1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मोदी के सामने बड़ी उलझन बन गया है मंदिर

विवेक कुमार२० जुलाई २०१६

क्या नरेंद्र मोदी अयोध्या में मंदिर बनवाएंगे? इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है, खुद मोदी के लिए भी नहीं. मोदी एक अजीब सी उलझन में खुद को फंसा पा रहे होंगे.

https://p.dw.com/p/1JSOQ
Indien Hindu Tempel in Ayodhya
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Kanojia

हाशिम अंसारी नहीं रहे. राम लला बनाम बाबरी मस्जिद केस के सबसे उम्रदराज पेशकार हाशिम अंसारी का 96 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने जाने से पहले रॉयटर्स से बातचीत में एक डर जाहिर किया था. वह बोले, "मैं नहीं चाहता कि मंदिर बने. लेकिन उन्होंने इसकी योजना बना ली है. उन्होंने सरकार पर कब्जा कर ही लिया है. वे अब सत्ता में हैं. वे जो चाहे कर सकते हैं." क्या नरेंद्र मोदी अयोध्या में मंदिर बनवाएंगे? इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है, खुद मोदी के लिए भी नहीं.

जून में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिकी संसद में शानदार भाषण की सफलता से मुग्ध भारत लौट रहे थे तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि कैसा सिरदर्द उनका इंतजार कर रहा है. जब मोदी वतन लौटे तो वह देश को आर्थिक तरक्की की राह पर दौड़ाने के अपने कदमों की तारीफ की उम्मीद कर रहे होंगे लेकिन उनका स्वागत हिंदू कट्टरपंथी आवाजों ने किया जो देश को चलाने के तरीके में ज्यादा हिस्सेदारी चाहते हैं.

अयोध्या: जानिए कब क्या हुआ..

दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी अपने ही खेमे से किस तरह का दबाव झेल रहे हैं, इसका अंदाजा अयोध्या से लगाया जा सकता है. टूटी-फूटी सड़कों, खुले मैनहोल्स और नालियों से बाहर बहते सड़े हुए पानी के बीच जीते इस पवित्र नगरी को हिंदू दक्षिणपंथी एक ही वजह से चाहते हैं और वह है मंदिर निर्माण. 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से यह चाह बनी हुई है और मोदी के सत्ता में आने के बाद इस चाह को पंख लग गए हैं. अयोध्या में मंदिर निर्माण के अभियान के अगुआ महंत नृत्यगोपाल दास कहते हैं, "हम उम्मीद करते हैं और चाहते हैं कि मोदी के शासनकाल में मंदिर का निर्माण हो."

देखिए, अद्भुत इमारतें जो सैकड़ों साल में बनीं

उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव होने हैं. सरगर्मियां शुरू हो गई हैं. और उन सरगर्मियों में अयोध्या की भूमिका तेजी से बढ़ रही है. यूपी चुनाव केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद अहम हैं. ये चुनाव मोदी की ताकत की कसौटी माने जा रहे हैं. और यहां जीत मिलने से केंद्र सरकार को राज्यसभा में बहुमत भी मिल जाएगा जो फिलहाल उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रही है. राज्यसभा में बहुमत का मतलब होगा कि मोदी अपने पूरे एजेंडे को बिना किसी परेशानी के आगे बढ़ा सकेंगे. वैसे उनके कार्यालय ने तो कहा है कि वह मंदिर मुद्दे को चुनावों से दूर रखना चाहते हैं. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. अयोध्या मोदी के लिए एक मुश्किल परीक्षा बनता जा रहा है. उनके सामने बड़ी दुविधा यह है कि हिंदू कट्टरपंथी मजबूत होते हैं तो उनके आर्थिक एजेंडे को प्रभावित करते हैं. और मजबूत नहीं होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट बटोरने का काम नहीं करेंगे. हिंदू कट्टरपंथियों का मजबूत होना मोदी के आर्थिक एंजेडे को कैसे नुकसान पहुंचाता है, इसकी मिसाल पिछले दिनों आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के खिलाफ हुए प्रचार से देखने को मिली. इन्हीं कट्टरपंथियों ने अभियान चलाकर राजन को उनके पद से हटवाने का अपना मकसद हासिल कर लिया.

हाल ही में बीजेपी के यूपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य अयोध्या पहुंचे तो उनका पूरा जोर इस बात पर था कि चुनाव में विकास और भ्रष्टाचार ही मुद्दा होगा. मौर्य अयोध्या में महंत नृत्यगोपाल दास का जन्मदिन मनाने आए थे. माथे पर तिलक लगाए मौर्य से जब मंदिर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "हम हर लोकतांत्रिक संस्था का सम्मान करते हैं." लेकिन इसके बाद पूरा दिन मौर्य ने किया क्या? वह दिनभर उन लोगों के साथ रहे जो बाबरी मस्जिद के गिराए जाने का जश्न मनाते हैं. इन लोगों के बीच बेचैनी बढ़ रही है. मंदिर बना देने की इनकी उम्मीद दो साल से पल रही है जबसे केंद्र में बीजेपी सरकार बनी. लेकिन अब तक इस ओर कोई प्रगति नहीं हुई है जिससे ये लोग बेचैन हो रहे हैं.

विदेश यात्राओं से मोदी ने क्या पाया?

इतिहासकार रामचंद्र गुहा कहते हैं कि मोदी के लिए यूपी चुनाव जीतना ही प्राथमिकता है. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि मोदी किसी भी तरह यूपी चुनाव जीतना चाहते हैं. लेकिन, इसमें एक झोल है. मोदी जैसी बुद्धिमत्ता वाला व्यक्ति जानता है कि मंदिर का निर्माण उनकी छवि के लिए घातक साबित होगा." गुहा मानते हैं कि इसीलिए बीजेपी अगल-बगल के मुद्दे उठाकर हिंदू कट्टरपंथियों को उलझाए रखना चाहती है. गाय एक ऐसा ही मुद्दा है. भारत में गाय इस वक्त एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. बीफ बैन के समर्थन और विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. बहसें हो रही हैं. इस बीच कुछ स्वयंभू गौरक्षक चमड़ा व्यापारियों की पिटाई करके खबरों में बने रहते हैं. आलोचक कहते हैं कि इस तरह के मुद्दों से गैर हिंदू जनता में भय पसरता है.

मोदी के लिए फैसला आसान नहीं है. अगर वह मंदिर निर्माण की ओर कदम बढ़ाते हैं तो उनके समर्थक, खासकर हिंदू कट्टरपंथी बेशक बेहद खुश होंगे लेकिन उसके बाद देश में शांति बनाए रखना एक चुनौती बन जाएगी. 1992 में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी तो भारत ने भयानक दंगे देखे थे जिनमें हजारों लोगों मारे गए थे. और उसके बाद देश के भीतर कई आतंकवादी संगठन भी खड़े हुए. अशांति पसरते ही आर्थिक विकास रुक जाएगा. यानी मोदी का एजेंडा रुक जाएगा. क्या वह ऐसा चाहेंगे?

वीके/एमजे (रॉयटर्स)