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समाज

बदहाली में है "नौशेरा के शेर" ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र

३० दिसम्बर २०२०

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने नौशेरा में तैनाती के दौरान पाकिस्तानी कबायलियों को खदेड़ने में बड़ी भूमिका निभाई थी. आजादी के समय उनके पास पाकिस्तान जाकर सेना प्रमुख बनने का विकल्प था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.

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तस्वीर: Mosin Javed

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पास ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की कब्र है, उनकी कब्र पर पिछले दिनों तोड़फोड़ हुई थी. कब्र पर लगा सफेद संगमरमर का आधा हिस्सा टूट चुका है और सिर्फ उनका नाम ही नजर आ रहा है. बलोच रेजीमेंट के अधिकारी ब्रिगेडियर उस्मान ने भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की ओर से लड़ाई में हिस्सा लिया और जम के वीरता दिखाई. उनके सिर पर पाकिस्तान ने पचास हजार रुपये का इनाम रखा था.

ब्रिगेडियर उस्मान की युद्ध में निभाई भूमिका को देखते हुए भारत में उन्हें "राष्ट्रीय नायक" भी कहा जाता है. हालांकि दिल्ली में उनकी कब्र की हालत देख सेना भी निराश है. ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र कब्रिस्तान के वीआईपी सेक्शन में मौजूद है लेकिन वह खुला हुआ है, जिस वजह से बच्चे वहां क्रिकेट खेलते हैं, पास रहने वाले लोग कब्रिस्तान में ही कपड़ा सुखाते हैं. कब्रिस्तान जिस जगह पर मौजूद है उसी के पास से दिल्ली मेट्रो गुजरती है और बगल वाली सड़क बटला हाउस की तरफ जाती है. पर्याप्त सुरक्षा और चहारदीवारी की कमी के कारण कब्रिस्तान में कई बार नशा करने वाले भी दाखिल हो जाते हैं. ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र को देखने पर ऐसा लगता है कि उन्हें इतिहास के पन्नों में भुला दिया गया है, उनकी कब्र पर लगा पत्थर तो टूटा ही है बल्कि आसपास कचरा भी महीनों से जमा है.

"नौशेरा का शेर"

सैन्य इतिहासकारों का कहना है कि अगर वे कुछ दिन और जिंदा रहे होते तो भारत के पहले मुस्लिम सेना प्रमुख बन सकते थे. पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें देश की सेना का प्रमुख बनने का प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन उन्होंने अपनी मातृभूमि भारत में ही रहना स्वीकार किया. जामिया मिल्लिया के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "जामिया कब्रिस्तान में कई महत्वपूर्ण भारतीय हस्तियों की कब्रें हैं, लेकिन उनकी देखभाल की जिम्मेदारी उनके जीवित रिश्तेदारों के पास है. उन कब्रों की देखरेख जामिया मिल्लिया नहीं करता है."

Indien Grab des Soldaten Brig. Muhammad Usman
ब्रिगेडियर उस्मान को नौशेरा का शेर भी कहा जाता है. तस्वीर: Mosin Javed

जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर डॉ. इकदार मोहम्मद खान इस पर कहते हैं, "असली समस्या यह है कि विश्वविद्यालय के आसपास की चीजें भी विश्वविद्यालय से जुड़ी हुई हैं. जब भारत सरकार ने विश्वविद्यालय के वीआईपी कब्रिस्तान में ब्रिगेडियर उस्मान को दफनाने की अनुमति मांगी, तो विश्वविद्यालय ने अनुमति दी लेकिन कब्र की देखभाल का जिम्मा सेना के पास था क्योंकि वे सैन्यकर्मी थे. हालांकि पिछले दो साल से कोई भी यहां नहीं आया है."

प्रोफेसर खान कहते हैं कि विश्वविद्यालय को ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र की देखभाल के लिए सरकार या सेना से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती है. यूनिवर्सिटी ने ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र में तोड़फोड़ की सूचना सेना को दे दी है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारतीय सेना ने कहा है कि वह राष्ट्रीय नायक की कब्र की देखभाल करने में पूरी तरह सक्षम है.

Indien Grab des Soldaten Brig. Muhammad Usman
कब्र के पास साफ-सफाई नहीं हुई है. तस्वीर: Mosin Javed

ब्रिगेडियर उस्मान पर पाकिस्तान ने रखा इनाम

ब्रिगेडियर उस्मान 1947-1948 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान मारे गए थे, उस वक्त वे जम्मू-कश्मीर के नौशेरा में तैनात थे. उस दौरान उन्होंने झंगड़ क्षेत्र से कबायली घुसपैठियों को खदेड़ा और दोबारा उस इलाके पर भारत का कब्जा बहाल किया. 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तान सेना की गोलीबारी के दौरान वे नौशेरा में ही मारे गए. मरणोपरांत उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. जब उनका शव जम्मू-कश्मीर से दिल्ली लाया गया, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सभी प्रोटोकॉल को नजरअंदाज करते हुए ताबूत लेने खुद गए. उनके अंतिम संस्कार में देश के जाने माने लोग शामिल हुए थे, जिनमें सेना प्रमुख और कई कैबिनेट मंत्री भी शामिल थे. उनके लिए देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने जनाजे की नमाज पढ़ी थी. 

Indien Grab des Soldaten Brig. Muhammad Usman
कब्रिस्तान में दर्जनों प्रमुख लोगों की कब्रें भी मौजूद हैं. तस्वीर: Mosin Javed

15 जुलाई 1912 को आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में जन्मे मोहम्मद उस्मान 1932 में इंग्लैंड में सैंडहर्स्ट रॉयल मिलिट्री अकादमी में दाखिला लेने वाले भारतीय बैच के अंतिम दस युवाओं में से एक थे. 1935 में उन्हें 23 साल की उम्र में बलोच रेजीमेंट में कमीशन दिया गया. आजादी के समय मुस्लिम होने के नाते उन्हें पाकिस्तानी सेना में शामिल होने का बहुत दबाव डाला गया, उन्हें भविष्य में पाकिस्तानी सेना प्रमुख का पद का भी वादा किया गया था लेकिन उन्होंने इससे इनकार किया. जब बलोच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई तो वे डोगरा रेजीमेंट में शामिल हो गए.

उनकी कब्र के पास लगे शिलालेख पर लिखा है, "भारत के एक बहादुर सपूत ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का शव यहां दफनाया गया है. दशक और पीढ़ियां बीतेंगी, लेकिन उनका मकबरा मातृभूमि के सच्चे और वीर पुत्र के साहस के एक वसीयतनामे के रूप में रहेगा. यह मकबरा आज और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा देता रहेगा."

रिपोर्ट: जावेद अख्तर, आमिर अंसारी 

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