'ना पीने वाले' जीव कोआला का जीना मुश्किल कर रही है बढ़ती गर्मी
खिलौने सा दिखने वाला बड़ा प्यारा जीव है कोआला. सलेटी-सफेद रंग, काली नाक, पनीली सी आंखों वाले इस जीव को लंबी गर्मियां और बढ़ता तापमान बहुत नुकसान पहुंचा सकती हैं.
कोआला माने वो, जो पीता नहीं
माना जाता है कि 'कोआला' शब्द ऑस्ट्रेलिया के मूलनिवासियों की एक भाषा से निकला है, जिसका मतलब होता है ना पीने वाला. अपनी कुदरती आबोहवा में रहने वाले कोआला पानी पीते नहीं दिखते. शरीर में पानी की जरूरत वो ज्यादातर पत्तियां खाकर पूरी करते हैं.
क्या है कोआला का पसंदीदा खाना
यूकेलिप्टस के ताजे पत्ते कोआला का मुख्य आहार भी हैं और पसंदीदा खाना भी. यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के मुताबिक, कुदरती आवास में रहने वाला एक कोआला दिनभर में यूकेलिप्टस के 510 ग्राम ताजा पत्ते खाता है. इससे उसे अपनी दैनिक पानी की खुराक का करीब 75 फीसदी हिस्सा मिल जाता है.
बदलती जलवायु का असर
अगर कभी जंगल में आग लग जाए या बहुत तेज गर्मी हो, तो जरूरत पड़ने पर कोआला पानी पी सकते हैं. हालांकि, जलवायु संकट के कारण अब ऐसे हालात अकसर बनने लगे हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फाउंडेशन के मुताबिक, अब कोआला को पानी पीते देखना ज्यादा आम होता जा रहा है. लंबी गर्मियों और सूखे के कारण पत्तियों से मिलने वाला पानी और पोषण घटता जा रहा है.
कोआला को भी बारिश की जरूरत
2020 में छपी एक स्टडी में शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने पहली बार जंगल में कोआला के पानी पीने के बर्ताव को करीब से देखा. पाया गया कि बारिश का पानी पेड़ के तने से होकर बहता है, तो कोआला इसे चाटते हैं. इसके लिए वो चिकने तने खोजते हैं.
सूखे का संकट
कोआला, ऑस्ट्रेलिया के बाशिंदे हैं. यहां भी वो केवल देश के दक्षिणपूर्वी और पूर्वी हिस्सों में पाए जाते हैं. 70 फीसदी ऑस्ट्रेलिया शुष्क से अर्ध-शुष्क इलाका है. बारिश भी कम होती है. बीते सालों में ऑस्ट्रेलिया लंबी अवधि के सूखे का सामना करता रहा है. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भविष्य में भी इसके जारी रहने का अनुमान जताया. उनके मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया पर 'मेगाड्राउट' का जोखिम है.
घर छिन जाएगा, खाना गुम हो जाएगा...
भीषण सूखे की यह स्थिति दो दशक लंबी खिंच सकती है. जलवायु संकट के कारण सूखे की स्थितियां कहीं बदतर हो सकती हैं. इसका कोआला जैसे संवेदनशील जीवों पर काफी गंभीर असर पड़ सकता है. पहले से ही सिकुड़ता उनका प्राकृतिक आवास और खाने के स्रोत और ज्यादा कम हो सकते हैं.
जंगल की आग
जंगल की आग जैसी आपदाएं नियमित हो गई हैं. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019-20 में बड़े स्तर पर लगी आग के कारण ऑस्ट्रेलिया में करीब 300 करोड़ जीव या तो मारे गए या अपना ठिकाना खो बैठे. इनमें 61,000 से ज्यादा कोआला भी थे. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जंगल की आग से कोआला को खासतौर पर नुकसान पहुंचा और उन्हें बड़ी संख्या में पुनर्वास की जरूरत पड़ी.
कितने कोआला हैं अभी
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के 2024 के आंकड़ों के मुताबिक, कोआला की मौजूदा आबादी एक लाख से पांच लाख के बीच हो सकती है. कुदरती परिवेश में रहने वाले कोआलाओं को देख पाना बहुत आसान नहीं होता, ऐसे में उनकी सटीक गिनती बहुत मुश्किल है. आईयूसीएन ने कोआला को "वलनरेबल" की श्रेणी में रखा है. ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण सुरक्षा और जैव विविधता कानून में इसे "संकटग्रस्त" श्रेणी में रखा गया है.
गुंथी हुई हैं दिक्कतें
इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेलफेयर के मुताबिक, पहले ऑस्ट्रेलिया में कई लाख कोआला रहते थे. अब क्वीन्सलैंड और न्यू साउथ वेल्स जैसे इलाकों में उनकी संख्या कम होती जा रही है. संगठन के मुताबिक, कई इलाके तो ऐसे हैं कि वहां अगर आपको जंगल में कोआला दिख जाएं, तो खुद को खुशकिस्मत समझिए. कुदरती बसाहट का खत्म होना, कम बरसात, सूखा, जंगल की आग, फैलते शहर... ये सभी कोआला जैसे कई जीवों के लिए दुष्चक्र की तरह है.