किसान आंदोलन: ट्रैक्टरों ने जाम कर दी जर्मनी की राजधानी
15 जनवरी को जर्मनी में हफ्ते भर से चल रहे किसान प्रदर्शन का आखिरी अंक था. इस मौके पर हजारों किसान ट्रैक्टर लेकर राजधानी बर्लिन में जमा हुए. हॉर्न बजाते ट्रैक्टरों ने सुबह से ही सड़कें जाम रखीं.
बर्लिन में जमा हुए 5,000 से ज्यादा ट्रैक्टर
जर्मनी में 8 जनवरी से शुरू हुआ सप्ताह भर लंबा किसान प्रदर्शन 15 जनवरी को अपने क्लाइमैक्स पर पहुंचा. राजधानी बर्लिन में प्रदर्शनकारी किसानों का बड़ा जमावड़ा लगा. 5,000 से ज्यादा ट्रैक्टरों के कारण बर्लिन में सड़कें जाम रहीं. अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए किसान सुबह से ही ट्रैक्टरों के हॉर्न बजाए जा रहे थे.
प्रदर्शनकारियों ने वित्त मंत्री को कहा "झूठा"
वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर भी सरकार का पक्ष रखने प्रदर्शन में पहुंचे. उन्होंने जोर दिया कि सब्सिडी में प्रस्तावित कटौती की योजना साथ मिलकर मुश्किल वक्त से बाहर निकलने की कोशिश है. लेकिन लिंडनर जैसे ही मंच पर पहुंचे, प्रदर्शनकारियों ने "झूठा" कहकर उनका विरोध किया और सीटियां बजाई. तस्वीर: किसान प्रदर्शन के दौरान रैली में मंच पर खड़े क्रिस्टियान लिंडनर.
सरकार से इस्तीफे की मांग
प्रदर्शनकारी सरकार बदले जाने की मांग कर रहे हैं. कई किसान कह रहे हैं कि सरकार को इस्तीफा देना चाहिए, क्योंकि वह नेतृत्व देने में सक्षम नहीं है. हालांकि, किसानों के विरोध को देखते हुए सरकार को कटौती आंशिक तौर पर वापस लेनी पड़ी.
क्यों नाराज हैं किसान?
किसानों की नाराजगी का ताल्लुक सरकार की बचत योजना से है. सरकार खेती से जुड़े कामों में इस्तेमाल होने वाले डीजल पर सब्सिडी खत्म करना चाहती है. शुरुआत में इसे एक झटके में खत्म करने की योजना थी, लेकिन अब सरकार का कहना है कि ये सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म की जाएंगी.
आंशिक रियायत से संतुष्ट नहीं किसान
पहले किसानों द्वारा खरीदे जाने वाले कृषि वाहनों पर मिलने वाली टैक्स छूट भी खत्म करने का प्रस्ताव था. लेकिन अब इस रियायत को जारी रखने का फैसला किया गया है. किसान इससे संतुष्ट नहीं हैं. वह सरकार से योजना पूरी तरह वापस लेने की मांग कर रहे हैं. तस्वीर: बर्लिन के केंद्र में किसानों द्वारा ब्लॉक की गई सड़क
किसानों को भविष्य का डर
प्रदर्शन में शामिल किसान हेंड्रिक फेर्डमेंगेस ने एएफपी से कहा, "हालिया सालों में हमारी कई सब्सिडी खत्म हुईं. इतने ज्यादा नियम-कायदे और प्रशासकीय काम हैं कि एक वक्त आएगा, जब हम इसे और नहीं संभाल सकेंगे." लोअर सेक्सनी की एक अन्य किसान ने प्रदर्शन में शामिल होने का कारण कुछ यूं बताया, "अगर सिर्फ एक शब्द में बताना हो कि मैं यहां क्यों हूं, तो मेरा जवाब होगा: भविष्य."
सरकार से असंतोष
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे चाहते हैं, कल को उनके बच्चे भी किसान बनें. लेकिन मौजूदा स्थितियों में इसकी संभावना कमजोर दिखती है. किसानों के पास नए तौर-तरीकों और तकनीकों में निवेश के लिए पैसा नहीं है. इस वक्त ओलाफ शॉल्त्स की गठबंधन सरकार की अप्रूवल रेटिंग सबसे कम है. जर्मन अखबार "बिल्ड डेली" के एक हालिया सर्वेक्षण में 64 फीसदी जर्मनों ने कहा कि वे सरकार में बदलाव देखना चाहेंगे.
दक्षिणपंथी तत्वों का अंदेशा
बीते दिनों आशंका जताई गई कि किसान प्रदर्शनों की आड़ में दक्षिणपंथी तत्व अपने हित साधने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, किसान इन आशंकाओं को खारिज करते हैं. हेंड्रिक फेर्डमेंगेस कहते हैं, "हम किसी भी सूरत में दक्षिणपंथी चरमपंथी नहीं हैं. ये बस नेताओं द्वारा डर फैलाने का तरीका है." फेर्डमेंगेस कहते हैं कि किसान प्रदर्शनों में मौजूद दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों की संख्या "बेहद कम" है.
अन्य क्षेत्रों में भी नाराजगी
जर्मनी में सिर्फ किसानों में ही नहीं, कई अन्य क्षेत्रों के कामगारों में भी नाराजगी है. पिछले हफ्ते रेलवे कर्मचारियों ने तीन दिन की हड़ताल की. इससे पहले दिसंबर में मेटल वर्करों और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया था.