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एनसीआरबी: खुदकुशी करने वालों में सबसे अधिक दिहाड़ी मजदूर

३१ अगस्त २०२२

एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक साल 2021 में भारत में आत्महत्या करने वाले लोगों में सबसे अधिक दिहाड़ी मजदूर, स्वरोजगार से जुड़े और बेरोजगार लोग शामिल थे.

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महामारी के बाद रोजगार के अवसर और कम हुए
महामारी के बाद रोजगार के अवसर और कम हुएतस्वीर: Reuters/R. Roy

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में आत्महत्या से मरने वाले कुल 1,18,970 पुरुषों में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 37,751 थी, जो खुदकुशी करने वाले लोगों में सबसे अधिक है. इसके बाद 18,803 स्वरोजगार से जुड़े लोग और 11,724 बेरोजगार खुदकुशी करने वालों में थे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2021 के दौरान देश में कुल 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की. इनमें सबसे ज्यादा पुरुष (1,18,970) और महिलाएं (45,026) थीं.

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2021 में बढ़ी भारत की आत्महत्या दर

साल 2020 में भी आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर, स्वरोजगार और बेरोजगार थे, ताजा रिपोर्ट भी लगभग यही तस्वीर पेश करती है. साल 2020 में कुल 1,53,052 लोगों ने खुदकुशी की थी.

कोरोना के कारण लोगों की आय में कमी आई
कोरोना के कारण लोगों की आय में कमी आईतस्वीर: Aamir Ansari/DW

इस रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या के मामलों में साल 2021 में 2020 की तुलना में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या एक चौथाई को पार कर गई है.

कोविड महामारी से पहले 2019 में भारत में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की थी. इनमें दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 32,563 यानी 3.4 प्रतिशत थी.

एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कृषि क्षेत्र से संबद्ध 10,881 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 5,318 किसान और 5,563 खेत मजदूर थे. 5,318 किसान में से 5107 पुरुष और 211 महिलाएं थीं. वहीं 5,563 खेत मजदूरों में से 5,121 पुरुष और 442 महिलाएं थीं. ऐसे में अगर उन्हें भी दिहाड़ी मजदूरों में शामिल कर लिया जाए तो आत्महत्याओं का औसत और भी ज्यादा बढ़ जाएगा.

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कोविड महामारी के कारण आय में कमी

विशेषज्ञों का कहना है कि हाल के दिनों में और खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में अमीर और गरीब के बीच की खाई काफी बढ़ी है. गरीब पहले से ज्यादा गरीब हो गया है जबकि अमीरों की संपत्ति कई गुना बढ़ गई.

विभिन्न आधिकारिक और गैर-आधिकारिक रिपोर्टों के मुताबिक पिछले दो वर्षों के दौरान भारत में अधिकांश परिवारों की आय में काफी कमी आई है और वे गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

दिल्ली की जेएनयू में सामाजिक विज्ञान पढ़ाने वाली प्रोफेसर अनामित्रा रॉय चौधरी ने कहा, "आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप नौकरियां कम हो रही हैं जबकि श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है. इससे दिहाड़ी मजदूरों के लिए श्रम बाजार पर भारी बोझ पड़ा है. बाजार में सभी श्रमिकों को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं हैं. दिहाड़ी मजदूरों को कठोर कदम उठाने को मजबूर किया जा रहा है."

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