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बिहार का किशनगंज जिला, जहां टूट रहे हैं आबादी के रिकॉर्ड

१२ अप्रैल २०२३

बिहार भारत में जन्म दर के मामले में बाकी सब राज्यों से आगे है. किशनगंज में तो बच्चे पैदा करने के सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं. सरकारी कोशिशों के बावजूद वहां जनसंख्या पर नियंत्रण मुश्किल हो गया है.

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किशनगंज की आबादी काबू नहीं कर पा रही है सरकार
किशनगंज की आबादी काबू नहीं कर पा रही है सरकारतस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

प्रतिमा कुमारी बिहार में सरकारी स्वास्थ्यकर्मी हैं. अपने मिनी स्कूटर पर वह हर रोज किशनगंज जिले के गांवों के दौरे पर निकलती हैं और दूर-दूर तक जाकर युवा शादीशुदा जोड़ों से मिलती हैं. वह इन युवा जोड़ों को कॉन्डम और गर्भ निरोधक गोलियां मुफ्त में बांटती हैं और उन्हें दो ही बच्चे पैदा करने के फायदे बताती हैं.

लेकिन आंकड़ों की मानें तो प्रतिमा कुमारी एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही हैं. उनका किशनगंज जिला भारत में सर्वाधिक जन्म दर वाला जिला है. कुमारी बताती हैं, "जैसे ही मैं लोगों से कॉन्डम इस्तेमाल करने की बात करती हूं या स्थायी गर्भ निरोध कराने को कहती हूं, वे इसे या तो नजरअंदाज कर देते हैं या फिर बात बदल देते हैं.”

चीन को पीछे छोड़ भारत जल्द ही दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहा है.देश में दशकों से जनसंख्या नियंत्रण योजनाएं चल रही हैं लेकिन किशनगंज उन योजनाओं के लिए अपवाद साबित हुआ है. 2019-21 के बीच भारत की जन्म दर 2.0 रह गई थी, जो कि आबादी बढ़ते रहने के लिए जरूरी 2.1 से नीचे है. लेकिन सबसे कम विकसित राज्यों में से एक बिहार में यह दर 2.98 है और अधिकारियों का अनुमान है कि किशनगंज में जन्म दर 4.8 या 4.9 है.

राज्य की पिछली विभिन्न सरकारें कहती रही हैं कि वे बिहार और खासकर किशनगंज में अत्यधिक जन्म दर की समस्या के बारे में जानती हैं और इस पर नियंत्रण के लिए अलग-अलग योजनाएं भी लागू करती रही हैं. इन योजनाओं में मुफ्त में कॉन्डम और गर्भ निरोधक गोलियां बांटने के अलावा स्थायी गर्भ निरोध के लिए ऑपरेशन कराने के लिए वित्तीय सहायता देना भी शामिल है. राज्य में स्थायी गर्भ निरोध कराने पर महिलाओं को 3,000 रुपये और पुरुषों को 4,000 रुपये दिए जाते हैं. ऐसा हर केस लाने पर स्वास्थ्यकर्मियों को 500 रुपये मिलते हैं. लेकिन अब तक तो ये योजनाएं नाकाम ही रही हैं.

नसबंदी का डर

किशनगंज के सात स्वास्थ्य केंद्रों में से एक की प्रमुख पार्वती रजक कहती हैं कि डिलीवरी के दौरान वह महिलाओं के साथ ही आपरेशन कराने के बारे में बात करती हैं. वह बताती हैं, "जब वे डिलीवरी के दर्द से गुजर रही होती हैं तभी मैं उनसे ऑपरेशन के बारे में बात करती हूं और डिलीवरी के बाद ही इसे कराने के लिए समझाती हूं. लेकिन फैसला तो आखिर परिवार के साथ ही लिया जाता है.” इस इंटरव्यू से ठीक पहले रजक ने एक महिला की डिलीवरी कराई थी, जो उसका पांचवां बच्चा था.

