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क्या चीन में शी जिनपिंग का कोई विरोधी नहीं है?

राहुल मिश्र
१७ अक्टूबर २०२२

20वीं पार्टी कांग्रेस की गहमागहमी के बीच अब तक लग रहा था कि शी जिनपिंग का निर्बाध शासन आने वाले कई सालों तक चलेगा. हालांकि दबे - छुपे ही सही महामहिम शी जिनपिंग के खिलाफ भी विरोध के स्वर उमड़ने लगे हैं.

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क्या जिनपिंग चीन के अविवादित नेता हैं
20वीं पार्टी कांग्रेस में शी जिनपिंगतस्वीर: Thomas Peter/REUTERS

इसकी ताजा झलक तब देखने को मिली जब 14 अक्टूबर को बीजिंग शहर के एक पुल पर जिनपिंग सरकार की नीतियों के खिलाफ दो बैनर लगे हुए दिखे. हालांकि सुरक्षा एजेंसियों ने आनन फानन में उन बैनरों को हटा दिया और साथ ही इसके जिम्मेदार लोगों की खोजबीन भी चालू कर दी, लेकिन इस बात से देश दुनिया में सनसनी सी मच गयी है.

पार्टी कांग्रेस के मद्देनजर चीन सरकार और सुरक्षा एजेंसियों में भी काफी हलचल है. सैलानियों की आवाजाही पर पहरा बढ़ा दिया गया है, कोविड के बहाने लगे क्वारंटाइन के नियमों को और कड़ाई से लागू कर दिया गया है. सोशल मीडिया पर उन दो बैनरों की तस्वीरों को हटाने के साथ ही बीजिंग प्रोटेस्ट शब्द को भी इंटरनेट से गायब कर दिया गया है.

शी जिनपिंग का विरोध

इन बैनरों पर लिखी बातें सीधे तौर पर आम जनता की चिंता और रोष दोनों को व्यक्त करती हैं. सरकार की जीरो कोविड की नीति और उससे जुड़े तमाम प्रतिबंधों से जनता में काफी रोष है. बैनर में यह भी लिखा है कि देश की जनता पाबंदियां नहीं आजादी चाहती है, उसे झूठ नहीं, सम्मान चाहिए.

क्या जिनपिंग चीन के अविवादित नेता हैं
20वीं पार्टी कांग्रेस में जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल पर मुहर लगने की पूरी संभावना हैतस्वीर: Huang Jingwen/Xinhua via AP/picture alliance

माओ के कल्चरल रेवोलुशन के बजाय उसे राजनीतिक सुधारों की अपेक्षा है साथ ही यह भी कहा गया है कि चीन की जनता अब अपने नेता को खुद चुनना चाहती है और उसे गुलाम नहीं नागरिक बनने की लालसा है. दूसरे बैनर पर नागरिकों से जिनपिंग की तानाशाही नीतियों और नीयतों से निपटने के लिए संघर्ष करने का आवाहन किया गया है. सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में धुएं के गुबार के बीच एक आदमी के नारे लगाने की बात भी सामने आयी है. उस आदमी का क्या हुआ यह अभी पता चलना बाकी है.

1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद से ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का लगातार वर्चस्व रहा है. बीते 73 सालों के इतिहास को देखा जाय तो साफ है कि इक्का दुक्का घटनाओं के अलावा देश में चीनी कम्यनिस्ट पार्टी और इसके चुने नेताओं का ही बोलबाला रहा है. इसी के मद्देनजरचीन की 20वीं पार्टी कांग्रेस बड़ा अहम स्थान रखती है.

16 अक्टूबर से शुरू हुई 20वीं पार्टी कांग्रेस एक हफ्ते तक चलेगी जिसमें शी जिनपिंग को तीसरी बार सत्ता की बागडोर थामना तय है. 2018 में पार्टी नेताओं ने राष्ट्रपति पद पर बने रहने की अधिकतम दो बार बने रहने की सीमा को खत्म कर जिनपिंग का रास्ता पहले ही साफ कर दिया था. पार्टी कांग्रेस को संबोधित करते हुए शी जिनपिंग ने नये सपने दिखाने और वादों के साथ ताइवान के खिलाफ ताकत का इस्तेमालकरने की धमकियां दोहराई हैं.  

