गैस संकट से निपटने के लिए परमाणु ऊर्जा जारी रखने की मांग
१ अगस्त २०२२जर्मनी के वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर ने गैस से होने वाले बिजली उत्पादन को बंद करने की मांग की है. यूरोप को सप्लाई की जाने वाली रूसी गैस में कटौती के बाद उन्होंने यह बयान दिया है. जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि गैस की कमी के कारण जर्मन इकोनॉमी मंदी का शिकार हो सकती है. जर्मन अखबार "बिल्ड आम जोन्टाग" से बात करते हुए वित्त मंत्री लिंडनर ने कहा, "गैस संकट के साथ ही हमें बिजली संकट को टालने के लिए काम करना होगा."
कारोबार के लिए उदार नियमों की वकालत करने वाली फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी) के नेता लिंडनर के मुताबिक, आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ही इस बारे में कोई फैसला कर सकते हैं. लिंडनर कहते हैं कि अगर जरूरी हुआ, तो बिजली उत्पादन के लिए गैस का इस्तेमाल न करने का फैसला किया जा सकता है और यह निर्णय लेने का कानूनी अधिकार हाबेक के पास है.
गठबंधन सरकार में दो विरोधाभासी पार्टियां
एफडीपी के नेता चाहते हैं कि ऊर्जा संकट से बचने के लिए परमाणु बिजलीघरों का सहारा लिया जाए. जर्मनी के परमाणु बिजलीघरों को "सुरक्षित और क्लाइमेट फ्रेंडली" बताते हुए लिंडनर ने कहा कि 2024 तक इन संयंत्रों का इस्तेमाल जारी रहेगा. जर्मनी में तीन परमाणु बिजलीघर 2020 में बंद कर दिए गए. इस साल दिसंबर अंत तक तीन और न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बंद करने की योजना है. 2022 की पहली तिमाही में जर्मनी के कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजलीघरों की हिस्सेदारी 6 फीसदी थी. वहीं इस दौरान 13 फीसदी बिजली गैस टरबाइनों से बनाई गई.
क्या जर्मनी वाकई रूसी गैस का तोड़ ढूंढ सकता है?
लिंडनर का बयान गठबंधन सरकार में उनकी साझीदार ग्रीन पार्टी को परेशान करने वाला है. जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक, पर्यावरण के मुद्दों पर टिकी ग्रीन पार्टी के नेता हैं. परमाणु ऊर्जा का विरोध ग्रीन पार्टी का कोर एजेंडा रहा है. ग्रीन पार्टी की एक अहम नेता रिकॉर्डा लांग ने एक बार फिर साफ कहा है कि उनके दल के रहते हुए परमाणु ऊर्जा की कतई वापसी नहीं होगी. जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर टीवी चैनल जेडीएफ से बात करते हुए लांग ने कहा कि परमाणु बिजली अब भी "हाई रिस्क टेक्नोलॉजी" बनी हुई है.
परमाणु बिजली का बढ़ता समर्थन
जर्मनी के लिए तय योजना के मुताबिक परमाणु बिजलीघरों को बंद करना मुश्किल होता जा रहा है. इस मुद्दे पर चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी, अपनी दो गठबंधन पार्टियों ग्रीन्स और एफडीपी के बीच फंसती दिख रही है. 2011 में जर्मनी की तत्कालीन चांसलर अंगेला मैर्केल ने चरणबद्ध तरीके से परमाणु बिजलीघरों को बंद करने का ऐलान किया. जापान में फुकुशिमा हादसे के बाद यह घोषणा की गई.
लेकिन अब रूस से मिलने वाली गैस में कटौती ने बर्लिन के सामने ऊर्जा संकट खड़ा कर दिया है. एफडीपी के नेता लिंडनर की परमाणु बिजलीघरों की ऑपरेशनल अवधि बढ़ाए जाने की मांग को विपक्ष में बैठी मैर्केल की पार्टी सीडीयू (क्रिस्चन डेमोक्रैट यूनियन) का समर्थन मिल रहा है. सरकार अब तक यही कह रही है कि परमाणु बिजलीघरों को चालू रखना कानूनी व तकनीकी रूप से मुश्किल होगा और इससे गैस संकट को हल करने में बहुत मदद नहीं मिलेगी.
गैस की किल्लत का खतरा अब भी बहुत ज्यादा
जर्मनी रूस से मिलने वाली गैस पर बहुत ही ज्यादा निर्भर है. लेकिन रूस की सरकारी ऊर्जा कंपनी गाजप्रोम ने जुलाई के आखिरी हफ्ते में नॉर्ड स्ट्रीम 1 गैस पाइपलाइन के जरिए सिर्फ 20 फीसदी गैस सप्लाई की. मॉस्को का कहना है कि ऐसा तकनीकी कारणों की वजह से करना पड़ा. वहीं जर्मनी का आरोप है कि रूस गैस को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है.
दो महीने के बाद जर्मनी में सर्दी पड़ने लगेगी. ऐसी आशंकाएं हैं कि जर्मनी के पास सर्दियों में घरों को गर्म रखने के लिए पर्याप्त गैस नहीं होगी. गैस की ये किल्लत उद्योगों और जनता पर बुरा असर डालेगी. ग्रीन पार्टी इस बात से भी परेशान है कि ऊर्जा संकट से निपटने के लिए सरकार 10 कोयला बिजलीघरों और छह तेल से चलने वाले पावर प्लांट्स को रिस्टार्ट करने की मंजूरी दे चुकी है. जर्मनी को इस साल नंबवर तक 11 और कोयला बिजलीघर बंद करने थे. लेकिन अब उन्हें भी चालू रखने की अनुमति दी गई है.
ओएसजे/एसएम (एपी, डीपीए, रॉयटर्स)