लोगों में स्थायी गर्भ निरोध को लेकर डर और झिझक बहुत ज्यादा है. चार बच्चों की मां और पांचवें की तैयारी कर रहीं जहां शेख कहती हैं कि वह स्थायी गर्भ निरोध के खिलाफ हैं. शेख बताती हैं कि उनकी मां ने उनसे कहा था कि कि पांच बच्चे तो होने ही चाहिए क्योंकि वे खेत और घर में कामकाज में मदद करेंगे. वह कहती हैं, "पता नहीं, मुझे तो ऑपरेशन के नाम से ही डर लगता है. अगर बाद में कोई दिक्कत हो गई तो? फिर मेरे बच्चों का ख्याल कौन रखेगा?”

महिलाएं ऑपरेशन कराने से घबराती हैं
महिलाएं ऑपरेशन कराने से घबराती हैंतस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

2021 में बिहार की योजना और विकास रिपोर्ट ने कहा कि 2020 में राज्य के 8,71,307 लोगों ने स्थायी गर्भ निरोध का ऑपरेशन कराने का लक्ष्य तय किया था लेकिन इसके आधे से भी कम 4,01,693 लोगों ने ही ऑपरेशन कराया. स्वास्थ्यकर्मी कहते हैं कि पुरुष नसबंदी कराने से मना करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी मर्दानगी पर असर पड़ेगा. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के सिर्फ 0.2 फीसदी पुरुषों ने नसबंदी कराई है जबकि महिलाओं में यह दर 22.8 फीसदी है.

सिक्किम की आबादी बढ़ाने के लिए सरकार की अनूठी पहल

किशनगंज के सरकारी अस्पताल में अपने पांचवें बच्चे को जन्म देने के फौरन बाद एक राज मिस्त्री की पत्नी जमेरुन कहती हैं कि वह ऑपरेशन कराने के बारे में अपने पति से बात करेंगी. उन्होंने बताया, "मेरा शरीर और बच्चे पैदा करने का दबाव नहीं झेल सकता. हर बार मैं किस्मत से ही बची हूं.” हालांकि इस इंटरव्यू के बाद जमेरुन के पति ने मंजूरी दे दी और ऑपरेशन करवा लिया गया.

‘पांच बच्चे तो होने ही चाहिए'

इस रिपोर्ट के लिए रॉयटर्स ने 14 महिलाओं और छह सरकारी स्वास्थ्य अधिकारियों से बात की. 14 में से आठ महिलाओं ने कहा कि उनका परिवार चाहता है कि वे कम से कम 5 बच्चे पैदा करें. बेटों को हमेशा तरजीह दी जाती है. अपनी डिलीवरी के बाद मुश्किल से आंसू रोक पा रहीं 36 वर्षीय चांदनी देवी कहती हैं, "चौथी बार मुझे बेटी हुई है. अब मैं कुछ साल के लिए इंतजार करूंगी और फिर बेटा जन्मने की कोशिश करूंगी.”

102 बच्चे पैदा करने वाले मूसा

सरकारी अधिकारी कहते हैं कि लोगों की सोच को बदलना एक बेहद मुश्किल काम है. बिहार के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव कहते हैं कि परिवार नियोजन को अनिवार्य तो नहीं बनाया जा सकता. आठ भाई-बहनों के परिवार में पले बढ़े तेजस्वी कहते हैं, "हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन लोकतंत्र में आपकी सीमाएं होती हैं. परिवार नियोजन को थोपा नहीं जा सकता.”

बिहार सरकार में अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय के निदेशक संजय कुमार पंसारी कहते हैं कि राज्य में भी धीरे-धीरे स्थिति बदल रही है और जन्म दर में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं. उन्होंने बताया, "राज्य सरकार का ध्यान यह सुनिश्चित करने पर है कि नीतियां जमीन तक पहुंचें. मुफ्त ऑपरेशन और अस्थायी गर्भ निरोध जैसे उपायों को बढ़ावा दिया जा रहा है.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

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