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समाज

भारत में एक साल में 8.80 लाख बच्चों की मौत

६ जनवरी २०२०

राजस्थान के बाद अब गुजरात में भी बच्चों की मौत के मामले सामने आए हैं. गुजरात सरकार का कहना है कि आंकड़ा शिशु मृत्युदर के नीचे है और सरकार इसमें और कमी लाने के प्रयास कर रही है. एक साल में 8.80 लाख बच्चों की मौत हुई है

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/R.Shukla

राजस्थान के बाद गुजरात में भी बच्चों की मौत के मामले सामने आए हैं. केवल राजस्थान में ही दिसंबर महीने की शुरुआत से अब तक 109 बच्चों की मौत सरकारी अस्पताल में हो चुकी है. वहीं गुजरात के राजकोट और अहमदाबाद के सिविल अस्पतालों में पिछले एक महीने में ही करीब 200 बच्चों की मौत हो चुकी है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में पांच साल से कम उम्र के 8.80 लाख बच्चों की मौत भारत में हुई है. इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि चार करोड़ बच्चे या तो कुपोषित हैं या मोटापे से पीड़ित हैं.

राजस्थान के कोटा के जेके लोन अस्पताल में 36 दिन में 109 की बच्चों की मौत हो चुकी है. सरकारी अस्पतालों में बच्चों की मौत के बाद ऐसी रिपोर्टें आईं हैं जिनमें अस्पताल में 50 फीसदी जीवन रक्षा यंत्र को खराब पड़ा बताया गया है. साथ ही यह खुलासा भी हुआ कि अस्पताल में कर्मचारियों की बहुत कमी है. राजस्थान और गुजरात जैसे बड़े राज्यों में बच्चों की मौत से देश में स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय हालत पर सवाल खडे़ हो रहे हैं.

राजस्थान में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की किरकिरी हो रही है. विपक्षी पार्टी सरकार पर लापरवाही के आरोप लगा रही है. पिछले दिनों बीजेपी सांसदों के एक दल ने कोटा के जेके लोन अस्पताल का दौरा किया था. टीम में शामिल सांसद लॉकेट चटर्जी ने डीडब्ल्यू से कहा, "राजस्थान सरकार असंवेदनशील है, अस्पताल के हालात बेहद खराब और चिंताजनक है, अस्पताल के अंदर जाना भी मुश्किल है. हमने देखा वहां हर तरफ गंदगी फैली हुई थी. हर तरफ सुअर घूम रहे थे. एक-एक बेड पर चार-चार बच्चे पड़े हुए थे."

मृत बच्चे के माता पिता से मुलाकात के बाद चटर्जी ने कहा, "बच्चे के माता-पिता ने हमें बताया कि अस्पताल में डॉक्टरों, नर्सों और दवा की बेहद कमी है." चटर्जी ने सवाल किया कि ऐसे हालात में बच्चे किस तरह से स्वस्थ होंगे और जीवित बचेंगे. दूसरी ओर अशोक गहलोत उस बयान को लेकर भी घिर गए हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके कार्यकाल में मौतों की संख्या वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल से कम है. दूसरी ओर जेके लोन अस्पताल का दौरा करने के बाद उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने माना कि कहीं कोई कमी रह गई तभी यह सब हुआ और अब जिम्मेदारी तय होनी चाहिए.

Indien Uttar Pradesh Krankenhaus Kind mit Sauerstoffmaske
सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली.तस्वीर: Imago/Hindustan Times/D. Gupta

जेके लोन अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर एससी दुलारा के मुताबिक अस्पताल में अब तक 109 बच्चों की मौत हो चुकी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तीन सदस्यीय टीम मौतों की जांच कर रही है और जल्द ही अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपेगी. जेके लोन अस्पताल में एक तिहाई मौत नवजात गहन चिकित्सा इकाई में हुई है. जानकारों का कहना है कि अस्पतालों में गंदगी और सुविधाओं की कमी भी मौत का कारण हो सकते हैं. इसी के साथ दिसंबर महीने में पूरा उत्तर भारत कड़ाके की ठंड की चपेट था और मीडिया में बच्चों की मौत की खबरें आने के बाद अस्पताल में भर्ती मरीज के रिश्तेदारों का कहना है कि अब अस्पताल प्रशासन मरीजों को कंबल और रूम हीटर मुहैया करा रहा है.

गुजरात में भी बच्चों की मौत

राजस्थान के बाद गुजरात के राजकोट और अहमदाबाद में बच्चों की मौत की खबरें आ रही हैं. दिसंबर के महीने में राजकोट के सरकारी अस्पताल में जहां 111 नवजातों की मौत हुई वहीं अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल में 88 बच्चों की मौत हुई है. गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने नवजातों की मौतों को दुर्भाग्य बताया साथ ही कहा कि राज्य में शिशु मृत्यु दर के नीचे है. उनके मुताबिक गुजरात में नवजात बच्चों की मौत के कुल मामलों में कमी आई है. पटेल के मुताबिक नवजात शिशुओं के कम वजन, अस्वस्थ माता, अनुचित गर्भावस्था प्रथा, मां और शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी मौतों का कारण हो सकते हैं.  साथ ही पटेल ने दावा किया कि गुजरात सरकार बाल मृत्युदर और नवजात शिशुओं की चिकित्सा सुविधा पर पहले से ही विशेष ध्यान दे रही है और यही कारण है कि राज्य में मृत्युदर में कमी आई है.

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