माओ त्से तुंग के बाद सबसे ताकतवर नेता

देश की राजनीति के, खास तौर पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग  के भविष्य के लिए यह एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है. जहां तक शी जिनपिंग के व्यक्तिगत कैरियर का सवाल है, तो यह बात तो तय है कि जिनपिंग पहले ही चीन की राजनीति के एक बड़े स्तंभ बन चुके हैं. 

जानकारों का मानना है कि जिनपिंग माओ त्से तुंग के बाद चीन के अब तक के सबसे ताकतवर नेता हैं. इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि माओ की तर्ज पर जिनपिंग के विचारों को भी पार्टी की नीतियों में शामिल किया गया है.

क्या जिनपिंग चीन के अविवादित नेता हैं
बीते दशकों में जिनपिंग चीन के अकेले नेता हैं जो सुप्रीम लीडरशीप की तरफ जा रहे हैंतस्वीर: Mark Schiefelbein/AP Photo/picture alliance

14 सिद्धांतों से लैस शी जिनपिंग के विचारों का जिक्र औपचारिक तौर पर पहली बार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की १९वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में 2017 में हुआ था. उसी साल इन सिद्धांतों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान में भी शामिल कर लिया गया. अगले साल 2018 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान की प्रस्तावना में भी शी जिनपिंग के विचारों की बात को जोड़ दिया गया.

जिनपिंग ने पिछले 10 सालों में तेजी से अपनी ताकत बढ़ाई है. 2012 में सत्ता संभालने के पहले से ही जिनपिंग ने अपना गेमप्लान शुरू कर दिया था. पहले पार्टी की बागडोर अपने हाथों में ली और फिर राष्ट्रपति पद और पीपल्स लिबरेशन आर्मी के चीफ कमांडर की गद्दी - एक के बाद चीनी सत्ता के सबसे बड़े प्रतिष्ठानों पर अपना आधिपत्य जमाया है.

जिनपिंग की अमर होेने की इच्छा

जैसे जैसे जिनपिंग का सत्ता पर कब्जा बढ़ा है, उनकी अमर होने की इच्छाएं भी बढ़ती गयी हैं. हालांकि इन तमाम नीतियों और सख्त पहरेदारी के बावजूद यह भी सच है कि सत्ता को अनंत काल तक चलाने का कोई फूलप्रूफ फॉर्मूला तो है नहीं. और इस लिहाज से यह भी लाजमी है कि एक ना एक दिन जिनपिंग को भी जाना होगा.

देश के सर्वोच्च नेता के तौर पर शी जिनपिंग के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं. अमेरिका से झगड़ कर जिनपिंग ने चीन में राष्ट्रवाद की भावना तो भड़का दी लेकिन कविड से कराहती अर्थव्यवस्था को राह दिखाना भूल से गए, रूस यूक्रेन युद्ध, भारत, ताइवान, यूरोपीय संघ, और ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए झगड़ों ने चीन की अर्थव्यवस्था को चोट ही पहुंचाई है.

चीन और उसके तमाम लोगों को यही उम्मीद है कि शायद जिनपिंग की नीतियों में कुछ ऐसा हो जिससे देश वापस उसी तेजी से बढ़ सके जिससे चीन को कोविड काल की समस्याओं से छुटकारा मिल सके.

पिछले हफ्ते हुए आम जनता के कुछ लोगों के विरोध से भी फिलहाल जिनपिंग को कोई खतरा नहीं है. जिनपिंग से सामने शायद सबसे बड़ी समस्या यही है जनता में विरोध करने का कीड़ा कैसे खतम करें. इन बातों के जानने और मसहूस करने दोनों के लिए जनता से जुड़ने की जरूरत है और यह बात एक पार्टी सरकारों के लिए कहनी जितनी आसान है, कर गुजरना उतना ही मुश्किल. आज अगर इन समस्यों को समय रहते समझबूझ से निपटाया नहीं गया तो चीन की नियति बदलने में भी समय नहीं लगेगा.

(डॉ. राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के आसियान केंद्र के निदेशक और एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं. आप @rahulmishr_ ट्विटर हैंडल पर उनसे जुड़ सकते हैं.)