"बहुत जिम्मेदार होते हैं जर्मन"
१९ अप्रैल २०१३तीन साल पहले जर्मनी आए कुमार अब यहां की आबोहवा, मौसम और खानपान से दोस्ती कर चुके हैं. उन्होंने बताया कि शुरुआती परिवर्तन उनके लिए चुनौतीपूर्ण था जब उन्हें अपने सारे काम खुद करने से लेकर खाना भी बनाना पड़ता था, जिसकी उन्हें आदत नहीं थी. लेकिन अब इस जगह से उन्हें भी प्यार है.
कैसे पहुंचे जर्मनी
बिहार के पटना में पले बढ़े कुमार ने कृषि विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई धारवाड़ से की और उसके बाद मास्टर्स की पढाई करने नीदरलैंड्स चले गए. लौटने के बाद वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे थे जब उन्होंने डीएएडी कार्यक्रम के लिए आवेदन किया. डीएएडी भारतीय रिसर्चरों को अपनी तरफ लुभाता आया है, नवनीत भी उन्हीं में से एक हैं. उनकी अर्जी मंजूर हो गई और वह रिसर्च करने जर्मनी आ गए. नवनीत कृषि के क्षेत्र में रिमोट सेंसिग के इस्तेमाल पर रिसर्च कर रहे हैं. वह कहते हैं कि यह जानकारी भारत लौटने पर उनके बड़ी काम आएगी.
क्या अच्छा लगता है
नवनीत जब यहां आए तो यहां के लोगों के जिम्मेदाराना रवैये ने उनका दिल जीत लिया. यह जिम्मेदारी लोग अपने काम के साथ देश के प्रति भी निभाते हैं. शहर को साफ सुथरा रखना वे अपना कर्तव्य समझते हैं. नवनीत ने बताया एक बार वह अपने रिसर्च निरीक्षक के साथ कहीं जा रहे थे, रास्ते में बीच सड़क पर कागज का टुकड़ा पड़ा देख कर उनके निरीक्षक रुक गए और फिर खुद अपने हाथ से उसे उठा कर कूड़ेदान में डाल दिया. नवनीत इससे बहुत प्रभावित हुए. वह कहते हैं जिस तरह लोग यहां हफ्ते भर दिल लगाकर काम करते हैं और फिर सप्ताहांत में खूब मौज मस्ती करते हैं, यह उन्हें बहुत अच्छा लगता है.
शोध के लिए अच्छा जर्मनी
नवनीत मानते हैं कि जर्मनी में शोध करना बहुत फायदेमंद है. भारत में भी आपको बहुत अच्छे प्रोफेसरों की निगरानी में काम करने का मौका मिलता है लेकिन कई बार रिसर्च के लिए उतनी सामग्री पढ़ने को नहीं मिल पाती है जितनी जर्मनी में है. अच्छे नेतृत्व के साथ पढ़ने के लिए उचित सामग्री मिलना रिसर्च में बहुत मदद करता है. नवनीत सितम्बर में अपनी थीसिस जमा करने के बाद आगे पोस्ट डॉक्ट्रेट भी यहीं से करना चाहते हैं. लेकिन वह कहते हैं उसके बाद वह भारत लौटना चाहेंगे.
जो हूं भारत की वजह से हूं
नवनीत ने बताया अपनी कामयाबी का श्रेय वह अपनी जन्मभूमि भारत को ही देना चाहेंगे. वह कहते हैं उन्होंने जो कुछ जीवन के बारे में सीखा है उसी मिट्टी से सीखा है. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह यहां सीखे तकनीक के तरीकों को भारत ले जाना चाहते हैं. उनका सपना है भारत के कृषि क्षेत्र को तकनीक की शक्ति से और मजबूत बनाना.
रिपोर्टः समरा फातिमा
संपादनः ए जमाल