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समाज

स्टार्टअप कंपनियों में नौकरी कितनी सुरक्षित

२० मई २०२०

भारतीय स्टार्टअप अब तक तेजी के साथ अपनी बढ़त की घोषणा करते आ रहे थे लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण इनके सामने नई चुनौती पैदा हो गई है और वह इस क्षेत्र में बने रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

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Indien Jugendliche beim Arbeiten
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran

अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब है लेकिन पिछले साल वुहान से फैले कोरोना वायरस के कारण भारतीय स्टार्टअप सेक्टर भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. साल 2019 में देश में 1,300 नए स्टार्टअप शुरू हुए थे. पिछले साल नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज (नैसकॉम) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम के 10 साल के भीतर 10 गुना रफ्तार के साथ बढ़ने की उम्मीद है. लेकिन पिछले साल दिसंबर महीने में चीन के वुहान शहर से निकला कोविड-19 वायरस इस सेक्टर को भी अपनी गिरफ्त में ले चुका है. अब भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए हालात मुश्किल भरे हो गए हैं. खासतौर पर फूड डिलीवरी सेक्टर कोरोना के कारण संकट में आ गया है.

लॉकडाउन की वजह से कई रेस्तरां और मिठाई की दुकानें बंद थीं, जिसका असर फूड डिलीवरी सेक्टर पर भी पड़ा है. फूड डिलीवरी के अलावा तकनीक से जुड़े कई अन्य स्टार्टअप भी संकट से घिरे हुए हैं. पिछले दिनों फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म जोमैटो ने 13 फीसदी कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की थी. कंपनी में कुल 4,000 लोग अलग-अलग भूमिका में काम करते हैं. जिनकी नौकरी नहीं जाएगी उनके वेतन में 50 फीसदी तक की कटौती की जाएगी. वेतन में यह कटौती जून महीने से होगी.

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लागत कम करने के लिए नौकरी से निकाल रही हैं कंपनियां.तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Wire/M. Ramos

जोमैटो के संस्थापक दीपेंदर गोयल ने कर्मचारियों से कहा था, "हमें ऐसा लगता है कि हमारे सभी कर्मचारियों के लिए भविष्य में पर्याप्त काम नहीं रहेगा." गोयल ने कर्मचारियों के नाम लिखे ब्लॉग में कहा कि कंपनी को आने वाले खराब समय के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है. जोमैटो की प्रतिद्वंद्वी कंपनी स्विगी ने इसके बाद 18 मई को 1,100 कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का ऐलान किया. स्विगी ने अपने मुख्यालय समेत सभी शहरों में काम कर रहे कर्मचारियों को हटाने का फैसला लिया है.

स्विगी के सह-संस्थापक श्रीहर्ष माजेती ने कर्मचारियों को लिखे पत्र में कहा, "फूड डिलीवरी बिजनेस पर गहरा असर पड़ा है और कुछ वक्त तक यह बरकरार रहेगा, हालांकि आने वाले समय में इसके पटरी पर आने की पूरी उम्मीद है. हमें अपनी कंपनी में कर्मचारियों की संख्या कम करने और आने वाले वक्त में किसी तरह की अनिश्चितता से निपटने के लिए लागत कम करने की जरूरत है." हालांकि कंपनी का मानव संसाधन विभाग हटाए जाने वाले कर्मचारियों को वित्तीय लाभ के साथ-साथ परामर्श भी देगा ताकि उन्हें आगे कोई दिक्कत ना पेश आए. हटाए जाने वाले कर्मचारियों को कंपनी कम से कम तीन महीने का वेतन भी देगी. साथ ही कर्मचारियों को दिसंबर तक हेल्थ इंश्योरेंस भी दिया जाएगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल अक्टूबर तक कंपनी के पेरोल पर करीब 8,000 कर्मचारी थे. 

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देश में 25 मार्च से लॉकडाउन लागू है. रेस्तरां और होटल बंद होने के साथ-साथ लोगों में बाहर के खाने को लेकर एक हिचक भी है. लोग बाहर का खाना ऑर्डर करने से बच रहे हैं और इसका सीधा असर फूड डिलीवरी सेक्टर पर भी हुआ है. ऐसे में बदले हालात में कंपनियों के लिए इतने ज्यादा कर्मचारियों को नौकरी पर रखना चुनौतीपूर्ण हो गया है. नैसकॉम के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 70 फीसदी स्टार्टअप के पास बिजनेस चलाने के लिए सिर्फ तीन महीने से भी कम समय का नकद बचा है. तकनीक उद्योग की संस्था नैसकॉम ने कोविड-19 के प्रभावों को जानने के लिए एक महीने तक ई सर्वे किया.

सर्वे कहता है 10 में से 9 स्टार्टअप ने राजस्व में गिरावट दर्ज की है. इस सर्वे में पाया गया कि सबसे ज्यादा प्रभावित सेगमेंट शुरूआती और मध्य स्तर वाले हैं. नैसकॉम के सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी बी2सी स्टार्टअप लगभग बंद होने का सामना कर रहे हैं. 

बेंगलुरू स्थित शेयरचैट कंपनी ने भी 101 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है. इस कंपनी में पिछले साल ट्विटर ने 10 करोड़ डॉलर का निवेश किया था. कंपनी को आशंका है कि कोविड-19 के कारण विज्ञापन का बाजार अप्रत्याशित रहेगा. एक और कंपनी वीवर्क ने भी मंगलवार को 100 लोगों को नौकरी से निकालने की घोषणा की है, दफ्तर साझा का बिजनेस करने वाली वीवर्क कंपनी भी लॉकडाउन के दौरान अपनी लागत कम करना चाहती है. मौजूदा हालात पर आर्थिक विश्लेषक त्रिबिदेश बंदोपाध्याय कहते हैं, "कोरोना वायरस के कारण नौकरी जाने वालों की संख्या बढ़ रही है. इससे निकलना बहुत कठिन है.अर्थव्यवस्था का ढांचा बदलता जा रहा है."

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