सीरिया के सबकः लोग प्यास से भी मरते हैं
१७ दिसम्बर २०२१सितंबर की धूप ओलिव पेड़ों के पुराने बागान पर ढल रही है, और अहमद महमूस अलहरी, सोच में डूबे एक पेड़ से दूसरे पेड़ की ओर आ-जा रहे हैं. 52 साल के अलहरी एक सूखी लकड़ी को तोड़कर धूल भरी, धूसर जमीन पर गिरा देते हैं.
वो याद करते हुए कहते हैं, "मेरे भाई और मैंने यहां एक बार 8,000 पेड़ लगाए थे. सिर्फ ओलिव के पेड़ नहीं थे, नींबू के भी थे और अंगूर की बेलें थीं. जब इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने हमारा पानी का कनेक्शन काट डाला तो हमारे 3,000 पेड़ मर गए. हमने सोचाः अब इससे ज्यादा बुरा क्या होगा. लेकिन इस साल और तीन हजार पेड़ सूख कर खत्म हो गए क्योंकि हमारे पास पानी नहीं है.”
ये हाल तब है जबकि अलहरी का गांव अयीद साघीर सीरिया की सबसे बड़ी नदी, फरात (यूफ्रेटस) पर बने तबका बांध से महज तीन किलोमीटर दूर ही है. इस गांव में एक हजार लोग रहते हैं. अलहरी के ओलिव बागान से बांध का विशाल असद जलाशय भी दिख जाता है.
2020 से जलाशय में पानी का लेवल छह मीटर गिर गया है. फरात नदी इतना नीचे बह रही है कि आसपास के गांवों और खेतों को पानी की सप्लाई देन वाले पम्पिंग स्टेशन भी नदी के पानी तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के डाटा के मुताबिक फरात पर बने करीब 200 पम्पों में से एक तिहाई पम्प 2021 में जलस्तर में कमी से प्रभावित थे और इलाके के 50 लाख से ज्यादा लोगों के पास पर्याप्त पानी नहीं था.
किस वजह से हो रहा है जल संकट?
वैश्विक स्तर पर, मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) क्षेत्र जलवायु संकट से सबसे बुरी तरह प्रभावित इलाकों में से है. संयुक्त राष्ट्र खाद और कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक सीरिया में बरसात का मौसम दो महीने देरी से 2020-21 की सर्दियों में शुरू हुआ और निर्धारित अवधि से दो महीने पहले खत्म भी हो गया. इसके अलावा एफएओ ने पाया कि अप्रैल महीने की बेतहाशा गर्मी से कई स्थानों पर फसल का भारी नुकसान हुआ. मानवाधिकार मामलों में समन्वय के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के मुताबिक, इन गर्मियों में सीरिया 70 साल का सबसे बुरा सूखा झेल रहा है. संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी ने पूर्वोत्तर सीरिया में 75 फीसदी खेत की फसल और 25 फीसदी सिंचित फसलों के नुकसान का अंदाजा लगाया है.
तुर्की से सीरिया की ओर बहने वाली फराद नदी के जलस्तर में कमी ने हालात को और बिगाड़ दिया है. सीरिया में यूनिसेफ के प्रतिनिधि बो विक्टर नाइलुंड कहते हैं, "फरात नदी में पानी का अपर्याप्त बहाव लाखों लोगों की रोजमर्रा की जिंदगियों पर सीधा असर डालता है. सीरिया के कम से कम तीन जिलों- दाइर-एज-जोर, रक्का और अलेप्पो में पीने के पानी की किल्लत हो गई है. समाधान के लिए जितना जल्दी संभव हो सके, क्षेत्रीय स्तर पर तत्काल संवाद की जरूरत है.”
फरात नदी तुर्की, सीरिया और इराक से होते हुए बहती है. तुर्की की ओर नदी पर अतातुर्क बांध बना है. 1987 में निर्माण पूरा होने के बाद तुर्की ने वादा किया था कि वो 500 घनमीटर प्रति सेकंड से ज्यादा की सालाना औसत से फरात का पानी सीरिया की ओर जाने देगा. लेकिन इन गर्मियों में वो मात्रा भी घटकर 215 घनमीटर प्रति सेकंड रह गई.
तुर्की और सीरिया को जलापूर्ति
किसान अहमद महमूद अलहरी, इस हालात के लिए तुर्की को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार मानते हैं. वो कहते हैं, "तुर्की हमें सूखे में झोंक देना चाहता है, आईएस और उसमे कोई अंतर नहीं.” करीब तीन साल तक कथित इस्लामिक स्टेट (आईएस) का अयीद साघीर गांव पर कब्जा था. लेकिन 2017 में कुर्दों की अगुवाई वाले गठबंधन सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ) ने आईएस को इलाके से खदेड़ दिया.
तबसे ये इलाका, कुर्दिश पीवाईडी पार्टी की अगुआई में- उत्तर और पूर्वी सीरिया का स्वायत्त प्रशासन (एएएनईएस) कहलाता है. तुर्की का आरोप है कि पीवाईडी, कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) की सीरियाई शाखा है और इसीलिए वो उसे एक आतंकी संगठन की तरह देखता है.
