पहली बार कब लिखी गई थी बाइबिल?
२८ अप्रैल २०२३दुनिया भर में 2 अरब से अधिक ईसाई न्यू टेस्टामेंट यानी बाइबिल के दूसरे हिस्से पर विश्वास करते हैं. यह लेखन के सबसे प्रभावशाली हिस्सों में से एक है जो अब तक अस्तित्व में है. इसलिए, बाइबिल के बारे में की गई हर नई खोज में कोई बड़ी जानकारी निकलकर सामने आने की संभावना होती है.
ऑस्ट्रियन एकेडमी ऑफ साइंस के एक शोधकर्ता ग्रिगोरी केसल ने यही महसूस किया होगा जब उन्होंने न्यू टेस्टामेंट के 1,750 साल पुराने अनुवाद का पता लगाया. यह सबसे पुराना अनुवाद है जिसके बारे में हमें जानकारी मिली है.
केसल ने वेटिकन लाइब्रेरी में रखी पांडुलिपियों की डिजिटल तस्वीरों पर पराबैंगनी किरणों की मदद से अनुवाद की खोज की. इन पराबैंगनी किरणों की मदद से केसल ने बाइबिल की उन परतों को देखा जो मिट गई थीं और खुले आंखों से नहीं देखी जा सकती थीं. उन्हें ऐसा टेक्स्ट मिला जिसका तीसरी शताब्दी (एडी) में ग्रीक से सिरिएक में अनुवाद किया गया था. सिरिएक प्राचीन सीरिया में बोली जाने वाली भाषा थी.
लेखन का यह अंश बाइबिल के इतिहास की जटिल पहेली का एक हिस्सा है. इस तरह के अनुवाद से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि मानव इतिहास में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक बाइबिल सदियों से किस तरह विकसित हुई है.
नया खोजा गया हिस्सा कहां से आया?
बाइबिल के सिरिएक अनुवाद सबसे पुराने अनुवादों में से एक हैं, जो आज भी मौजूद हैं. केसल ने कहा, "उनमें से सबसे पुराने अनुवाद के पूरे टेक्स्ट पांचवीं सदी (एडी) के हैं.”
इस पूरे अनुवाद की सैकड़ों पांडुलिपियां मौजूद हैं और उन्होंने उस टेक्स्ट की तुलना उस हिस्से से की जो वेटिकन लाइब्रेरी में रखा गया है. इसमें साफ तौर पर अंतर नजर आया. आपको अलग वाक्य और शब्द मिलते हैं, जो यह बताते हैं कि यह पुराना अनुवाद है.
वह बताते हैं, ऐसा लगता है कि यह हिस्सा आज के उत्तरी इराक में लिखा गया था, जो पहले फारस का हिस्सा था. इस साम्राज्य का राज्य धर्म पारसी था, जो इंडो-ईरानी परंपरा के मुताबिक एक ईश्वर में विश्वास करते थे.
ईसाई धर्म एक अल्पसंख्यक धर्म था जिसके अनुयायियों को सताया गया. केसेल कहते हैं कि मध्य पूर्व में ईसाई धर्म का मुख्य रूप सिरिएक ईसाई धर्म था और पहली शताब्दी में ग्रीक भाषा इस धर्म की प्रमुख भाषा थी.
वैज्ञानिक प्राचीन पांडुलिपियों की तारीख कैसे तय करते हैं
वैज्ञानिक प्राचीन पांडुलिपियों की तारीख का पता लगाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाते हैं. ऐसा करके वे बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि इसे किसने लिखा, कब लिखा और कहां लिखा. उदाहरण के लिए, जिन सामग्रियों से वे बने हैं उनसे काफी हद तक यह पता लगाया जा सकता है कि वे कब लिखे गए हैं.
पेपाइरस का इस्तेमाल ज्यादातर तीसरी शताब्दी (एडी) से पहले किया जाता था. यह मिस्र के पेपाइरस पौधे से बना कागज है. बाद में चमड़े से बने कागज इस्तेमाल किए जाने लगे, जो जानवरों की खाल से बने होते थे. वे बेहतर गुणवत्ता वाले और अधिक टिकाऊ होते थे. यही कारण है कि हमारे पास चौथी शताब्दी और उसके बाद के समय के बाइबिल के काफी ज्यादा दस्तावेज हैं.
एक अन्य उपयोगी संकेत है लिखावट का तरीका. यह अक्सर अलग-अलग होता है. यहां तक कि अलग-अलग पीढ़ियों में लिखावट का तरीका बदल जाता है. पुरालेखक या ऐतिहासिक हस्तलिपि के विशेषज्ञ इस बात को बारीकी से समझते हैं कि किस समयावधि में लोग कैसे लिखते थे. वे कोई खास तारीख नहीं बता पाते हैं, लेकिन उसके करीबी काल खंड की जानकारी बता देते हैं.
