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कॉप 28 में फ्रांस, अमेरिका दे सकते हैं भारत को बड़ा झटका

२१ नवम्बर २०२३

कॉप 28 में फ्रांस और अमेरिका कोयला संयंत्रों को लेकर एक ऐसा प्रस्ताव ला सकते हैं जिससे भारत को आने वाले समय में परेशानी हो सकती है. प्रस्ताव कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के लिए प्राइवेट फंडिंग रोकने को लेकर है.

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कॉप 28
कॉप 28तस्वीर: Amr Alfiky/REUTERS

जलवायु पर संयुक्त राष्ट्र का शीर्ष सम्मेलन कॉप 28 दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक चलेगा. सामान्य रूप से उम्मीद की जाती है कि इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए जरूरी कदमों पर दुनिया के सभी देशों के बीच सहमति बनाने की दिशा में काम किया जाएगा.

लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि कम से कम एक प्रस्ताव पर देशों के बीच असहमति और बढ़ सकती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस और अमेरिका मिल कर कोयले से चलने वाले बिजली के संयंत्रों के लिए निजी फंडिंग को रोकने का प्रस्ताव ला सकते हैं.

भारत के लिए समस्या

भारत और यूरोप में स्थित तीन सूत्रों के हवाले से समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने दावा किया है इस योजना के बारे में भारत को इसी महीने बता दिया गया. इस तरह के प्रस्ताव को भारत और चीन के लिए एक धक्का माना जा रहा है. दोनों देश अपनी अपनी ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए कोयला संयंत्रों के निर्माण को रोकने की किसी भी कोशिश के खिलाफ हैं.

नई दिल्ली
नई दिल्ली में प्रगति ऊर्जा संयंत्र की चिमनियांतस्वीर: Mayank Makhija/NurPhoto/picture alliance

रॉयटर्स के मुताबिक दो भारतीय अधिकारियों का कहना है कि फ्रांस में विकास के राज्य मंत्री क्रिसूला जाकारोपोलो ने भारत सरकार को इस योजना के बारे में बता दिया है. इसे निजी वित्तीय संस्थानों और बीमा कंपनियों के लिए "न्यू कोल एक्सक्लूजन पॉलिसी" का नाम दिया गया है. इससे पहले इस तरह की किसी भी योजना की जानकारी सामने नहीं आई है.

जाकारोपोलो के एक प्रवक्ता ने ईमेल पर पूछे गए रॉयटर्स के सवालों पर सीधे टिप्पणी नहीं की लेकिन कहा कि पिछले कुछ सालों में कोयले में निजी निवेश के सवाल पर कई बहुराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा हुई है. भारत के पर्यावरण, बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा, कोयला, विदेश और सूचना मंत्रालयों, ओईसीडी और नई दिल्ली में फ्रांस के दूतावास को भी रॉयटर्स ने टिप्पणी के लिए अनुरोध किया था, लेकिन इनमें से किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

यूरोप में एक सूत्र ने बताया कि इसका उद्देश्य कोयला आधारित बिजली के लिए निजी फंडिंग को सूखा देना है और यह फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता का विषय है. इसे ग्लोबल वॉर्मिंग की रफ्तार को कम करने के लिए कदमों को तेज करने के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देखा जा रहा है.

देशों के बीच टकराव

भारतीय अधिकारियों ने बताया कि इस प्रस्ताव के मुताबिक ओईसीडी निजी वित्तीय कंपनियों के लिए कोयले से निकलने के मानक तैयार करेगा. इन कंपनियों के वित्तपोषण पर नियामक, रेटिंग एजेंसियां और गैर-सरकारी संगठन नजर रख सकेंगे.

यूरोपीय संघ का सबसे प्रदूषित पावर प्लांट

फ्रांस द्वारा भारत से साझा की गई योजना के मुताबिक अमेरिका, यूरोपीय संघ और कनाडा समेत कई देश कोयले से बिजली बनाने को धीरे धीरे खत्म करने की योजना पर काम करते रहे हैं. ये देश कोयले को जलवायु लक्ष्यों के लिए "सबसे बड़ा खतरा" मानते हैं. उन्हें चिंता है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कंपनियां अभी भी विकासशील देशों की कोयला क्षमता में बड़ी बढ़ोतरी को समर्थन दे रही हैं.

अधिकारियों के मुताबिक कोयले की क्षमता में करीब 490 गीगावाट की बढ़ोतरी या तो चल रही है या योजना में है. यह मौजूदा वैश्विक क्षमता के पांचवें हिस्से के बराबर है और इसमें से अधिकांश या तो भारत में है या चीन में. जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका के डिप्टी विशेष राजदूत रिच ड्यूक ने इस प्रस्ताव पर सीधे टिप्पणी नहीं की लेकिन कोयला आधारित संयंत्रों की बात की.

उन्होंने कहा कि देशों को चाहिए कि वो बिना रुके नए कोयला संयंत्र बना कर "और गहरे गड्ढे खोदने बंद करें". भारत में करीब 73 प्रतिशत बिजली कोयले से बन रही है. हालांकि भारत ने गैर-जीवाश्म क्षमता को बढ़ा कर 44 प्रतिशत तक कर लिया है.

उसका इरादा कॉप 28 में जीवाश्म ईंधन को कम करने या बंद करने की समयसीमा तय करने की कोशिशों का मुकाबला करने का है. वह सदस्य देशों से दूसरे स्रोतों से उत्सर्जन कम करने पर ध्यान केंद्रित करने को कह सकता है. वह विकसित देशों पर 2050 तक कार्बन न्यूट्रल की जगह कार्बन नेगेटिव बनने का दबाव भी डाल सकता है. 

सीके/एए (रॉयटर्स)