अलहरी की तरह, अयीद साघीर के की लोग मानते हैं कि तुर्की जानबूझकर पानी को रोक रहा है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधि नाइलुंड कहते हैं कि इसका कोई सबूत अभी नहीं मिला हैः "हम देख रहे हैं कि पानी काफी कम हो गया लेकिन हमें और अधिक विश्लेषण करना पड़ेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है.” तुर्की के विदेश मंत्रालय ने इस विषय पर डीडबल्यू की कई कोशिशों के बावजूद बात नहीं की.
बिजली सप्लाई और स्वास्थ्य पर असर
पानी की कमी के गंभीर नतीजे सिर्फ खेती तक महदूद नहीं हैं. यूनिसेफ के मुताबिक खराब पानी की वजह से डायरिया जैसी बीमारियों के मामले ज्यादा आने लगे हैं, खासकर बच्चों में. पानी की कमी का असर बिजली सप्लाई पर भी पड़ रहा है. पूर्वोत्तर सीरिया में करीब 30 लाख लोग बुनियादी रूप से फरात नदी पर बने तीन जलबिजली ऊर्जा संयंत्रो से अपनी बिजली हासिल करते हैं.
अयीद साघीर गांव के पूर्व में 200 किलोमीटर दूर हसाका क्षेत्र में तो जलसंकट और भयानक है. हसाका को सीरिया की रोटी की टोकरी कहा जाता था. एक दौर में वहां देश का करीब आधा अन्न उगाया जाता था. आज क्षेत्रीय राजधानी अल-हसाका के उत्तरी छोर पर निर्मित जलाशय सिकुड़ कर छोटे-मोटे तालाब बन गए हैं जहां लड़के नंगे हाथों से मछलियां पकड़ते हैं.
शहर की खाबुर नदी से पीने का पानी आता था लेकिन बारिश न होने से वो भी सूख चुकी है. फिलहाल अल-हसाका के लोगों के पास ले-देकर तुर्क सीमा के पास अलाउक वॉटर पम्पिंग स्टेशन ही बचा है. लेकिन पिछले दो साल से 460,000 लोगों को पीने का पानी सप्लाई करने वाला स्टेशन रुक रुक कर ही काम कर रहा है.
अलाउक जल संयंत्र पर विवाद
अल-हसाका शहर के डिप्टी मेयर माज्दा अमीन कहते हैं कि "जबसे तुर्की ने सेरे कानिये (अरबी में रसअल आइन) पर 2019 में कब्जा किया और अलाउक का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया, तबसे हालात खासतौर पर बिगड़ते आ रहे हैं.”
अक्टूबर 2019 में तुर्क सेना उत्तरी सीरिया में दाखिल हो गई थी और उसने वहां कथित आतंकवादी हमलों को रोकने के दिखावटी उद्देश्य के तहत 30 किलोमीटर का "बफर जोन” बना डाला था. उसी दायरे में अलाउक का पम्पिंग स्टेशन भी पड़ता है. फिलहाल वो काम तो कर रहा है लेकिन इस साल जनवरी से 90 दिन ऐसे रहे जब पम्प पूरी तरह बंद पड़ा रहा और 140 दिन ऐसे थे जब उसका इस्तेमाल सिर्फ आधी क्षमता पर हुआ.
तुर्की ने उत्तर और पूर्वी सीरिया स्वायत्त प्रशासन (एएएनईएस, आनेस) पर स्टेशन की बिजली सप्लाई काटने का आरोप लगाया है. अलाउक को संयुक्त राष्ट्र जैसे किसी तटस्थ प्रशासन के तहत रखने की कोशिशें भी अब तक नाकाम ही रही हैं. नाइलुंड कहते हैं कि यूनिसेफ की पंप स्टेशन तक कोई सीधी पहुंच नहीं है.
अल-हसाका के लोग अब ट्रकों में भरकर लाए विशाल पानी के टैंकों से अपना पीने का पानी लेते हैं. लेकिन ये पानी महंगा है. 1,000 लीटर की कीमत करीब 6,000 लीरा यानी करीब दो यूरो है. इस इलाके के लिए ये रकम बहुत बड़ी है जहां औसत तनख्वाह हर महीने सिर्फ 53 यूरो के बराबर बैठती है.
दूर होता पानी, महंगा होता पानी
मोहम्मद आब्दो कहते हैं, "हम लोग अपने बेटे की पगार पर निर्भर रहते हैं. वो सेना में बतौर ड्राइवर ढाई लाख लीरा प्रति माह कमाता है. और हर महीने 60 हजार लीरा पानी में निकल जाते हैं- और वो पानी पूरा भी नहीं पड़ता.”
60 साल के मोहम्मद आब्दो खसमान इलाके में रहते हैं. और कई महीने जिला परिषद् के चेयरमैन के पद पर रहे हैं. आब्दो कहते हैं कि खसमान के निवासी हताश हैं क्योंकि उनके खेत पूरी तरह सूख चुके हैं.
उनकी शिकायत है कि "हमें भुलाया जा रहा है, कोई हमारी मदद नहीं करता है, न कोई सहायता संगठन- कोई नहीं.” आब्दो नाराज हैं- नगरपालिका पर, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पर लेकिन सबसे ज्यादा तुर्की पर. "अगर वो लड़ाई चाहता है तो सीमाओं पर आकर लड़े, लेकिन पानी को हथियार न बनाए,” वो कहते हैं. "भला ये भी कोई ज़िंदगी है. हमें तो खत्म किया जा रहा है- आहिस्ता आहिस्ता.”
रिपोर्टः दानिला साला, बार्ट फॉन लाफेर्ट, शावीन मोहम्मद