नीलगिरी के हाथियों का खाना छीन रही है एक हमलावर झाड़ी
नीलगिरी पहाड़ियों से हाथियों का एक झुंड न्यूयॉर्क पहुंचा है. ये हाथी बने हैं लैंटाना नाम की एक झाड़ी से, जो दुनिया के सबसे ज्यादा खराब आक्रामक पौधों में से एक है. यह हाथियों के लिए भी आफत बन गया है.
ग्रेट ऐलिफैंट माइग्रेशन
मीटपैकिंग डिस्ट्रिक्ट, न्यूयॉर्क का एक व्यावसायिक इलाका है. यहां लगी इस प्रदर्शनी में हाथियों की 100 मूर्तियां हैं. इसका नाम है, ग्रेट ऐलिफैंट माइग्रेशन.
सहअस्तित्व: सभी की है यह पृथ्वी
इसका आयोजन 'रीयल ऐलिफैंट कलेक्टिव' नाम के एक संगठन ने किया है. यह समूह जीवों और इंसानों के सहअस्तित्व की दिशा में जागरूकता फैलाने का काम करता है. जिन मूलनिवासी कलाकारों ने हाथियों को बनाया है, वे 'कोएक्जिस्टेंस कलेक्टिव' नाम के समूह से जुड़े हैं.
कई शहरों में आयोजित हो चुकी है प्रदर्शनी
जिन कलाकारों ने ये मूर्तियां बनाई हैं, वे तमिलनाडु के 'नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व' के अलग-अलग समुदायों से ताल्लुक रखते हैं. हाथियों की ये मूर्तियां लैंटाना कैमारा नाम की एक झाड़ी से बनी हैं. लैंटाना की झाड़ियों के ठंडलों को उबाला गया और फिर उस सामग्री से मूर्तियां बनाई गईं. न्यूयॉर्क से पहले यह प्रदर्शनी भारत के कई शहरों और लंदन में भी आयोजित की जा चुकी है.
लैंटाना कैमारा, एक घुसपैठिया प्रजाति
लैंटाना कैमारा दुनिया की सबसे ज्यादा आक्रामक घुसपैठियां झाड़ियों में से एक है. यह बहुत तेजी से फैलता है और इसपर काबू पाना बेहद मुश्किल है. इनवेजिव, या घुसपैठिया प्रजातियां ऐसे पेड़-पौधे या झाड़ियों को कहते हैं, जो उस जगह पर पाई जाने वाली कुदरती वनस्पति नहीं हैं. उन्हें बाहर से लाया गया हो और वे फैल गई हों. माना जाता है कि लैंटाना को सन् 1800 के आसपास सजावटी पौधे के तौर पर भारत लाया गया.
स्थानीय वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर असर
ऐसी घुसपैठियां प्रजातियां स्थानीय वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाती हैं. उन्हें बढ़ने नहीं देतीं, उनसे पोषण छीन लेती हैं, उनका दम घोंट देती हैं. इनसे ईकोसिस्टम और वन्यजीवन को गंभीर नुकसान हो सकता है. कई बार स्थानीय जीव-जंतु इन्हें खा नहीं पाते.
संरक्षित इलाकों में फैलता लैंटाना
'कोएक्जिस्टेंस कलेक्टिव' के मुताबिक, लैंटाना ने भारत के जैव विविधता से संपन्न और संरक्षित इलाकों में करीब 3,00,000 वर्ग किमी के हिस्से पर दबदबा बना लिया है. जहरीले तत्वों वाला लैंटाना बहुत रफ्तार से जगह बनाता है.
वनस्पतियों की विविधता पर असर
भारतीय वन्यजीव संस्थान के एक अध्ययन में पाया गया कि जिन इलाकों में लैंटाना कैमारा की ज्यादा मौजूदगी थी, वहां पौधों की विविधता कम देखी गई. अक्टूबर 2023 में नेचर पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'सेंट्रल इंडियन हाईलैंड्स लैंडस्केप' इलाके के जंगलों में आ रही गिरावट में भी लैंटाना कैमारा की भूमिका है. यह इलाका मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ तक फैला है. तस्वीर: ग्रेट एलिफेंट माइग्रेशन प्रदर्शनी.
जंगलों में फैल गया है लैंटाना कैमारा
ग्लोबल एनर्जी एंड कंजरवेशन की 2020 में आई एक रिपोर्ट के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने भारतीय जंगलों में करीब 2,07,100 किलोमीटर स्क्वैयर के इलाके का सर्वे किया. पाया गया कि इसमें से 1,54,837 किलोमीटर स्क्वैयर क्षेत्र में लैंटाना का आक्रमण है. तीन लाख किलोमीटर से ज्यादा जंगल के क्षेत्र को इससे खतरा है. जंगलों में लैंटाना के आतंक के कारण हाथियों के लिए खाने का संकट खड़ा हो रहा है.
खाने की तलाश जंगल से बाहर ले आती है
जो वनस्पतियां हाथी खाते हैं, उनकी जगह जंगल में लैंटाना पसरता जा रहा है. खाने की कमी के कारण हाथियों को अपने कुदरती आवास से बाहर निकलना पड़ता है. खाने की तलाश में वे जंगल छोड़कर इंसानी बसाहटों वाले इलाकों में आते हैं और मानव-जीव संघर्ष में इजाफा होता है. इसके अलावा लैंटाना जैसे खरपतवार जंगल की आग को तेजी से बढ़ाने में भी मदद कर सकते हैं.
जैव विविधता में बेहद संपन्न है तमिलनाडु
तमिलनाडु के समूचे भौगोलिक क्षेत्र का 17 फीसदी हिस्सा जंगलों से ढका है. इनमें से 15 फीसदी, यानी करीब 22, 643 वर्ग किलोमीटर संरक्षित क्षेत्र में आता है. इसके अंतर्गत आठ वाइल्डलाइफ सेंचुरी, 13 बर्ड सेंचुरी, पांच राष्ट्रीय अभयारण्य, चार-चार बाघ और हाथियों के रिजर्व क्षेत्र और तीन बायोस्फीयर रिजर्व हैं.
हाथी-मानव के बढ़ते संघर्ष की वजह?
इंडियन एक्सप्रेस ने टीआरईसी के कुछ सदस्यों के हवाले से बताया है कि समूह ने तमिलनाडु के चार संरक्षित वन्यक्षेत्रों की मैपिंग की और पाया कि जंगल का 30 से 40 फीसदी हिस्से पर लैंटाना फैल चुका है. यह नीलगिरी क्षेत्र में इंसानों और हाथियों के बढ़ते संघर्ष की बड़ी वजह हो सकता है.