मधुमक्खियों की गुनगुनाहट में छिपा अनोखा हथियार
मधुमक्खी का मतलब बस शहद नहीं है. ये नन्हे जीव शायद कुदरत की सबसे अहम और मेहनती किसान हैं. कुदरत की इस अद्भुत आर्किटेक्ट के पास एक बेजोड़ हथियार भी है, जो उन्हें हमलावरों से बचाता है और जीने में भी बड़ा काम आता है.
गजब है कुदरत की लीला
एक कीड़ा होता है, हॉर्नेट. ये ततैया के परिवार का सदस्य है. ये हॉर्नेट मधुमक्खियों का शिकार करते हैं. इनका झुंड कुछ ही घंटों में मधुमक्खी के पूरे मुहल्ले को खत्म कर सकता है. लेकिन कुदरत भी कमाल है! जीवों के विकासक्रम में एशियाई मधुमक्खियों ने हॉर्नेट शिकारियों से निपटने की एक अनोखी तरकीब विकसित की. इस रणनीति में उनका हथियार बनती हैं दो चीजें: पहली, एकता. दूसरा हथियार, भनभनाहट.
मधुमक्खियों का सीक्रेट हथियार
अकेली मधुमक्खी, हॉर्नेट से नहीं निपट सकती. ना खुद को बचा सकती है. ऐसे में छत्ते की पूरी कॉलोनी "संगठन में शक्ति है" की राह चलती है. सारी मधुमक्खियां हॉर्नेट के शरीर से चिपककर गोलाकार सा बना लेती हैं.
तापमान नियंत्रित करने की काबिलियत
गोलाकार रचना में साथ जुड़कर सारी मधुमक्खियां भनभनाना शुरू करती हैं. ये कंपन इतनी तेजी से होता है कि उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगता है.
शिकार खुद यहां शिकार हो गया
चूंकि कंपन की ये प्रक्रिया समवेत होती है, तो मधुमक्खियों का बनाया वह गोला एक किस्म का अवन बन जाता है. इसके केंद्र में तापमान 45 से 46 डिग्री तक पहुंच जाता है और शिकार करने आया हॉर्नेट, खुद ही शिकार बन जाता है. हालांकि इस रणनीति में मधुमक्खियों के कुछ अपने सैनिक भी अपनी जान गंवाते हैं. लेकिन, उनका झुंड और छत्ता बच जाता है.
बड़े काम की चीज है एकता
स्तनधारी जीवों में आमतौर पर शरीर का तापमान दुरुस्त रखने की क्षमता होती है. जैसे हम इंसान. धूप-गर्मी में हमारा शरीर पसीना बहाता है, जिससे तापमान नियंत्रित करने में मदद मिलती है. लेकिन कीड़ों में ये क्षमता नहीं होती. ऐसे में मधुमक्खियां अपने झुंड को ताकत बनाती हैं और एक तरह का "सुपरऑर्गेनिजम" बन जाती हैं.
शानदार आर्किटेक्ट
हम भी चाहते हैं ना कि घर का तापमान सुहाना रहे. बाहर गर्मी हो, तो घर ठंडा रहे. बाहर ठंड हो, तो घर में गुनगुनी गर्माहट हो. इसके लिए कई देशों में घर की दीवारों को इंसूलेटेड बनाया जाता है. मधुमक्खियां भी कमाल की आर्किटेक्ट हैं. वो अपना छत्ता बखूबी इंसुलेट कर लेती हैं.
सावधानी से चुनती हैं घर बनाने की जगह
बच्चों की अच्छी तरह परवरिश के लिए उन्हें छत्ते में 33 से 36 डिग्री सेल्सियस का आदर्श तापमान चाहिए होता है. ऐसे में मधुमक्खियां बहुत देख-परखकर, सावधानी से घर बनाने की जगह चुनती हैं. आपने देखा होगा, उनका छत्ता किसी-न-किसी चीज की छांव में होता है. जैसे, किसी चट्टान के छांव वाले हिस्से में. या मोटी टहनी की छाया. या पेड़ की टहनियों-पत्तों की ओट.
कुदरती सीमेंट
मधुमक्खियां पौधों के रस, मोम और थूक जैसे अपने स्त्राव को मिलाकर एक चिपचिपी गोंदनुमा चीज प्रोपोलिस बनाती हैं. इसे वो छत्ता बनाते हुए परत की तरह इस्तेमाल करती हैं. इसकी मदद से छत्ते के अनचाहे छेदों को भरती हैं.
प्रोपोलिस एक, फायदे अनेक
प्रोपोलिस में फ्लेवोनॉइड्स नाम का एक सुरक्षात्मक तत्व भी होता है, जिसमें एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं. यह फंगस, बैक्टीरिया और नमी जैसी चीजों को बढ़ने से रोकता है. ये सारी चीजें छत्ते के भीतर आदर्श तापमान बनाए रखने में मददगार हैं. और इनके अलावा गर्माहट की जरूरत होने पर मधुमक्खियां एक-दूसरे से चिपककर खुद को, अपने साथियों और बच्चों को जरूरी गर्माहट भी देती हैं.
मधुमक्खियों के पास हीटर और एसी, दोनों है
छत्ते का ये प्राकृतिक इंसूलेशन, मधुमक्खियों का घरेलू हीटिंग सिस्टम है. जरूरत पड़ने पर वह खुद ही छत्ते का एयर कंडीशनर भी बना लेती हैं. जब बाहर लू के थपेड़े चलते हैं, तो मधुमक्खियां छत्ते को ठंडा रखने के लिए पानी जमा करती हैं. वो पानी की बूंदों को पूरे छत्ते में छितरा देती हैं और अपने पंख हिलाकर इसके छेदों से हवा फैलाती हैं. सोचिए, क्या अद्भुत जीव हैं ना मधुमक्खियां! कितनी काबिल, कितनी हुनरमंद!