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तालिबान की भारत में ट्रेनिंग पर विवाद

१४ मार्च २०२३

मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि भारतीय विदेश मंत्रालय का एक संस्थान तालिबान को ट्रेनिंग देने वाला है. मंत्रालय ने अभी इन दावों पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत का यह कदम सही है.

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तालिबान
काबुल में अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद और तालिबान के अन्य नेतातस्वीर: WAKIL KOHSAR AFP via Getty Images

मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि विदेश मंत्रालय के एक विभाग "इंडियन टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन" द्वारा आयोजित एक ट्रेनिंग कोर्स में तालिबान के सदस्य हिस्सा लेंगे. यह कोर्स चार दिनों का है और मंत्रालय इसे आईआईएम कोरिकोड के जरिए आयोजित करवा रहा है.

यह एक ऑनलाइन कोर्स है, इसलिए इसमें भाग लेने वालों को भारत आने की जरूरत नहीं है. विशेष रूप से विदेशी प्रतिभागियों के लिए डिजाइन किए गए इस कोर्स का शीर्षक है "इमर्सिंग विथ इंडियन थॉट्स".

तालिबान को ट्रेनिंग

संस्थान की वेबसाइट के मुताबिक इस कोर्स में विदेशी सरकारी अधिकारियों, कारोबारियों, प्रबंधकों आदि को भारत के "आर्थिक माहौल, नियामक तंत्र, सामाजिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, सांस्कृतिक विरासत, कानूनी और पर्यावरण संबंधी व्यवस्था, उपभोक्ता मानसिकता और कारोबारी जोखिम के बारे में बताया जाता है."

'कैद जैसा है' तालिबान का राज

वेबसाइट पर ही यह भी जानकारी दी गई है कि कोर्स 14 से 17 मार्च तक आयोजित किया जाएगा और अभी तक इसमें 25 प्रतिभागियों ने हिस्सा लेने की पुष्टि की है. मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने अफगानिस्तान के तालिबान के सदस्यों को भी इसमें भाग लेने का न्योता दिया था, जिसे तालिबान ने स्वीकार कर लिया.

इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने दावा किया है कि इस कोर्स में अफगानिस्तान के अलावा थाईलैंड और मलेशिया से भी प्रतिभागी हिस्सा लेंगे. "द हिंदू" अखबार ने दावा किया है कि काबुल में भारत के तकनीकी दूतावास ने तालिबान के विदेश मंत्रालय को इस कोर्स के बारे में जानकारी दी थी.

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को अभी तक किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है, लेकिन करीब 15 देशों ने काबुल में अपने दूतावास फिर से खोल दिए हैं. भारत भी इन देशों में शामिल है. विदेशी मामलों के जानकारों ने भारत द्वारा तालिबान को प्रशिक्षण देने पर चिंता व्यक्त की है.

ट्रेनिंग पर विवाद

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो सुशांत सिंह का कहना है कि तालिबान और म्यांमार की सैन्य सरकार के प्रति भारत का रवैया समझ से परे है. उन्होंने एक ट्वीट में कहा, "भारत के हितों को न तो इतने संकरे रूप से परिभाषित किया जा सकता है ना मूलभूत मूल्यों के अधीन रखा जा सकता है."

साथ ही मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस ट्रेनिंग पर उन अफगान विद्यार्थियों ने भी खेद जताया है जो भारतीय संस्थानों में अलग अलग कोर्स कर रहे थे लेकिन तालिबान के सत्ता में लौट आने के बाद हुई उथल पुथल की वजह से उनकी पढ़ाई रुक गई. करीब 3,000 अफगान छात्र 2021 में गर्मी की छुट्टियों में अफगानिस्तान गए थे लेकिन वो अभी तक वापस नहीं लौट सके हैं.

तालिबान के सत्ता हथिया लेने के बाद भारत ने उन छात्रों के वीजा भी रद्द कर दिए थे. मैसूर विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे ऐसे ही एक अफगान छात्र ओनिब दादागर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि वो तालिबान अधिकारियों के लिए इस कोर्स के आयोजन के बारे में सुन कर स्तंभित हैं.

उन्होंने कहा, "भारत ने अफगान छात्रों को असहाय छोड़ दिया है. इनमें महिलाएं भी शामिल हैं. वो हमें ऑनलाइन कोर्स भी नहीं दे रहे हैं, हम में से कुछ को तो हमारे दाखिले के रद्द होने की चिट्ठी भी आ गई है, हम में से कुछ और भारत में रह रहे हमारे परिवारों से भी बिछड़ गए हैं."