प्रवासियों के संकट पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब
२७ मई २०२०सुप्रीम कोर्ट ने देश के अलग-अलग भागों में फंसे प्रवासी मजदूरों की हालत पर स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है. दो महीने से प्रवासी मजदूर काम ठप्प होने और वेतन नहीं मिलने का आरोप लगाते हुए अपने-अपने घरों की ओर लौट रहे हैं. मीडिया में भी प्रवासियों के लौटने से जुड़ी खबरें लगातार दिखाई जा रही हैं और उनके द्वारा कठिन परिस्थितियों का सामना किए जाने का भी जिक्र किया जा रहा है.
मंगलवार 26 मई को सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में फंसे प्रवासी मजदूरों की समस्या और उन पर आई विपत्ति को लेकर खुद से संज्ञान लिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा. अदालत ने यह भी कहा कि भले ही केंद्र और राज्य सरकारों ने इंतजाम किए हों लेकिन "अपर्याप्तता और कुछ खामियां" रहीं.
जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एमआर शाह की बेंच ने 28 मई तक इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है. एक अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बेंच ने यह भी कहा, "प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में आज भी सड़कों, राजमार्गों, रेलवे स्टेशनों और राज्य की सीमाओं पर फंसे हुए हैं. उन्हें केंद्र और राज्य सरकारें तुरंत पर्याप्त परिवहन व्यवस्था, शेल्टर और बिना शुल्क के भोजन-पानी उपलब्ध कराएं."
बेंच ने संज्ञान लेते हुए कहा, "अखबार में छपी रिपोर्ट और मीडिया रिपोर्ट में लगातार लंबी दूरी तक पैदल चलने और साइकिल से चलने वाले प्रवासी मजदूरों की दुर्भाग्यपूर्ण और दयनीय स्थिति दिखा रही है." अहमदाबाद के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और प्रवासियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले जगदीप छोकर ने अपने ट्वीट में लिखा है, "ऐसा लगता है कि स्वतः संज्ञान की कार्यवाही 21 वरिष्ठ वकीलों द्वारा लिखी गई चिट्ठी से उत्प्रेरित हुई है."
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लॉकडाउन की स्थिति में समाज के इसी वर्ग को सबसे ज्यादा मदद की जरूरत है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले भी प्रवासी मजदूरों की परेशानियों और हालत को लेकर कई याचिकाएं दाखिल की गई थी और ज्यादातर मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के प्रयास पर संतोष जाहिर किया था. सड़क हादसों के दौरान प्रवासी मजदूरों की मौत का मुद्दा भी सुप्रीम कोर्ट में उठ चुका है. उस दौरान सु्प्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच ने सॉलिसिटर जनरल के जवाब पर गौर करते हुए सरकार के इंतजाम पर संतोष जाहिर किया था. सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट में दावा किया था कि घर वापसी के लिए सड़क पर कोई भी मजदूर पैदल नहीं चल रहा है. इसके बाद कोर्ट ने मजदूरों की दिक्कतें दूर करने और उन्हें सुविधाएं मुहैया कराने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था.
उच्च न्यायालयों की भूमिका
कोरोना वायरस महामारी के बीच कई राज्यों के हाई कोर्ट ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को निभाते हुए कार्यपालिका पर एक तरह से नजरें बनाए रखी. गुजरात हाईकोर्ट ने कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन से जुड़े कई मुद्दे पर खुद से संज्ञान लिया. इसी तरह से कर्नाटक हाईकोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर खुद से संज्ञान लिया. हाई कोर्ट ने कर्नाटक सरकार से मुद्दे से जुड़े सवाल किए और टिप्पणी की. पिछले दिनों आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने भी प्रवासी मजदूरों के पैदल चलने को लेकर राज्य सरकार को निर्देश जारी किए थे. हाईकोर्ट ने कहा था कि पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों की हालत पर प्रतिक्रिया नहीं देता है तो वह अपनी भूमिका में विफल होगा. मद्रास हाईकोर्ट ने मजदूरों के पैदल चलने पर स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकार से 12 सटीक जानकारी मांगी थी. मद्रास हाईकोर्ट ने प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति को मानव त्रासदी बताया था.
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