टिकाऊ खेती फैशन उद्योग को चिंता कैसे मिटा सकती है
२८ अक्टूबर २०२३तुर्की के एजियन तट के पास खेत के एक हिस्से पर अंकुरित कपास की फसलों की कतारों के बीच, गेहूं और चुकंदर के सूखे तने मानो वहां कालीन बिछा रहे हों. ये तने चिलचिलाती गर्मी में भी मिट्टी के पोषक तत्वों और नमी को बनाए रखने में मदद करते हैं.
आस-पास के खेतों में, जहां कपास बिना इस तरह के सुरक्षा आवरण के उगाई जा रही है, उन खेतों के पौधे गर्मी की वजह से मुरझाकर सूख जाते हैं.
ये खेत आयदिन प्रांत के सोके नगरपालिका के अधीन है और इसका स्वामित्व कपास निर्माता कंपनी सोकतास के पास है. खेत के मैनेजर बसाक एर्डेम कहते हैं, "स्वस्थ मिट्टी का मतलब है स्वस्थ कपास.”
15 कारों के बराबर कार्बन उत्सर्जन रोका
सोकतास ने चार साल पहले करीब एक हेक्टेअर जमीन को खेती लायक बनाया. जमीन को खेत के लायक बनाने और इसकी कार्बन भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए कंपनी ने प्राकृतिक तरीकों को अपनाया. उसके बाद से इस जमीन की मिट्टी हर साल करीब 18 टन कार्बन अवशोषित करने लगी है.
एक अमरीकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी की गणना के मुताबिक, कार्बन की यह मात्रा उतनी है जितनी कि करीब 15 पेट्रोल कारें साल भर में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं.
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समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए एर्डेम कहते हैं, "हम देख रहे हैं कि हर साल परिणाम बेहतर हो रहे हैं.”
इस तरह की खेती के लिए सोकटास की शुरुआत साल 2018 में मशहूर ब्रांड स्टेला मैक्कार्टनी ने की थी जो कंपनी से कपास खरीदती है. इसे रिजेनरेटिव फार्मिंग कहा जाता है. अब उसके पास 90 हेक्टेअर में फैले ऐसे खेत हैं जिन में इसी तरीके से खेती होती है.
फैशन ब्रांडों को पर्यावरण की चिंता
प्राकृतिक स्रोतों के अत्यधिक उपयोग और उनकी बर्बादी के लिए कुख्यात फैशन उद्योग भी हाल के कुछ वर्षों से पर्यावरण की ओर ध्यान देने लगा है और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की कोशिश कर रहा है. इसके लिए उद्योग संयुक्त राष्ट्र के फैशन इंडस्ट्री चार्टर फॉर क्लाइमेट एक्शन के साथ काम कर रहा है. इसका लक्ष्य साल 2050 तक उद्योगों को कार्बनरहित करना है.
एक तरफ कचरे में कमी लाने की कोशिश की जा रही है तो दूसरी ओर ब्रांड और डिजाइनर रिजेनरेटिव खेती को बढ़ावा दे रहे हैं. उनकी कोशिश है कि कपास और ऊन जैसे कपड़ों के उत्पादन के दौरान होने वाले उत्सर्जन को घटाया जा सके.
इंटरनेशनल कंजर्वेशन ग्रुप डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने तुर्की में एक पायलट रिजेनरेटिव कॉटन प्रोजेक्ट स्थापित किया है. इसके जरिए ये मालूम चला कि सामान्य रूप से कार्बन पृथक्करण की तुलना में इस मिट्टी के अंदर करीब 15 गुना ज्यादा कार्बन जमा हुआ है.
टेक्सटाइल एक्सचेंज एक गैर लाभकारी संगठन है. यह फैशन और टेक्सटाइल उद्योगों का पर्यावरण पर होने वाले असर को कम करने में मदद करता है. इस संगठन में कॉटन मैनेजर के तौर पर काम करने वाली गोकसे ओकुलु कहती हैं, "मिट्टी ज्यादा हल्की और जीवंत हो जाती है. परंपरागत खेती में बहुत ज्यादा जुताई करने से मिट्टी में मौजूद कार्बन को सोखने वाले पदार्थ खत्म हो जाते हैं.”
