किस किस रूप में पूजा जाता है प्रकृति को
दुनिया के कई कोनों में लोगों की पशु पक्षी और पेड़ पौधों में धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था है. जानिए कहां कहां किस किस पशु और पौधे को पवित्र माना जाता है.
अनार
लाल अनार ना केवल पौष्टिक होता है, बल्कि धार्मिक रूप से पवित्र भी. इसे प्रेम, जीवन और उर्वरता का प्रतीक माना गया है. ईसाई धर्म में अक्सर अनार का जिक्र आता है. बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि ग्रीस में देवी एफ्रोडाइट के लिए इसका पेड़ लगाया गया.
गोरक्षी
इस पेड़ को कई संस्कृतियों में पूजनीय माना गया है. गोरक्षी की पत्तियों का कई बीमारियों के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
खजूर
माना जाता है कि अरब की रेतीली धरती पर इंसान ने जब पहली बार खेती करनी शुरू की, तो उगाई गई चीजों में खजूर भी शामिल थे. ईसाई और यहूदी धर्म में खजूर को खास अहमियत दी गयी है. मुसलमान रमजान के दौरान खजूर खाकर ही अपना उपवास खत्म करते हैं.
कमल
कीचड़ में उगने वाले कमल जैसा पवित्र और कुछ भी नहीं हो सकता. केवल भारत में ही नहीं, पूरे एशिया में यह मान्यता है. हिन्दू धर्म की मान्यताओं में भगवान विष्णु और लक्ष्मी को कमल के फूल पर ही बैठा दिखाया जाता है.
गिंगको
दिल जैसे आकार की पत्तियों वाले इस पेड़ को चीन और जापान में इतना पवित्र माना जाता है कि इसे मंदिरों में लगाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह पेड़ तीस करोड़ साल पहले भी धरती पर था.
बुज्जा
सारस जैसा दिखने वाला यह पक्षी भी मिस्र सभ्यता के देवता ठोठ से नाता रखता है. ऐसी मान्यता है कि मिस्र की लिपि की रचना ठोठ ने ही की थी और वे सभी देवताओं के बीच संवाद के लिए जिम्मेदार हैं.
लंगूर
कोई बच्चा बहुत उछल कूद करे, तो मजाक मजाक में उसे बंदर या लंगूर कह कर पुकारा जाता है. लेकिन प्राचीन मिस्र में लंगूर को पवित्र माना जाता था. विज्ञान और चांद के देवता ठोठ को अधिकतर लंगूर के रूप में दर्शाया जाता था.
गुबरैला
लाल रंग के गुबरैले को अक्सर अच्छी किस्मत से जोड़ कर देखा जाता है. साथ ही मिस्र में इस काले गुबरैले को इतना पवित्र माना जाता है कि किसी को दफनाने के दौरान कब्र में पत्थर के बने गुबरैले का ताबीज भी रखा जाता है ताकि मरने के बाद गुबरैला व्यक्ति की रक्षा कर सके.
चूहा
प्लेग जैसी बीमारी फैलाने और नालों में रहने के कारण चूहों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है. लेकिन भारत में यही चूहा भगवान गणेश की सवारी भी है. राजस्थान में चूहों को मारा नहीं जाता. बीकानेर के करीब तो चूहों का मंदिर भी है. (क्लाउस एस्टरलुस/आईबी)