तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
अफगानिस्तान सूखा, भुखमरी और आर्थिक संकट से घिरा हुआ है. देश में अनिश्चितता के माहौल के बीच अफगान पुरुष कुछ पल दंगल के लिए निकाल रहे हैं.
अफगान दंगल
हर सप्ताह के अंत में अफगानिस्तान के लड़ाके राजधानी काबुल में एक सार्वजनिक मैदान पर इकट्ठा होते हैं और वहां जूडो और कुश्ती के मिश्रण वाले खेल में एक-दूसरे के खिलाफ अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं.
जो जीता वही सिकंदर
कुश्ती को देखने के लिए राजधानी काबुल के चमन-ए-हजूरी मैदान में बड़ी भीड़ जुटती है. प्रशंसक अपने पसंदीदा या फिर अपने गृह जिले के किसी पहलवान के लिए ताली बजाते हैं और उन्हें उत्साहित करते हैं.
लोकप्रिय है कुश्ती
उत्तरी अफगानिस्तान के समांगन प्रांत के गठीले 31 वर्षीय मोहम्मद आतिफ कहते हैं, "मैं 17 साल से लड़ रहा हूं." उन्होंने एक मैच में अपने प्रतिद्वंद्वी को एक विशेष दांव से पटखनी दी है. वे कहते हैं, "कुश्ती समांगन, कुंदुज, बगलान में बहुत लोकप्रिय है और शेबरघन में भी कई प्रसिद्ध पहलवान हैं."
गांव के गौरव
जूडो और कुश्ती उत्तर में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं. गांवों और जिलों में स्थानीय चैंपियन बनने के बाद खिलाड़ी क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं और यहां तक कि राष्ट्रीय खेलों के लिए आगे बढ़ते हैं.
अनुशासन के साथ दंगल
अफगान पहलवान मैदान पर अनुशासन का पालन करते हैं. मुकाबले के दौरान रेफरी यह सुनिश्चित करने के लिए होता कि नियमों का सख्ती से पालन हो और विजेता घोषित किया जाए. एक मुकाबला शायद ही कभी एक या दो मिनट से अधिक समय तक चलता है. मैच के बाद पहलवान एक दूसरे को गले लगा लेते हैं.
सट्टा मत लगाना
विजेता के लिए एक छोटा सा इनाम होता है. हालांकि तालिबान द्वारा सट्टे पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है लेकिन कुछ पुराने सट्टेबाज हैं जो चोरी से सट्टा लगाते हैं.
मनोरंजन का सहारा
इस तरह के आयोजन स्थानीय लोग और कुछ स्पॉन्सर मिलकर करते हैं. लोगों का कहना है कि तालिबान इस तरह के आयोजन में आने से बचता है. रिपोर्ट: (एए/सीके)