एजेंटों के जाल में फंसतीं रोहिंग्या लड़कियां
१३ फ़रवरी २०१८रेशमी बताती है, "उसने एजेंट से पूछा कि क्या मेरी पहले शादी हो चुकी है. मैं कुंवारी थी इसलिए उसने मुझे 20 हजार रुपये में खरीदा. शादीशुदा औरतें 15 हजार रुपये में खरीदी जाती हैं."
अब रेशमी म्यांमार से भागे रोहिंग्या लोगों के लिए हरियाणा के नूह में बनाई गई एक बस्ती में रहती है. रेशमी के पति ने पांच साल तक उसका शोषण करने के बाद पिछले साल उसे छोड़ दिया. उस वक्त वह उसके दूसरे बच्चे की मां बनने वाली थी. रेशमी कहती है, "उसकी उम्र मेरे पिता की उम्र से कुछ ही कम होगी. वह मुझे बिजली के तारों से पीटता था और घर से जाने नहीं देता था. वह कहता था कि मैंने तुझे खरीदा है."
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भारत में 40 हजार रोहिंग्या
म्यांमार के रखाइन प्रांत में पिछले साल भड़की हिंसा के बाद 6.6 लाख लोग वहां से भागकर बांग्लादेश पहुंचे, जहां पहले से ही हजारों रोहिंग्या रह रहे थे. दर दर भटकते हजारों रोहिंग्या भारत भी पहुंचे. ऐसे में, रोहिंग्या लोगों से बंधुवा मजदूरी कराने या फिर उन्हें देह व्यापार में धकेले जाने के मामले भी सामने आ रहे हैं.
कुछ साल पहले ही भारत में रोहिंग्या लोगों के आने का सिलसिला शुरू हुआ है. इस बीच उनकी संख्या 40 हजार हो गई है. इन्हीं में रहीमा भी शामिल है जिसने बांग्लादेश में एक कैंप में रह रहे अपने पिता के पास आने के लिए 2012 में रखाइन को छोड़ा था. अब 22 साल की हो चुकी रहीमा बताती है, "घर पर खाने को नहीं था तो मेरी मां ने सोचा कि अगर मैं अपने पिता के पास चली जाऊं तो अच्छा रहेगा. लेकिन कैंप में मेरी एक रिश्तेदार ने मुझे एक एजेंट को बेच दिया. एजेंट ने बताया था कि वह भारत में ले जाकर मेरी शादी करा देगा."
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रहीमा कहती है, "शादी के ख्याल से मैं स्तब्ध थी. मैं बस एजेंट के पीछे पीछे चल रही थी. हम लोग कोलकाता पहुंचे. मुझे कोई भारतीय भाषा नहीं आती थी लेकिन मैंने सोचा कि मैं सुरक्षित हूं." अब नूह में रहने वाली रहीमा फर्राटेदार हिन्दी में यह बात कहती है.
मदद के लिए संगठन
बांग्लादेश के शरणार्थी कैंप रहीमा जैसी लड़कियों को खरीदने वाले एजेंटों का अड्डा बन रहे हैं. शादी के लालच में बहुत सी लड़कियां उनके चंगुल में फंस जाती हैं. सहायता और विकास संस्था ब्राक की प्रवक्ता इफत नवाज कहती हैं, "शादी जवान लड़कियों के लिए बड़ी बात होती है. माता पिता भी इसके लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि इसमें उन्हें अपनी बेटियों का भविष्य आर्थिक रूप से ज्यादा सुरक्षित दिखता है."
ब्राक के वोलंटियर कॉक्स बाजार में बांग्लादेशी शरणार्थी शिविर में जाकर लड़कियों को सिखा रहे हैं कि वे कैसे अजनबियों के बीच अपने आपको सुरक्षित रख सकती हैं. उन्हें यह अंतर करना भी सिखाया जाता है कि कौन उनकी मदद कर रहा है और कौन उन्हें तस्करी के जरिए बेचना चाहता है. नवाज कहती हैं, "लड़कियों के गायब होने की बहुत सारी घटनाएं हुई हैं. उन्हें भारत और नेपाल में ले जाकर बेचा जा रहा है. हमने इस जोखिम को कम करने के लिए ही यह कार्यक्रम शुरू किया है."
कैसे हो पहचान?
मानव तस्करी के खिलाफ भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन इम्पल्स एनजीओ नेटवर्क की संस्थापक हसीना खारभीह कहती हैं कि उनकी संस्था भारत में 15 रोहिंग्या लड़कियों को उनके परिवार से मिलाने के लिए काम कर रही हैं. वह बताती हैं, "इन लड़कियों को छह से आठ साल पहले तस्करी के जरिए भारत लाकर बेच दिया गया. उन्हें यौन दास बनाया गया या फिर उनकी शादियां कराई गईं. अब वे सरकारी शिविरों में रह रही हैं. हम इनमें से किसी भी लड़की को अभी तक उसके परिवार के पास नहीं भेज पाए हैं क्योंकि म्यांमार में उनके परिवारों को ढूंढ़ा नहीं जा सका है."
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि भारत में लड़कियों को बेचे जाने के बहुत से मामले हैं. लेकिन उनकी पहचान कर पाना अकसर मुश्किल होता है. इंसानी तस्करी के खिलाफ काम करने वाले एक एनजीओ जस्टिस एंड केयर के आड्रियान फिलिप्स कहते हैं, "भाषा से जुड़ी समस्याओं के कारण रोहिंग्या या बांग्लादेशी के तौर पर उनकी पहचान करना मुश्किल होता है क्योंकि उनकी भाषा एक ही जैसी है."
रहीमा अब नूह में अपने दो बच्चों के साथ टिन और प्लास्टिक शीट से बनी एक झोपड़ी में रहती है. वह म्यांमार में रह रही अपनी मां के संपर्क में है. वह कहती है, "मैं घरों में काम करती हूं और महीने के 1200 रुपये कमाती हूं. लेकिन अगर में वापस अपनी मां के पास चली गई तो मेरे बच्चों को कौन खाना खिलाएगा?"
एके/आईबी (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)