फ्रांस में अति दक्षिणपंथियों की करारी हार
२८ जून २०२१फ्रांस में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी को बड़ा झटका लगा है. रविवार को हुए क्षेत्रीय चुनावों में मरीन ला पेन की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है. अगले साल देश में राष्ट्रपति चुनावों से पहले ला पेन की पार्टी का सूपड़ा साफ हो जाना उनके भविष्य पर बड़े सवाल खड़े करता है.
रविवार को हुए चुनावों के बाद आए एग्जिट पोल में रीअसेंबलमेंट नेशनल पार्टी को देश के दक्षिणी प्रोवेन्स आल्प्स कोट डे अजुर (PACA) से बड़ी उम्मीदें थीं. मरीन ला पेन की पार्टी उम्मीद कर रही थी कि इस राज्य में अपना क्षेत्रीय आधार मजबूत कर वह अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में जोरदार ताल ठोकेगी. लेकिन तमाम वामपंथी दलों में एकजुट होकर उनकी इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के लिए भी ये नतीजे असहज कर देने वाले रहे. उनकी पार्टी को भी कोई सीट नहीं मिल रही है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि इन नतीजों का असर केंद्रीय राजनीति में फेरबदल के रूप में दिखाई दे सकता है.
ला पेन का दर्द
एग्जिट पोल के नतीजों के मुताबिक सत्ताधारी कंजर्वेटिव को करीब दस पॉइंट्स से जीत मिल रही है. यह स्पष्ट होने के बाद ला पेन ने अपने समर्थकों से कहा, "आज शाम हम एक भी क्षेत्र में नहीं जीतेंगे क्योंकि सत्ताधारियों ने एक अप्राकृतिक गठबंधन बनाया और हमें बाहर रखने के लिए और लोगों को क्षेत्र में अपना प्रशासकीय कौशल दिखाने से रोकने के लिए पूरा जोर लगाया.”
ला पेन ने सत्ताधारी पार्टी पर भयंकर अव्यवस्थित मतदान का आरोप लगाया क्योंकि लगभग दो तिहाई मतदाता वोटिंग से दूर रहे. हालांकि इन नतीजों के बाद अपनी छवि को नरम करने की ला पेन की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं. ला पेन का आधार देश का पारंपरिक दक्षिणपंथी मतदाताओं के बीच रहा है जो उनके प्रवासी विरोधी और यूरोपीय संघ को लेकर सशंकित दिखने का समर्थक माना जाता है.
हालांकि विश्लेषक इन नतीजों के आधार पर ला पेन को अगले राष्ट्रपति चुनावों में पूरी तरह खारिज करना उचित नहीं मानते.
माक्रों को भी झटका
फ्रांस के 13 क्षेत्रों में चुनावों के बाद आए एग्जिट पोल में सत्ताधारी उदार दक्षिणपंथियों या उदार वामपंथियों की जीत का अनुमान लगाया गया. माक्रों की पार्टी, जो 2015 में हुए पिछले क्षेत्रीय चुनावों के बाद अस्तित्तव में आई है, एक भी सीट जीतने में नाकाम रही.
यह खराब प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि कैसे माक्रों की पार्टी स्थानीय स्तर पर अपना आधार बनाने में विफल रही है और जिस लहर के साथ जीतकर माक्रों राष्ट्रपति बने थे, वह सिर्फ राष्ट्रपति पद के लिए ही थी. इन नतीजों ने अगले साल माक्रों के दोबारा राष्ट्रपति बनने के रास्ते भी तंग कर दिया है. उदार दक्षिणपंथियों ने वापसी की है, जो एक तिकोने मुकाबले का संकेत है.
नए नेताओं का उभार
इन चुनावों के बाद रूढ़िवादी नेता जेवियर बरट्रैंड की माक्रों के खिलाफ दावेदारी और मजबूत हुई है. उनकी पार्टी ने उत्तरी क्षेत्रों में आरामदायक जीत हासिल की है. बरट्रांड ने खुद को ऐसे फ्रांसीसियों के रखवाले के तौर पर पेश किया है, जो "गुजारा भी नहीं कर पा रहे हैं.” साथ ही, उन्होंने अति दक्षिणपंथ के खिलाफ भी खुद को सबसे मजबूत विरोधी बताया है.
चुनाव की शाम अपने समर्थकों को बरट्रांड ने कहा, "अति दक्षिणपंथी को उसके रास्ते पर आगे बढ़ने से रोक दिया गया है. और हमने उसे बहुत तेजी से पीछे धकेल दिया है. यह नतीजा मुझे राष्ट्रीय स्तर पर मतदाताओं से वोट मांगने की ताकत देता है.”
एक अन्य नेता जो इन चुनावों में दोबारा जीतकर आई हैं, वह हैं वैलरी पेक्रेसे. ग्रेटर पेरिस क्षेत्र से जीतीं पेक्रेसे को अब तक 2022 में एक संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है. रविवार को उन्होंने देश के दक्षिणपंथियों की तारीफ की. विश्लेषकों ने इसे पेक्रेसे का बरट्रांड का ही समर्थन करने का संकेत माना है.
इन चुनावों में सिर्फ 35 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया था. हालांकि देश की क्षेत्रीय सरकारों के प्रति लोगों का झुकाव कम ही रहता है. ये सरकारें आर्थिक विकास, परिवहन और हाई स्कूलों के लिए जिम्मेदारहैं.
पेरिस में रहने वाले ज्याँ-जाक ने रॉयटर्स को बताया, "जो भी हो, मेरी आज वोट देने का कोई इरादा नहीं है क्योंकि नेताओं पर मेरा भरोसा उठ चुका है.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)