इन्हीं जानकारियों की मदद से वैज्ञानिक यह तय करने में सक्षम हुए हैं कि बाइबिल की सबसे पुरानी पांडुलिपियां कब और कहां लिखी गई थीं. इसी की मदद से यह पता चला है कि केसल ने जिन अनुवाद को खोजा है वह पांडुलिपियां कई सदी पहले तैयार की गई थीं और ये ओल्ड टेस्टामेंट की पांडुलिपियां हैं, जो बाइबिल के दो हिस्सों में से एक है.
हमें ओल्ड टेस्टामेंट के बारे में क्या जानकारी है?
ईसाई कानून में कहा जाता है कि ओल्ड टेस्टामेंट ही दुनिया के तीन सबसे बड़े धर्म यहूदी, ईसाई और इस्लाम के आधार हैं जिनमें एक ईश्वर की मान्यता है. डॉयचे वेले से बातचीत में क्रिस्टोफ मार्क्सिस कहते हैं, "ओल्ड टेस्टामेंट के सबसे पुराने ग्रंथ पहली शताब्दी ईसा पूर्व के हैं. वे हिब्रू और अरामाईक में लिखे गए थे.”
मार्क्सिस बर्लिन में हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय में प्राचीन ईसाई धर्म के प्रोफेसर हैं. साथ ही, ब्रांडेनबुर्ग-बर्लिन विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष भी हैं. वह कहते हैं कि ये ग्रंथ यरूशलम के पास मृत सागर में एक पुरातत्व स्थल कुमरान में पाए गए थे.
उन्होंने कहा, "लेखकों ने पेपाइरस पर ये दस्तावेज तैयार किए थे. ये लेखक पांडुलिपियां बनाने के विशेषज्ञ थे. यह काम काफी सावधानी से किया गया था, क्योंकि उन्हें पता था कि ये पवित्र ग्रंथ हैं.”
कुमरान में केवल "शुद्ध" माने जाने वाले लोगों को पांडुलिपियों पर काम करने की अनुमति थी और उन्हें अपने हाथों को हमेशा साफ रखना होता था. ये दस्तावेज यहूदी लेखकों ने स्क्रिप्टोरियम में लिखे थे. स्क्रिप्टोरियम एक ऐसा कमरा होता था जिसका इस्तेमाल पांडुलिपियों को तैयार करने के लिए किया जाता था.
माना जाता है कि पॉल द अपोस्टल ने ही इस ग्रंथ को बाइबिल के पहले हिस्से के तौर पर माना था. कहा जाता है कि अपोस्टल 5 से 65 ईसवीतक जीवित थे. ईसा के उपदेशों वाला दूसरा हिस्सा पहली शताब्दी के अंत तक संकलित होना शुरू हुआ, जिसे न्यू टेस्टामेंट के रूप में जाना गया.
न्यू टेस्टामेंट के बारे में क्या जानकारी है?
मार्क्सिस के मुताबिक, न्यू टेस्टामेंट के सिद्धांत करीब 70वीं ईसवी में लिखे गए थे. उन्होंने कहा, "पहले के जो लेखन हमारे पास मौजूद हैं वे दूसरी शताब्दी की शुरुआत में पेपाइरस पर लिखे गए थे, जो आज के आधुनिक मिस्र में मिले थे”
अन्य प्राचीन ग्रंथों की तुलना में यह काफी पहले लिखा गया है. उदाहरण के लिए, प्लेटो की शिक्षाओं की सबसे पुरानी पांडुलिपियां उनकी मृत्यु के सदियों बाद लिखी गईं.
मार्क्सिस कहते हैं, "ये बाइबिल पांडुलिपियां मूल रूप से ग्रीक में थीं, क्योंकि वह रोमन साम्राज्य के पूर्वी हिस्से की मुख्य भाषा थी.” इससे पहले लिखी गई ओल्ड टेस्टामेंट की तरह, इस बात की ज्यादा संभावना है कि ये भी स्क्रिप्टोरियम में लिखे गए थे. इन पांडुलिपियों को रोमन साम्राज्य के दौरान फिर से लिखा गया.
मार्क्सिस के मुताबिक, हमारे पास न्यू टेस्टामेंट का सबसे पुराना पूरा संस्करण कोडेक्स सिनाटिकस 400 ईसवी का है. यह उन तीन सबसे पुरानी पांडुलिपियों में से एक है जिसमें पूरी बाइबिल मूल रूप से ग्रीक भाषा में थी. अन्य दो पांडुलिपियां कोडेक्स वैटिकनस और कोडेक्स एलेक्जेंड्रिनस भी एक ही समयावधि की हैं.
ये पांडुलिपियां बाइबिल के इतिहास और उससे संबंधित विषयों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. ग्रिगोरी केसल और क्रिस्टोफ मार्क्सिस दुनिया भर के कई शिक्षाविदों में से दो हैं जो बाइबिल के बारे में अधिक जानने और इस बेहद प्रभावशाली पुस्तक को लेकर वैज्ञानिक समझ बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं.