अपने दवा निर्यात को बचाने की पूरी कोशिश कर रहा है भारत
६ अप्रैल २०२३भारत का विदेश मंत्रालय अफ्रीका में कई देशों के अधिकारियों के संपर्क में है और भारतीय अधिकारी उनके साथ बैठक कर रहे हैं ताकि देश के दवा निर्यात पर हाल की घटनाओं का असर ना पड़े.पिछले साल गांबिया, उसके बाद उज्बेकिस्तान और फिर हाल ही में अमेरिका में भारत में बनी दवाओं के कारण लोगों के बीमार होने और बड़ी संख्या में मौतें होने की खबरों से देश का दवा उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है.
भारतीय दवा उद्योग दुनिया के सबसे बड़े उद्योगों में से है लेकिन हाल की घटनाओं से उसकी छवि खराब हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य एजेंसियों की जांच में भारत में बनी कुछ दवाओं में जहरीले तत्व पाए गए. पिछले साल गांबिया में भारत में बनी खांसी की दवा लेने से 70 बच्चों की जान जाने की खबर आई. उसके बाद उज्बेकिस्तान में भी 19 बच्चों की जान गई.
भारत की कूटनीतिक कोशिशें
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि इस संकट से निपटने के लिए कार्रवाई की जा रही है. व्यापार और उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री सुप्रिया पटेल ने बताया कि सरकार इस बारे में काम कर रही है. उन्होंने कहा, "विदेशों में भारतीय मिशन के अधिकारी विदेशी अधिकारियों लगातार संपर्क में हैं ताकि दवा नियामकों का भरोसा बना रहे.”
पटेल ने बताया कि हाल ही में भारत की फार्मास्युटिकल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने कई देशों का दौरा भी किया. उन्होंने कहा, "काउंसिल का एक प्रतिनिधिमंडल हाल ही में अफ्रीकी और राष्ट्रमंडल देशों के दौरे पर गया था और उन्होंने वहां दवा नियामक व दवा उद्योग एजेंसियों से मुलाकात की ताकि उन्हें भारत में बने उत्पादों की गुणवत्ता का भरोसा दिलाया जा सके.
राज्य मंत्री ने कहा की एक्सपोर्ट काउंसिल ने भारत के निर्यातकों के साथ "गुणवत्ता प्रबंधन और अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रति जागरूकता” के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाएं भी आयोजित की हैं.
भारत जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा सप्लायर है और दुनिया के कुल जेनरिक उत्पादन का 20 फीसदी सप्लाई करता है. देश में तीन हजार से ज्यादा दवा कंपनियां हैं जो 10,500 से ज्यादा फैक्ट्रियों के नेटवर्क के जरिए इन दवाओं का उत्पादन करती हैं. 2014 से 2022 के बीच भारत का दवा निर्यात दोगुने से भी ज्यादा बढ़कर 24.6 अरब डॉलर पर पहुंच गया है.
आरोपों से भारत का इनकार
पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में गांबिया में खांसी की दवा पीने से 70 बच्चों की मौत हो गई थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दवा की जांच के बाद उसमें जहरीले तत्वों की मौजूदगी की बात कही. ये दवाएं भारत में बनाई गई थीं. हालांकि भारत का कहना है कि उसने खांसी की दवा के नमूनों की जांच की है और उसे सभी मानकों पर सही पाया है. उसने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में बनी खांसी की दवा से इन मौतों को जोड़ने में जल्दबाजी की, जिससे दुनिया में उसकी छवि को नुकसान पहुंचा.
भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) के डॉ. वीजी सोमानी ने इसी साल विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक (रेग्युलेशन एंड प्रीक्वॉलिफिकेशन) डॉ. रोजेरियो गैसपर के नाम एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक बयान को "दुर्भाग्य से वैश्विक मीडिया ने बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जिसमें भारतीय औषधीय उत्पादों की गुणवत्ता को निशाना बनाया गया.”
डीसीजीआई के मुताबिक गांबिया ने कहा है कि आमतौर पर भारत में बनी खांसी की दवा और बच्चों की मौतों में कोई सीधा संपर्क नहीं मिला है. हालांकि डीसीजीआई ने यह बात गांबिया के मीडिया में आई खबरों के आधार पर ही कही है. ऐसी खबरें आई थीं कि गांबिया में जिन बच्चों की मौतें हुईं, उनमें से कुछ ने विवादित खांसी की दवा नहीं ली थी.
एक के बाद एक मामले
गांबिया के बाद उज्बेकिस्तान में भी ऐसी ही घटना हुई जब भारत में बनी एक दवा डॉक-1 मैक्स के कारण 19 लोगों की मौत का आरोप लगा. इस दवा को नोएडा स्थित दवा कंपनी मैरियन बायोटेक ने बनाया था. मंत्रालय ने बताया कि दवा की जांच कराई गई थी जिसमें एथिलीन ग्लाइकोल नाम का दूषणकारी तत्व पाया गया. इस मामले में पुलिस ने कंपनी के तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया.
ताजा मामला अमेरिका का है. अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेशन (सीडीसी) के हवाले से रिपोर्ट दी है कि अमेरिकी सरकार ने एक भारतीय कंपनी द्वारा निर्मित आईड्रॉप के इस्तेमाल पर चिंता जाहिर की है. अमेरिकी के शीर्ष मेडिकल वॉचडॉग ने इस ड्रॉप में दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया होने की संभावना जताई है. सीडीसी चिंतित है कि भारत से आयातित दवा में मिला दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया अमेरिका में पैर जमा सकता है.
चेन्नई स्थित दवा कंपनी ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर ने यह दवा बनाई है. अखबार के मुताबिक संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने कहा कि अमेरिका में पहले इस स्ट्रेन का पता नहीं चला था और मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इसका इलाज करना मुश्किल है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने (सीडीसी) के अधिकारियों के हवाले से खबर दी है कि इस आईड्रॉप के इस्तेमाल से कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई, दर्जनों लोग संक्रमण के शिकार हो गए और आठ लोगों ने आंखों की रोशनी गंवा दी.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)