मोटे अनाज पर सरकार का जोर, किसानों को कितना फायदा
२ फ़रवरी २०२३2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स या मोटा अनाज वर्ष के तौर पर घोषित किया गया है. केंद्र सरकार बढ़ चढ़कर इस अनाज को प्रोत्साहित कर रही है और इसके प्रचार और उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है. मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, कुट्टु, काकुन, चीना, सांवा, कोदो आदि शामिल हैं.
उप सहारा अफ्रीका और एशिया के लाखों छोटे किसान इन्हें आवश्यक मुख्य अनाज की फसलों के रूप में उगाते हैं. मोटे अनाज को गरीबों का अनाज भी कहा जाता है. इसके कई कारण हैं जैसे कि इसका इस्तेमाल भोजन, चारा और जैव ईंधन बनाने के लिए होता है.
मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए योजना
एक फरवरी को पेश बजट में वित्त मंत्री ने ऐलान किया कि बाजरा, कोदो, सांवा जैसे मोटे अनाज को बढ़ावे देने के लिए श्रीअन्न योजना शुरू की जाएगी. उन्होंने कहा, "हम परंपरा में शामिल अच्छा स्वास्थ्य देने वाले भोजन कर सकें और दुनिया को भारत की परंपरा से अवगत करा सकें."
सीतारमण ने अपने भाषण में कहा, "भारत मिलेट्स को लोकप्रिय बनाने के काम में सबसे आगे है, जिसकी खपत से पोषण, खाद्य सुरक्षा और किसानों के कल्याण को बढ़ावा मिलता है." उन्होंने आगे कहा, "भारत, विश्व में श्रीअन्न का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. भारत में कई प्रकार के श्रीअन्न की खेती होती है, जिसमें ज्वार, रागी, बाजरा, कुट्टु, रामदाना, कंगनी, कुटकी, कोदो, चीना और सामा शामिल हैं."
ठोस नीति की कमी
हालांकि जानकार कहते हैं कि बजट में मोटे अनाज को लेकर जो कुछ कहा गया है वह सिर्फ एक प्रचार भर है. रूरल वॉयस के संपादक हरवीर सिंह कहते हैं कि बजट में वित्त मंत्री ने मोटे अनाज पर बात की है लेकिन उन्हें यह नहीं नजर आता कि इससे किसानों की आय में ज्यादा बढ़ोतरी कैसे होगी. उनका कहना है कि मोटे अनाज को लेकर पब्लिसिटी अच्छी है और लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि इसे खाने से सेहत अच्छी रहेगी.
वो कहते हैं, "लेकिन कोई ठोस नीति नहीं है कि सरकार किसानों से मोटा अनाज खरीदेगी की नहीं या कोई स्कीम होगी जिसमें लोगों को मोटा अनाज सरकार से मिलेगा. अगर इस तरह की कोई स्पष्टता होती तो ज्यादा बेहतर होता. वैसा कुछ नहीं है."
मोटे अनाज के लिए रिसर्च इंस्टीट्यूट
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में मोटे अनाज को लेकर कई फायदे भी गिनाए. उन्होंने कहा कि इन अनाजों के ढेरों स्वास्थ्य फायदे हैं और यह सदियों से हमारे भोजन का मुख्य अंग बने रहे हैं. उन्होंने कहा, "भारत को श्रीअन्न के लिए वैश्विक केन्द्र बनाने के लिए भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद को उत्कृष्टता केन्द्र के रूप में बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि यह संस्थान सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों, अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साझा कर सके."
हरवीर सिंह सवाल करते हैं कि किसान आखिर मोटे अनाज को क्यों उगाएगा. वो कहते हैं, "उसके इसे उगाने के लाभ क्या है. अगर सरकार कहती है कि किसान जो मोटा अनाज उगाएगा उसे वह खरीदेगी तो किसान आश्वस्त होगा. लेकिन वैसा कुछ बताया नहीं गया है."
हालांकि मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को धान के मुकाबले पानी की कम जरूरत पड़ती है और यूरिया अन्य रसायनों की जरूरत नहीं पड़ती है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में पैदा होने वाले मोटे अनाज में 41 प्रतिशत तक भारत में पैदा होता है. साल 2021-22 में मोटे अनाजों को एक्सपोर्ट करने में भारत ने 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है. भारत में पैदा होने वाले मोटे अनाज जैसे बाजरा, रागी, ज्वार और कुट्टु अमेरिका, यूएई, ब्रिटेन, नेपाल, सऊदी अरब, यमन, लीबिया, ओमान और मिस्र जैसे देशों में निर्यात किए जाते हैं.
2018 में भारत सरकार ने मोटे अनाज को पोषक अनाज की श्रेणी रखते हुए इन्हें बढ़ावा देने की शुरूआत की थी. मौजूदा समय में 175 से अधिक स्टार्टअप मोटे अनाज पर काम कर रहे हैं.
इसी साल भारत में होने वाले जी-20 सम्मेलन में विदेशी नेताओं के सामने मोटे अनाज से बने पकवानों को भी परोसा जाएगा.