रिहाई के आदेश के बावजूद तीन साल जेल में ज्यादा रहा शख्स
२९ सितम्बर २०२३27 साल के चंदनजी ठाकोर को गुजरात हाई कोर्ट ने 29 सितंबर 2020 में राहत दी. हत्या के मामले में अदालत ने उनकी सजा निलंबित कर दी. हाई कोर्ट ने पाया कि मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, यह साबित नहीं करती कि मृत्यु आरोपी के हमलों से ही हुई है.
निचली अदालत ने ठाकोर को हत्या का दोषी करार देकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. यही सजा 2020 में निलंबित कर दी गई थी और जमानत के आदेश जारी किए गए थे.
लेकिन आदेश वाला ईमेल साबरमती जेल के अधिकारी नहीं खोल पाए जिस कारण ठाकोर को तीन साल तक अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में ही रहना पड़ा.
तीन साल सलाखों में बंद रहा पीड़ित
जमानत के बाद भी जब ठाकोर को जेल से रिहा नहीं किया गया तो उन्होंने दोबारा हाई कोर्ट का रुख किया है. फिर जाकर पता चला कि हाई कोर्ट ने तो रिहाई का आदेश दे दिया था और मेहसाणा की सत्र अदालत और जेल अधिकारियों ने इस पर गौर नहीं किया. जेल अधिकारियों ने हाई कोर्ट को बताया कि वे 2020 में रजिस्ट्री द्वारा उन्हें ईमेल किए गए जमानत के आदेश में अटैच फाइल को खोलने में असमर्थ थे. इसलिए उस व्यक्ति को रिहा नहीं किया जा सका.
हाई कोर्ट के जस्टिस एएस सुपेहिया और जस्टिस एमआर मेंगडे की बेंच ने कहा, "आवेदक की दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए, जो जेल अधिकारियों की लापरवाही के कारण इस अदालत के आदेश के बावजूद जेल में है...हम लगभग तीन वर्षों तक जेल में उसकी अवैध कैद के लिए मुआवजा देने के इच्छुक हैं."
गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 14 दिनों के भीतर एक लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है. इस मामले में हाई कोर्ट ने पाया कि अदालत की रजिस्ट्री ने जेल अधिकारियों को कैदी की नियमित जमानत पर रिहाई के आदेश के बारे में सूचित कर दिया था.
हाई कोर्ट ने कहा आंखें खोलने वाला मामला
हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि मौजूदा मामला "आंखें खोलने वाला है." जानकार इस तरह के मामले को अधिकारियों की घोर लापरवाही बताते हैं और कहते हैं दोषी अधिकारियों को सस्पेंड कर देना चाहिए.
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह लापरवाही नहीं यह तो एक तरह का अपराध है, किसी की जिंदगी के आपने तीन साल खत्म कर दिए. ऐसे दोषी लोगों से हर्जाना वसूला जाना चाहिए और उनकी सैलरी से पैसे काट कर उस व्यक्ति को बतौर हर्जाना दिया जाना चाहिए."
साथ ही वे कहते हैं कि जिन लोगों ने लापरवाही बरती है उनके खिलाफ विभागीय जांच होना चाहिए और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा होना चाहिए. विक्रम सिंह कहते हैं, "रिहाई के आदेश के बाद जेल में एक मिनट भी किसी भी शख्स को गुजारना भारी पड़ता है, और उस शख्स ने तो तीन साल ज्यादा गुजार दिए. मैं समझता हूं कि अगर वह नौकरीपेशा होता तो इन तीन सालों में कितना पैसा कमा लिए होता, वही हर्जाना इन जेल अधिकारियों और कर्मचारियों से सूद के साथ वसूल करके उस पीड़ित को दिया जाना चाहिए."
ठाकोर पांच साल की सजा काट चुके हैं और उन्हें 21 सितंबर 2023 को रिहा कर दिया गया था. हाई कोर्ट ने साथ ही जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि ऐसे कैदियों का डाटा इकट्ठा करें जिन्हें जमानत तो मिल गई है लेकिन उन्हें अभी तक रिहा नहीं किया गया है.
देश की अदालतें अब ऑनलाइन हो गईं हैं और कई बार आदेश ईमेल के जरिए जारी किए जाते हैं. इससे समय तो बचता ही है साथ ही सरकारी खर्च में कटौती भी होती है. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की नीतियों रहीं हैं कि ज्यादा से ज्यादा काम को इलेक्ट्रॉनिकली किया जाए. कोरोना काल के बाद से सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक डिजिटल सुनवाई पर जोर देते आए हैं. इससे सुनवाई का समय बचता है और जज और वकील डिजिटली रूप से आसानी से केस में शामिल हो पाते हैं.
भारतीय जेलों की हालत बुरी
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के मुताबिक देश की जेलों में क्षमता से 30 प्रतिशत ज्यादा कैदी हैं. कैदियों में दो-तिहाई से अधिक (77.1 प्रतिशत) जांच या सुनवाई पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं.
संसद के मानसून सत्र में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक जवाब में कहा कि देश की अलग-अलग अदालतों में लंबित मामले पांच करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं. कानून मंत्री ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट, 25 हाई कोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों में 5.02 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं.
मेघवाल के मुताबिक, "इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट सिस्टम (आईसीएमआईएस) से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक इसी साल 1 जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट में 69,766 मामले लंबित हैं." उन्होंने कहा, "नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर मौजूद जानकारी के मुताबिक 14 जुलाई तक हाई कोर्ट में 60,62,953 और जिला और अधीनस्थ अदालतों में 4,41,35,357 मामले लंबित हैं."
नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड की रिपोर्ट कहती है कि देश में लंबित मामलों में 61,57,268 ऐसे हैं जिनमें वकील पेश नहीं हो रहे हैं और 8,82,000 मामलों में वाद और प्रतिवाद करने वाले पक्षों ने कोर्ट आना ही छोड़ दिया है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि 66,58,131 मामले ऐसे हैं जिनमें आरोपी या गवाहों की पेशी नहीं होने के कारण मामले की सुनवाई रुकी हुई है. इनमें से 36 लाख से अधिक मामलों में आरोपी जमानत लेकर फरार हैं.