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पिछले तीन वर्षों में चार गुना हुई डिजिटल भुगतान की संख्या

२८ जून २०२४

भारत में पिछले तीन वर्षों में मासिक रियल-टाइम भुगतान में चार गुना की बढ़ोतरी हुई है और लेनदेन की संख्या 2.6 अरब से बढ़कर 13.3 अरब हो गई है.

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डिजिटल पेमेंट के लिए क्यूआर कोड
भारत में पिछले तीन वर्षों में मासिक रियल-टाइम भुगतान में चार गुना की बढ़ोतरी हुई हैतस्वीर: Payel Samanta/DW

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप-क्यूईडी इन्वेस्टर्स की ओर से जारी रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में रियल-टाइम पेमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर में डायरेक्टरी और क्यूआर कोड की उपलब्धता इनोवेशन को बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट 60 ग्लोबल फिनटेक सीईओ और निवेशकों के इंटरव्यू से मिली जानकारी के आधार पर तैयार की गई है.

रिपोर्ट के मुताबिक भारत की इस उपलब्धि में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और सरकार की काफी अहम भूमिका है. भारत सरकार की ओर से हाल ही में फिनटेक को केवाईसी (नो योर कस्टमर) और को-लेंडिंग के लिए स्टैंडर्ड का स्पष्टीकरण देने को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया गया है.

ग्राहकों को ज्यादा शक्ति देने की योजना

रिपोर्ट में फोनपे के रणनीति और निवेशक संबंधों के प्रमुख कार्तिक रघुपति के हवाले से कहा गया है, "कई देशों ने दो प्रमुख खिलाड़ियों भारत के यूपीआई और ब्राजील के पिक्स की सफलता का अनुसरण करने की कोशिश की है. हालांकि, इन प्रयासों की सीमित सफलता से पता चलता है कि डिजिटल पहचान या रियल-टाइम भुगतान प्रणालियों के लिए बिंदु समाधानों के अलग-अलग कार्यान्वयन व्यापक रूप से अपनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं."

यूपीआई भारत की मोबाइल-आधारित तेज भुगतान प्रणाली है, जो ग्राहकों को वर्चुअल पेमेंट एड्रेस (वीपीए) का इस्तेमाल करके चौबीसों घंटे तुरंत भुगतान करने की अनुमति देती है. भारत में रिटेल डिजिटल पेमेंट्स के लिए इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है.

यूपीआई की सफलता

बीते कुछ सालों से भारत में डिजिटल भुगतान तेज हुआ है. छोटी मोटी खरीदारियां भी यूपीआई जैसे माध्यमों से की जा रही हैं. इसके जरिए छोटी रकम का भुगतान रियल-टाइम में बैंक खातों के बीच होता है. अधिकारियों का कहना है कि यूपीआई ने बैंकिंग सेवाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाने में मदद की है.

दुनियाभर में नगदी का इस्तेमाल घट रहा है. महामारी के दौरान इस चलन ने और जोर पकड़ा. हालांकि इतने पर भी विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया में 1.7 अरब वयस्कों के पास आज भी बैंक खाते नहीं हैं.

रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले कुछ वर्षों में कई चुनौतियों का सामना करने के बाद भी भारत में फिनटेक इंडस्ट्री में विकास की काफी संभावनाएं हैं.