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इलेक्टोरल बॉन्ड से किसे फायदा किसे नुकसान

२२ नवम्बर २०१९

चुनाव में इलेक्टोरल बॉन्ड के इस्तेमाल पर विपक्ष आग बबूला है, आखिर इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है और यह कैसे काम करता है जाानिए.

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Indien Einführung neuer Währung - neue Rupie
तस्वीर: Reuters/J. Dey

आम बजट 2017-18 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का एलान किया था. बजट में इस बात पर जोर दिया गया था कि इससे राजनीतिक दलों के वित्तीय पोषण और चंदे में पारदर्शिता आएगी. इससे पहले तक राजनीतिक दल को कोई भी व्यक्ति या कंपनी नकद में पैसे दे सकती थी, लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री ने नकद चंदे की सीमा 2000 रुपये प्रति व्यक्ति कर दी थी. सरकार की दलील थी कि इससे चुनावी फंडिंग में कालेधन का इस्तेमाल खत्म होगा और चुनाव लड़ने वाली पार्टी साफ धन का इस्तेमाल कर पाएगी. इस प्रस्ताव के पहले नकद चंदे की सीमा प्रति व्यक्ति 20 हजार रुपये थी. सरकार ने इस कदम को क्रांतिकारी करार दिया था.

छोटे दलों के सवाल

जब बजट में सरकार ने प्रति व्यक्ति नकद चंदे देने की सीमा घटाई तो अधिकतर छोटे दलों ने सवाल उठाया कि क्या इसका मकसद छोटे दलों को खत्म करना है. उनका तर्क था कि आमतौर पर लोग छोटे दलों को नकद में ही चंदा देते हैं. समाजवादी पार्टी, बीएसपी, टीएमसी , डीएमके समेत बड़े दल जैसे कांग्रेस और लेफ्ट अलग अलग मौके पर इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल उठाती आई है.

Indien Parlament in Neu Delhi
तस्वीर: UNI

राजनीति में चंदा देने वाले अक्सर बड़े कारोबारी, कॉरपोरेट घराने होते हैं, कई बार सरकार बदलने से इस बात की आशंका अधिक बढ़ जाती है कि क्या खास पार्टी को चंदा देने वाले को परेशान किया जा सकता है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि हो सकता है कि सत्ता परिवर्तन के बाद नई सरकार मोटे चंदे देने वालों पर दबाव डाल सकती है या फिर यह भी संभव है कि उन्हें परेशान भी कर सकती है. 

इलेक्टोरल बॉन्ड कैसे काम करता है?

अगर कोई शख्स चाहता है कि वह किसी राजनीतिक दल को चंदा दे तो, उसके पास विकल्प है कि वह 2000 रुपये नकद चंदे के रूप में दे या फिर वह बॉन्ड खरीद सकता है. केंद्र सरकार ने जो बॉन्ड जारी किए हैं उनमें 1000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुयये के मूल्यों के बॉन्ड हैं.

चुनावी चंदा का इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रोमेसरी नोट की तरह होता है. इसे भारत का कोई भी नागरिक खरीद सकता है लेकिन ये बॉन्ड केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं में ही उपलब्ध होते हैं. साथ ही यह वित्तीय वर्ष की हर तिमाही के पहले दिन ही उपलब्ध होते हैं. बॉन्ड खरीदने वाले को अपनी पूरी जानकारी बैंक को देनी पड़ती है जिसे केवाईसी भी कहा जाता है. इसे भुनाने के लिए राजनीतिक दल के पास 15 दिन का ही समय होता है. एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक 91 फीसदी चंदा एक करोड़ के बॉन्ड के रूप में दिए गए. इन बॉन्डों की संख्या करीब 5409 हैं, जबकि सबसे कम मूल्य के बॉन्ड की बात करें तो 1000 रुपये के बॉन्ड सिर्फ 47 ही बिके. इसी न्यूज रिपोर्ट में कहा गया कि सबसे अधिक मुंबई में बॉन्ड खरीदे गए. जिसकी कीमत करीब 1880 करोड़ रुपये है.  सबसे कम बॉन्ड हैदराबाद में खरीदे गए जिसकी कुल कीमत 846 करोड़ है.

Indien Arun Jaitley in Neu-Delhi
अरुण जेटलीतस्वीर: picture-alliance/dpa/EPA/Str

इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों लाया गया?

एनडीए सरकार हमेशा से ही इलेक्टोरल बॉन्ड के फायदे के पक्ष में बात करती है. सरकार का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की वजह से राजनीति स्वच्छ होगी और कालेधन का इस्तेमाल बंद हो पाएगा. उसका मानना है कि चुनावी प्रक्रिया में स्वच्छ धन इस्तेमाल होना चाहिए जिससे कि विधानसभा और संसद में साफ सुथरी छवि वाले नेता ही प्रवेश कर सकें.

एक और रोचक बात ये है कि यह बॉन्ड उन्हीं दल को दिए जा सकते हैं जिनको पिछले चुनाव में कुल वोटों का एक कम से कम फीसदी हिस्सा मिला हो. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक इस बात से सहमत नहीं हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीति स्वच्छ होगी. उनका मानना है कि जो भी दल सत्ता में रहेगा उसके खाते में ही अधिक राशि ही जाएगी ऐसी संभावना बनी रहती है.

कांग्रेस की आपत्ति

शीतकालीन सत्र में कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भारतीय जनता पार्टी को सबसे अधिक लाभ पहुंचा है. कांग्रेस पार्टी के नेता मनीष तिवारी का आरोप है कि ना तो चंदा देने वाले का पता है और ना ही कितने पैसे दिए गए यह पता चला. वहीं केंद्रीय रेल मंत्री ने इलेक्टोरल बॉन्ड का बचाव करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने राजनीति को स्वच्छ करने की दिशा में कदम उठाया है. उन्होंने कहा कि मोदी ने राजनीति में ईमानदार धन लाकर विरोधियों की जेब पर चोट किया.

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