एक ओर कामगारों की कमी, दूसरी ओर वर्करों में बढ़ती बेरोजगारी
२८ नवम्बर २०२४जर्मनी में बीते कुछ सालों में ऐसे लोगों की संख्या दोगुनी हो गई है जिनके देखभाल की जरूरत है. इसकी तुलना में बुजुर्गों और बीमारों का ख्याल रखने वाले लोगों की संख्या उस रफ्तार से नहीं बढ़ी. सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए यह चिंता की स्थिति है. श्रम मंत्रालय ने एक सांसद के सवाल पर जो जानकारी दी है, उसमें यह बात सामने आई है. धुर दक्षिणपंथी पार्टी के नेता रेने श्प्रिंगर ने इस बारे में सवाल पूछा था.
देखभाल करने वाली केयर इंडस्ट्री में काम करने वाले लोगों में आप्रवासियों की संख्या काफी ज्यादा है. दूसरी तरफ एएफडी आप्रवासन में भारी कमी लाना चाहती है. 2022 में केयर इंडस्ट्री में काम करने वाले लगभग 30 फीसदी लोग आप्रवासी थी. ये आकलन समेकन और आप्रवासन पर विशेषज्ञ समिति के हैं.
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दोगुने लोगों को देखभाल की जरूरत
श्रम मंत्रालय के आंकड़े दिखाते हैं कि जर्मनी में 2015 में 29 लाख लोगों को देखभाल की जरूरत थी. 2023 के अंत तक यह आंकड़ा 56 लाख तक पहुंच गया. इसी अवधि में अस्पतालों और बुजुर्गों के केयरहोम के कर्मचारियों की संख्या महज 23 फीसदी बढ़ कर 15 लाख से 18.5 लाख पर पहुंची. जाहिर है कि यह संख्या उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है.
जर्मनी में आए दिन कुशल कामगारों की कमी से जुड़े आंकड़े सामने आते हैं. हाल ही में एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जर्मनी को 2040 तक हर साल 288,000 कुशल कामगारों की जरूरत है, जो बाहर से बुलाने पड़ेंगे. मगर समस्या का कारण सिर्फ कामगारों की कमी नहीं है. आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए खाली जगहों पर कर्मचारियों की नियुक्ति में लगने वाला समय बढ़ता जा रहा है. यह हालत तब है जब नर्स और इस तरह के दूसरे कर्मचारियों की बेरोजगारी भी बढ़ रही है.
नर्सों की बेरोजगारी
जर्मनी की संघीय रोजगार एजेंसी के मुताबिक इस साल अक्टूबर में करीब 34,000 लोगों ने अपनी बेरोजगारी दर्ज कराई. अस्पताल के केयर वार्ड के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति में औसतन तीन चौथाई साल (269 दिन) का समय लग रहा है. 2015 में यह 136 दिन था. बुजुर्गों की देखभाल के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति में तो और ज्यादा करीब 296 दिन लग रहे हैं. 2023 में यह स्थिति और भी बुरी थी जब बेरोजगार नर्सों और देखभाल करने वालों की संख्या 60,000 तक चली गई थी.
कुशल कामगारों के लिए जर्मनी आना हुआ और आसान
अस्पतालों और नर्सिंग होम में जिस तरह से कर्मचारियों की नियुक्ति मुश्किल होती जा रही है, ऐसे कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ रही है जो केयर वर्कर तो हैं लेकिन उनके पास नौकरी नहीं है. 2023 में बुजुर्गों की देखभाल करने वाले 40,000 लोगों के पास नौकरी नहीं थी. यह 2015 की तुलना में करीब 5,000 ज्यादा है. इसी तरह अस्पतालों के लिए यह संख्या 8,000 से बढ़ कर 20,000 तक चली गई है.
इस क्षेत्र में बेरोजगार विदेशियों की संख्या का जिक्र करते हुए एएफडी के श्प्रिंगर ने सरकार की कुशल कामगारों की रणनीति की आलोचना की. उनकी दलील है, "विदेशी श्रम बाजारों में कामगारों को ढूंढने की बजाय हमारे अपने देश में मौजूद क्षमताओं को आखिरकार सक्रिय किया जाना जाहिए." श्रम मंत्रालय के आंकड़ों में उन लोगों की संख्या अलग से नहीं बताई गई है जो आप्रवासी पृष्ठभूमि के हैं.
नियुक्ति की मुश्किलें
दूसरे देशों से नर्सों को जर्मनी में लाने की प्रक्रिया भी लंबी है. जरूरी पढ़ाई करने के बाद भी जर्मन एजेंसियां नर्सों की नियुक्ति में करीब 3 महीने का समय लग जाता है. इसके बाद उनकी ट्रेनिंग सर्टिफिकेट की जर्मनी में पुष्टि करानी होती है. कई बार नर्सों को जर्मनी में भी ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है. इसके बाद उनकी जर्मन भाषा की ट्रेनिंग शुरू होती है जो सबसे जरूरी है. कुछ लोग जर्मनी आ कर भी भाषा की पढ़ाई करते हैं.
इसके बाद फिर जिस अस्पताल में उनकी नियुक्ति होनी है, वहां उनका इंटरव्यू होता है और फिर चयन हो जाए तो वर्क वीजा मिल जाता है. हालांकि मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती. विदेशी नर्सों को जर्मन समाज और संस्कृति के साथ तालमेल बिठाने और खुद को उसका हिस्सा बनाने में भी संघर्ष करना पड़ता है. जर्मनी अंतरराष्ट्रीय नियुक्तियों के जरिए अपने देश में नर्सों की कमी दूर करना चाहता है लेकिन सिर्फ इतने भर से ही नहीं होगा. समस्या के समाधान के लिए घरेलू स्तर पर भी उपाय करने होंगे.
एनआर/आरपी (डीपीए)