इस्तांबुल की मस्जिदों में नमाज के साथ फिटनेस भी
१४ फ़रवरी २०२४इस्तांबुल की एक मस्जिद में दिन की नमाज कुछ देर पहले ही खत्म हुई है. इस मस्जिद में आस-पड़ोस के ज्यादातर कामकाजी लोग नमाज पढ़ने आते हैं. सफेद बालों वाले नमाजियों की नजर अब मस्जिद के इमाम पर है जो पोलो टी शर्ट पहनकर स्पोर्ट्स ट्रेनर की भूमिका निभाते हैं.
अब्दुल्ला हान मस्जिद के फिरोजा कालीन पर एक दर्जन से अधिक नमाजी लंबी दाढ़ी वाले इमाम के साथ सीधे खड़े होते हैं. फिर वे अपने घुटने उठाते हैं, अपने कंधे घुमाते हैं, कूदते हैं और पूरे समय मुस्कुराते हैं और कुछ लोग एकाध बार शर्म के साथ एक दूसरे को देखते हैं.
वे पंद्रह मिनट तक ट्रेनर के बताए गए निर्देशों का पालन करते हैं. इनमें से अधिकतर ऐसे लोग हैं जिन्होंने सालों पहले कसरत छोड़ दी थी.
सरवत अजीजी नाम के एक नमाजी ने कहा, "इंसान एक कार की तरह है. जिस तरह हमें एक कार की देखभाल करने की जरूरत होती है, उसी तरह जब हम खेलों में भाग लेते हैं तो हमारे अंग बेहतर होते हैं."
नमाज के बाद फिटनेस क्लास
अन्य नमाजियों की तरह 66 साल के अजीजी जनवरी महीने से रोजाना जिमनास्टिक कर रहे हैं, जब इस्तांबुल के बागजिलार जिले में 11 मस्जिदों में फिटनेस प्रोग्राम शुरू हुआ था. यह शहर के सबसे घनी आबादी वाले और संसाधन वंचित क्षेत्रों में से एक है.
सरवत के दाहिनी ओर खड़े 75 साल के एक व्यक्ति हुसैन काया सुबह से काफी खुश हैं. उन्होंने कहा, "अब मैं अपने शरीर के हर हिस्से को आसानी से हिला सकता हूं. इससे (कसरत से) बहुत फर्क पड़ा है."
ट्रेनर फतेह यामांगलू कहते हैं, "इस तरह के व्यायाम को दैनिक दिनचर्या बनाने से भविष्य में होने वाली चोटों को रोकने में मदद मिलेगी और बुजुर्गों के लिए जीवन और भी आसान हो जाएगा."
उन्होंने कहा कि हर दिन 25 से 35 नमाजी अपनी सुविधा के मुताबिक दिन या शाम की नमाज के बाद फिटनेस क्लास में शामिल होते हैं.
कसरत से पड़ रहा है फर्क
जो महिलाएं फिलहाल में घर पर नमाज पढ़ती हैं, वे वर्तमान में इस परियोजना का हिस्सा नहीं हैं. बागजिलार काउंसिल के मेयर और राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन की पार्टी के नेता ने कहा कि जल्द ही बदलाव आने वाला है.
तुर्की में महिलाओं की रोजगार दर पुरुषों की तुलना में आधे से भी कम है. इसके कारण वे कई लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों से भी पीड़ित हैं. तुर्की के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक जहां तीन में से एक पुरुष व्यायाम या शारीरिक गतिविधि में भाग लेता है, वहीं आधे से भी कम महिलाएं शारीरिक गतिविधियों में भाग लेती हैं.
इस्तांबुल की गलाटा यूनिवर्सिटी में फिजियोथेरेपी विभाग के निदेशक सेराप अनल का कहना है कि "कई देशों" में महिलाओं में फिटनेस की कमी है. उन्होंने कहा कि इस्तांबुल के वंचित क्षेत्रों के निवासी बेहतर क्षेत्रों में रहने वाले अन्य लोगों की तुलना में फिटनेस या खेल में कम भाग लेते हैं.
अनल के मुताबिक, "ऐसे देश में जहां पिछले 25 वर्षों में 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में दस प्रतिशत की वृद्धि हुई है, मस्जिदों में फिटनेस कार्यक्रम शुरू करना एक अच्छा विचार है."
फिटनेस कार्यक्रम अन्य मस्जिदों में भी
इमाम बुलंद सिनार इस बात से खुश हैं कि उनकी मस्जिद अब नमाज पढ़ने की जगह तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पड़ोसी मस्जिदों के नमाजी जो फिटनेस में रुचि रखते हैं वे भी यहां खिंचे आते हैं.
उन्होंने कहा कि वे महिला ट्रेनरों की नियुक्ति करने को भी तैयार हैं, जो महिलाओं को कसरत कराएंगी. उन्होंने इस पहल को तुर्की की 90 हजार मस्जिदों तक बढ़ाने की भी अपील की.
उन्होंने कहा, "जब हम कसरत करते हैं, तो इससे हमारी नमाजों की गुणवत्ता में भी सुधार होता है. हम उन्हें अधिक आसानी से पढ़ सकते हैं और हम फिट भी महसूस करते हैं."
एए/वीके (एएफपी)