीं है. हालांकि, बारिश की रफ्तार कम हो रही है. स्थिति को देखते हुए जानकार फरक्का बराज के सभी फाटक को खोलना आवश्यक बता रहे हैं. वहां फाटक खोलने पर बांग्लादेश आपत्ति करेगा और अगर वहां फाटक नहीं खुला बिहार के गांगेय क्षेत्र में और तबाही मचेगी.
सामान्य नहीं है ऐसी चरम बरसात
जून से सितंबर के बीच मॉनसून के दौरान मूसलधार बारिश आम है. इन चार महीनों में ही साल की 70 से 80 फीसद बारिश हो जाती है, जो खेती के लिए जरूरी है. मगर जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाएं और विकराल होती जा रही हैं. एएफपी ने एक जलवायु विशेषज्ञ अरुण भक्त श्रेष्ठ के हवाले से बताया है कि नेपाल में हालिया बरसात असमान्य और चरम घटना है.