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महाराष्ट्र: मराठा आरक्षण बिल पास, मराठा नेता क्यों हैं नाराज

२० फ़रवरी २०२४

महाराष्ट्र विधानसभा में शिक्षा और नौकरी में मराठा समाज के लिए 10 फीसदी आरक्षण पर विधेयक पारित हो गया है. इसे चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना सरकार की ओर से उठाया गया अहम कदम माना जा रहा है.

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मराठा समुदाय राज्य की 28 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है
मराठा समुदाय राज्य की 28 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है तस्वीर: IANS

महाराष्ट्र की राजनीति में प्रभावशाली स्थान रखने वाले मराठा समुदाय के नेता अपने लिए आरक्षण की मांग कई सालों से कर रहा था. आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय कभी सड़कों पर उतरा तो कभी हिंसक विरोध प्रदर्शन किया.

आखिरकार उनकी मांगों को देखते हुए मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार ने शिक्षा और नौकरी में 10 फीसदी आरक्षण देने वाला विधेयक पेश किया, जो सर्वसम्मति से पारित हो गया.

मराठा आरक्षण के मुद्दे पर विचार करने के लिए मंगलवार को महाराष्ट्र विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था. महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा विधेयक 2024, एक बार कानून बन जाएगा तो उसके 10 साल बाद उसकी समीक्षा की जाएगी.

विधेयक में शिक्षा और नौकरी में 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव है और अब इस विधेयक को महाराष्ट्र विधान परिषद में पेश किया जाएगा.

एकनाथ शिंदे: आरक्षण का वादा पूरा किया

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में मराठा कोटा विधेयक पेश करते हुए कहा, "हमने मौजूदा कोटा को छेड़े बिना मराठाओं को आरक्षण देने का प्रस्ताव दिया है." शिंदे ने कहा इसमें महाराष्ट्र के सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव है.

शिंदे ने कहा कि मराठा समाज को आरक्षण देने के लिए उन्होंने शिवाजी महाराज की कसम खाई थी और आरक्षण को लेकर मराठा समाज की भावना तीव्र है.

16 फरवरी को महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग ने एक व्यापक रिपोर्ट पेश की थी. लगभग 2.5 करोड़ परिवारों को कवर करने वाले व्यापक सर्वेक्षण पर आधारित यह रिपोर्ट मराठा समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर रोशनी डालती है.

इस साल जनवरी से फरवरी के बीच कराए गए राज्य सरकार के सर्वेक्षण से पता चलता है कि 84 फीसदी मराठा परिवार उन्नत श्रेणी में नहीं आते हैं. यह निष्कर्ष उन्हें आरक्षण के लिए पात्र मानता है, जैसा कि विधेयक में भी कहा गया है.

आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक रोजगार के सभी क्षेत्रों में मराठा समुदाय का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है.

यही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या करने वाले 94 फीसदी किसान मराठा समुदाय से हैं.

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में कहा, "हमने मौजूदा कोटा को छेड़े बिना मराठाओं को आरक्षण देने का प्रस्ताव दिया है"
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में कहा, "हमने मौजूदा कोटा को छेड़े बिना मराठाओं को आरक्षण देने का प्रस्ताव दिया है"तस्वीर: Ashish Vaishnav/Zumapress/picture alliance

आरक्षण से सुधरेगी हालत?

मराठा समुदाय राज्य की 28 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है और यह समुदाय राजनीतिक तौर पर राज्य का सबसे प्रभावी समूह माना जाता है, वहीं ओबीसी संख्या के तौर पर सबसे बड़ा समूह (करीब 52 प्रतिशत) है.

नए कानून का उद्देश्य मराठा समुदाय के सामने आने वाले आर्थिक संघर्षों को संबोधित करना है. मराठा समुदाय में गरीबी रेखा से नीचे के 21.22 प्रतिशत परिवारों के पास पीले राशन कार्ड हैं. यह प्रतिशत राज्य के औसत 17.4 प्रतिशत से अधिक है.          

लेकिन विपक्ष इस विधेयक को लेकर सवाल उठा रहा है. उसका कहना है कि यह एक चुनावी दांव है. महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा, "हमें पता था कि हमारी आवाज दबाई जाएगी इसलिए हमने उन्हें पहले ही एक पत्र दिया था. उन्होंने हमारे पत्र का जवाब नहीं दिया और यह जो 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है वह कानून के तौर पर टिकने वाला नहीं है.

उन्होंने कहा, "आगामी लोकसभा चुनाव के लिए यह बिल लाया गया है. यह बिल किसी भी तरह से किसी को मान्य नहीं होने वाला."

वहीं शिंदे ने कहा "यह मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल द्वारा शुरू किए गए आंदोलन की जीत है और मराठों की आकांक्षाओं की पूर्ति का दिन है. यह ओबीसी समेत किसी भी अन्य समुदाय के साथ अन्याय किए बिना या उनके कोटा में गड़बड़ी किए बिना किया गया है."

शिंदे ने सदन में आश्वासन दिया कि यह आरक्षण अदालतों के समक्ष कानूनी जांच में खड़ा होगा और मराठों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए इसे अंतिम रूप देने के लिए सभी ने बहुत मेहनत की थी, क्योंकि विधेयक बिना किसी विरोध के मेज थपथपाकर पारित कर दिया गया.

नाराज हैं मराठा नेता मनोज जरांगे

इस बीच मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार जो आरक्षण अलग श्रेणी के तहत देने की कोशिश कर रही है वह उन्हें नहीं चाहिए. उन्होंने कहा, "हमें ओबीसी कोटे से ही आरक्षण चाहिए."

जरांगे ने कहा, "हमें आरक्षण चाहिए जिसके हम हकदार हैं, उन लोगों को ओबीसी के तहत आरक्षण दें जिनके कुनबी होने का प्रमाण मिल गया है और जिनके पास कुनबी होने का प्रमाण नहीं है, उनके लिए "सेज सोयरे" कानून पारित करें."

पिछले एक साल में चार बार मनोज जरांगे मराठा समुदाय को ओबीसी समूह के तहत आरक्षण दिलवाने को लेकर भूख हड़ताल कर चुके हैं. आरक्षण की मांग को लेकर जरांगे 10 फरवरी से जालना जिले में अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं.

जरांगे सभी मराठा लोगों के लिए कुनबी प्रमाण पत्र मांग रहे हैं. कृषिक समुदाय कुनबी ओबीसी के अंतर्गत आता है, जिससे सभी मराठाओं को राज्य में ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण मिल सके.

साल 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण अधिनियम लागू किया था, जिसमें मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण देने का प्रावधान था. लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की एक संवैधानिक पीठ ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया.