मे, मैर्केल, क्लिंटनः महिला नेताओं का साल
१३ जुलाई २०१६अगर डॉनल्ड ट्रंप अचानक किसी तरह महत्वपूर्ण बढ़त ना बना लें, तो अब तक के सर्वेक्षण तो यही दिखाते हैं कि हिलेरी क्लिंटन का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना तय है. रॉयटर्स के ताजा इप्सोस पोल में क्लिंटन 11 प्वांइट से रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप के आगे दिख रही हैं.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का जर्मनी और यूरोप ही नहीं पूरे वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में बेहद अहम स्थान है. विश्व के दो कद्दावर नेताओं का नाम लिया जाए तो रूस के व्लादीमिर पुतिन ही मैर्केल के आस पास दिखते हैं.
यूरोप से ब्रिटेन के एक्जिट से उड़ी धूल जैसे जैसे बैठ रही है, नया नेतृत्व सामने आ रहा है. ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री के रूप में थेरेसा मे दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की मुखिया बनी होतीं, अगर ब्रेक्जिट के कारण उनकी मुद्रा में आई गिरावट ब्रिटेन को फ्रांस के पीछे ना ले जाती.
डेविड कैमरन की जगह लेने के लिए भी जिन दो उम्मीदवारों के नाम प्रमुखता से उभरे थे, वे दोनों ही महिलाएं थीं. फिर ऊर्जी मंत्री और पूर्व बैंकर एंड्रिया लेडसम रेस से हट गईं और उन्होंने सरकार प्रमुख के पद के लिए गृह सचिव थेरेसा मे को समर्थन दे कर उनका रास्ता साफ कर दिया. ब्रिटेन में 2020 से पहले अगले चुनाव नहीं होने हैं.
दूसरे पक्ष यानि विपक्षी लेबर पार्टी की ओर देखें, तो जेरेमी कॉर्बिन की जगह लेने वाला नेता एंजेला ईगल को माना जा रहा है. पार्टी में फैले व्यापक असंतोष के बावजूद केवल ईगल ही कॉर्बिन को चुनौती देती दिखती हैं. हालांकि कॉर्बिन अभी खुद पद छोड़ने को राजी नहीं हैं.
ये सभी महिलाएं ब्रिटिश राजनीति के सबसे क्रूर और निर्मम काल से उभर कर निकली हैं. इनमें से कोई भी प्रतीकात्मक नेता नहीं कहा जा सकता. कई ब्रिटिश राजनेताओं ने 23 जून के रेफरेंडम के बाद से अपनी कुर्सी और साख को गंवाया है. मैदान में सिर उठाए डटे रहने वाली ये नेता अब जिम्मेदारी उठाने को भी तैयार हैं.
गृह मंत्री रह चुकी थेरेसा मे ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर जितनी बांटने वाली भी साबित हो सकती हैं. गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने आप्रवासन पर सख्त रवैया अपनाया था. मे के आलोचक भी कहते हैं कि वे बेहद कड़क, हठी, कोई बकवास ना झेलने वाली प्रचारक और मध्यस्थ हैं. ईयू के साथ ब्रिटेन की डिप्लोमेटिक बातचीत में उनसे बेहतर विकल्प कोई नहीं होता.
कभी भी किसी महिला राष्ट्राध्यक्ष को ना चुनने वाला अमेरिका कोई अकेला देश नहीं है. उसके अलावा फ्रांस, चीन और रूस में भी कभी महिला राष्ट्रपति नहीं बनी हैं. हालांकि इन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कुछ हद तक संतुलन दिखाई देगा जब फ्रांस के फ्रांसुआ ओलांद, चीन के शी जिनपिंग, रूस के पुतिन के साथ ब्रिटेन की मे, जर्मनी की मैर्केल और संभवत: अमेरिका की क्लिंटन होंगी.
इन तीन देशों - जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका - की राष्ट्रीय राजनीति में काफी कम महिला नेताओं के होने के बावजूद इन महिला नेताओं का सबसे बड़े पदों तक पहुंचना और बड़ी उपलब्धि हो जाता है. जर्मनी में केवल 37 फीसदी महिला सांसद हैं. वहीं यूके में मात्र 29 प्रतिशत और अमेरिकी कांग्रेस में केवल 19 फीसदी. राष्ट्रीय राजनीति के स्तर पर लैंगिक बराबरी का आंकड़ां पार करने वाले दुनिया में केवल दो ही देश हैं- रवांडा और बोलिविया. अमेरिका तो इस रैंकिंग में 96वें स्थान पर आता है.
दुनिया की सबसे पहली महिला प्रधानमंत्री 1960 में श्रीलंका में श्रीमावो भंडारनायके चुनी गई थीं. और दुनिया की पहली महिला राष्ट्रपति 1974 में अर्जेंटीना की इजाबेल पेरॉन बनीं थीं.
जाहिर है कि किसी नेता को केवल उसके लिंग से पहचाना या परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए. और ऐसा हुआ भी नहीं है कि इन प्रभावशाली नेताओं के बारे में यह बात ज्यादा अहम रही हो कि वे महिलाएं हैं. 1995 में बीजिंग में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हिलेरी क्लिंटन का यह वक्तव्य सुप्रसिद्ध हुआ था कि मानव अधिकार ही महिला अधिकार हैं, और महिला अधिकार ही मानवाधिकार.
इन महिला नेताओं के साथ मिसालें जरूरत बनती हैं और दुनिया की सभी महिलाओं की आकांक्षाओं को भी स्वीकार्यता मिलती है. लेकिन जिस तरह पहले अश्वेत अमेरिकी बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने से देश में एफ्रो-अमेरिकनों के साथ भेदभाव होना बंद नहीं हो गया, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान समेत कई दक्षिण एशियाई देशों में महिला प्रमुख होने के बावजूद इन देशों में महिलाओं का अपमान और उन पर अत्याचार होना नहीं रुक गया, वैसे ही इस घटना को भी व्यावहारिक होकर देखना चाहिए.
दरअसल, दुनिया भर में राष्ट्रीय स्तर पर महिला नेताओं की संख्या लगातर कम हो रही है. "वीमेन इन लीडरशिप" वेबसाइट के आंकड़े दिखाते हैं कि फिलहाल विश्व में केवल 24 महिला नेता हैं. यह बीते कई सालों में सबसे कम संख्या है. वह भी तब जब इनमें ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और डेनमार्क की रानी मार्गरेथ को भी शामिल किया गया है.
यह स्थिति बदलने में समय लगेगा, लेकिन यह भी सच है कि ब्रिटेन अपनी दूसरी महिला पीएम और अमेरिका अपनी पहली महिला राष्ट्रपति चुनने जा रहा है, और इससे यह साल 2016 आज तक के राजनीतिक इतिहास में "महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण साल" बन सकता है.