ओकुलु कहती हैं कि रीजेनरेटिंग फार्मिंग में मिट्टी की जैविक संरचना को बनाए रखने के लिए जुताई की जरूरत बहुत कम या नहीं होती है. साथ ही जमीन के बचाव के लिए एक अतिरिक्त फसल भी उगाई जाती है.
एर्डेम कहते हैं कि सोक्टास के खेतों में गेहूं, सेम और चुकंदर की फसलों कवर के रूप में उगाई गईं. इनकी बदौलत पिछले चार साल में मिट्टी की जैविक क्षमता दोगुनी हो गई है और हर साल कपास की फसल के लिए खाद और पानी की जरूरत में कमी आ रही है.
सर्कुलर इकोनॉमी
कंफेडरशेन ऑफ ब्रिटिश इंडस्ट्री के मुताबिक, इस तरह के कपास की मांग लगातार बढ़ रही है. 2020 में वैश्विक कपास आपूर्ति में इसका हिस्सा 20 फीसदी था.
टिकाऊ कपास के लिए सबसे बड़ी पहलों में बेटर कॉटन, फेयरट्रेड और ऑर्गेनिक का नाम लिया जाता है. हालांकि एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन के फैशन प्रमुख जूल्स लेनन कहते हैं कि रिजेनरेटिव कपास में लोगों की रुचि बढ़ रही है. प्रमुख डेनिम उत्पादक बोसा और डीएनएम उन ब्रांडों में से हैं जो इनके साथ साझेदारी शुरू कर रहे हैं.
लेनन कहते हैं कि एक सर्कुलर इकोनॉमी की ओर जाने के लिए उद्योग को नई सामग्री के उपयोग को कम करना होगा. साथ ही रिसाइकिलिंग और दोबारा इस्तेमाल को प्राथमिकता देने की जरूरत है. यूरोपीय आयोग चाहता है कि 2028 तक फैशन कंपनियों के लिए जरूरी सभी नियम तैयार हो जाएं ताकि कंपनियां और टिकाऊ तरीके से कपड़ों का उत्पादन कर सकें.
वर्तमान में इस संबंध में करीब 16 कानून हैं. यूरोपीय संघ में आने करने वाले किसी सामान के लिए स्थायित्व और रिसाइकिल होने की क्षमता के न्यूनतम मानक ये कानून तय कर सकते हैं. फैशन कंपनियों को कपड़ों का कचरा इकट्ठा करना होता है.
ब्रांडों को कृषि में निवेश करना होगा
रिजेनरेटिव ऑर्गेनिक एलायंस या फिर रीजेनग्री जैसी संस्थाओं से मानक तय करने और प्रमाणपत्र देने की कोशिशें शुरू हो गई हैं. लेकिन ब्रांडों और डिजाइनरों को रिजेनरेटिव कृषि में बदलाव में मदद करने के लिए कृषि में निवेश करने की जरूरत है.
वो कहती हैं, "कोई भी चीज तब तक रिजेनरेटिव नहीं हो सकती यदि वह न्यायसंगत ना हो. किसानों को प्रकृति के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में उनकी मदद करने और उनके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के लिए उन्हें पुरस्कृत करके सामुदायिक लचीलापन बनाना होगा.”
हालांकि कुछ ब्रांडों को रिजेनरेटिव कपास अपनाने के लिए मनाना कठिन है क्योंकि यह बहुत महंगा है. मिट्टी के परीक्षण, प्रमाणीकरण और बिना जुताई वाली मशीनरी में निवेश की अतिरिक्त लागत के अलावा, रिजेनरेटिव फार्म शुरूआत में कम पैदावार देते हैं.
केहान कहते हैं, "बदलाव करना बहुत महंगा है, लेकिन समय के साथ एक बिंदु आएगा जब इसकी लागत कम हो जाएगी, क्योंकि तब आपको कम लागत की जरूरत होती है. इसके अलावा मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार से कपास क्षेत्र पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने में भी मदद मिलती है.”
एक रिसर्च से पता चला है कि साल 2040 तक कपास उगाने वाले आधे क्षेत्रों में जल दबाव और चरम मौसम जैसे जलवायु जोखिमों का खतरा बढ़ जाएगा.
एसएम/एनआर (रॉयटर्स)