पर्यावरण को बांधने वाले बांध
आम तौर पर बांधों को पर्यावरण सम्मत माना जाता है. इनसे नवीकरणीय ऊर्जा तो पैदा होती है लेकिन बड़े बड़े बांधों का उनके आसपास के पर्यावरण पर बुरा असर भी पड़ता है.
कहां कितने बांध
पर्यावरणविदों को डर है कि कहीं आर्थिक विकास की आंधी में ताबड़तोड़ बनाए जा रहे विशाल बांध हाशिए पर आ गए समुदाय और जैव विविधता दोनों को ही ना उड़ा ना ले जाएं. खासकर दक्षिण एशिया में विशाल बांध परियोजनाओं पर काम लगातार जारी है. ग्लोबल डैम वॉच के आंकड़ों को देखें तो इस समय दुनियाभर में 3700 के आसपास बड़े स्तर के बांध बन रहे हैं, जिनमें से 2800 से अधिक केवल एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में ही हैं.
जलवायु परिवर्तन को बढ़ाते बांध
बांधों के समर्थक इनके निर्माण को बेहद जरूरी बताते हैं क्योंकि यह सस्ती और साफ ऊर्जा का एक उपयोगी स्रोत है. इससे फॉसिल फ्यूल पर इंसान की निर्भरता कम करने में मदद मिलती है और पानी की लगातार आपूर्ति भी सुनिश्चित की जा सकती है. हालांकि बांध वाले बड़े इलाके में पानी को फैला कर रखे जाने से सतह से पानी का वाष्पीकरण बहुत ज्यादा होता है, जिससे पीने योग्य पानी का नुकसान होता है.
सिमटता जलीय जीवन
पानी के रुकने से नीचे के इलाकों में केवल पानी ही नहीं उसके साथ बह कर जाने वाला ठोस पदार्थ जैसे मिट्टी, बालू और जैव सामग्री भी कम हो जाती है. इससे नीचे के इलाकों में जमीन कम उपजाऊ हो जाती है, नदियों का तल और गहरा होता जाता है और मिट्टी का खूब अपरदन होता है. एक अनुमान के मुताबिक बड़े बांध के कारण नीचे जाने वाले तलछट में 30 से 40 की कमी आती है.
पानी की कमी
जल ही जीवन है और चूंकि बांध इसी जल को बांधते हैं , वे नीचे की ओर होने वाले जलप्रवाह के जीवन को प्रभावित करते हैं. ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां बांध को ही लीजिए. इथियोपिया में बन रहा यह बांध अफ्रीका में पनबिजली का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. लेकिन इससे प्रवाह के नीचे की ओर स्थित मिस्र को खेती के लिए पर्याप्त पानी ना मिलने की चिंता है.
बदलता ईकोसिस्टम
पानी के साथ घुली मिट्टी पर नदी की मछलियां अपने भोजन के लिए निर्भर होती हैं. इसी पानी में घुली चीजों से नदी के अंदर पलने वाले सभी पौधों को पोषण मिलता है. इस सबको बांध के कारण ऊपर ही रोक लिए जाने की वजह से धीरे धीर नीचे के प्रवाह वाले हिस्से की नदी मरने लगती है. फिर वहां एक नए तरह का ईकोसिस्टम विकसित होता है, जो कि पहले से बिल्कुल अलग होता है.
गायब होती जैवविविधता
सन 2018 की एक स्टडी में पाया गया कि एशिया की मेकॉन्ग नदी में बांधों के कारण मछलियों की तादाद में 40 फीसदी तक की कमी आ सकती है. इसके साथ ही इलाके में पाए जाने वाले धरती के सबसे दुर्लभ कपि - तापानुली ओरांगउटान भी मिट सकते हैं. इनकी कुल संख्या 500 के आसपास है. ऐसा ही खतरा कई जगहों पर कुछ दूसरी प्रजातियों पर भी मंडरा रहा है.
धरोहरों के डूबने का डर
भविष्य में तापमान बढ़ते जाने के कारण पानी को लेकर लड़ाइयां बढ़ना तो तय है, खासकर मध्यपूर्व के देशों में पानी का संकट और गहराएगा. ऊपर से कई इलाकों में बाढ़ आने से तमाम धरोहरों के डूबने का खतरा बढ़ेगा. तुर्की में टिगरिस नदी में बाढ़ के कारण 12,000 साल पुराना हसनकेइफ शहर हमेशा हमेशा के लिए पानी में डूब सकता है.
कोई विकल्प है?
अगर विशाल बांधों की जगह छोटे बांध बनाए जाएं तो भी नुकसान वैसे ही होंगे. इनकी जगह पर इन-स्ट्रीम टरबाइनों से ऊर्जा पैदा करने का विचार सामने आया है. वहीं, पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि सारा का सारा ध्यान सौर और वायु ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाने पर लगाया चाहिए, जिनका पर्यावरण पर इतना बुरा असर नहीं होता.