हर जगह मौजूद विषैले पदार्थों से कैसे मिलेगी निजात
२४ फ़रवरी २०२३"फॉरएवर पॉल्युशन प्रोजेक्ट" यानी "चिरकालिक प्रदूषण परियोजना" ने यूरोप के 17 हजार से ज्यादा ठिकानों को परफ्लोरीनेटड अल्काइलेटड सब्सटैनसेस (पीएफएएस) से दूषित पाया है. इनमें से दो हजार ठिकानें तो हॉटस्पॉट मानी जा सकती हैं.
जानकारों ने इन रसायनों को चिरकालिक यानी हमेशा के लिए मौजूद रसायन कहा है जो इंसानी सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण परामर्शदाता रोलां वेबर, उन्हें "अब तक मिले सबसे खतरनाक रसायनों में" से मानते हैं.
करीब 4500 मानव निर्मित पदार्थ, पीएफएएस के दायरे में आते हैं. इन रसायनों के अवशेष पूरी दुनिया में मिलने लगे हैं. मिट्टी में, पीने के पानी में, जानवरों में और यहां तक कि मानव शरीरों में भी.
क्या मेरे शरीर में पीएफएएस हैं?
कोई 98 फीसदी अमेरिकियों के खून में पीएफएएस मिले हैं. भारत, इंडोनेशिया और फिलीपीन्स में हुए अध्ययनों में स्तन के दूध के कमोबेश सभी परीक्षण नमूनों में विषैले पदार्थ पाए गए. जर्मनी में हर बच्चे के शरीर में ये चिरकालिक रसायन मौजूद हैं और हर पांचवे बच्चे में खतरनाक स्तरों पर उनकी उपस्थिति पाई गई है.
मैंने सोचा मेरे शरीर में ये विषैले तत्व किस स्तर पर होंगे. इसका पता लगाना आसान नहीं है क्योंकि जर्मनी में बहुत चुनिंदा लैबों में ही इसके लायक टेस्ट करने की क्षमता है. लेकिन मैंने एक लैब खोज निकाली. एरलांगन शहर में इपासुम (आईपीएएसयूएम) की लैब मिली.
मैंने वहां अपना ब्लड सैंपल भेज दिया. उसमें पीएफओए और पीएफओएस पाए गए- सबसे ज्यादा ज्ञात फॉरएवर कैमिकल्स हैं ये. और इनकी वजह से लीवर और किडनी डैमेज हो सकती है, यौनशक्ति कम हो सकती है, नवजात शिशुओं का वजन प्रभावित हो सकता है और टीकों की ताकत भी. उच्च मात्रा में ये विषैले तत्व कैंसर का कारण भी बन सकते हैं. नये अध्ययनों में भी इन रसायनों और कोविड-19 के गंभीर मामलों के बीच संबंध की ओर इंगित किया गया है.
मेरे खून में प्रति लीटर चार नेनोग्राम पीएफओए और पीएफओएस पाए गए. ये रेत के एक कण के वजन का हजारवां हिस्सा है और इसका मतलब जर्मन औसत के लिहाज से मेरे अंदर ये पदार्थ, खतरे के निशानों से काफी नीचे हैं.
इपासुम में कार्यरत प्रोफेसर थोमास ग्योएन ने मेरे खून का विश्लेषण किया था. उन्होंने मुझे बताया कि उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान के मुताबिक उस मात्रा से खतरा नहीं है. लेकिन नतीजों से मेरे मन में खलबली मची रही क्योंकि ये पदार्थ अनवरत हैं और शरीर में जमा हो सकते हैं. ग्योएन कहते हैं, "मुख्य समस्या यही है कि अंत में वो किसी खुराक में जमा हो सकते हैं."
चिरकालिक रसायन इतने स्थिर होते हैं कि वे प्रकृति में भी विघटित नहीं होते और मनुष्य शरीर उन्हें बहुत धीरे धीरे बाहर निकालता है. वैज्ञानिक उन्हें विखंडित करने के तरीके खोज ही रहे हैं लेकिन ये काम अभी शुरुआती दौर में है.
ये विषैले पदार्थ, प्रकृति और हमारे शरीर में कैसे रह जाते हैं?
स्थिरता ही पीएफएएस को इतना उपयोगी बनाती है. पानी और वसा (फैट) से उन पर असर नहीं पड़ता, धूल- गंदगी उन पर नहीं जमती. लिहाजा कमोबेश हर उद्योग में उनका इस्तेमाल किया जाता है और विभिन्न किस्म के उत्पादों में वे पाए जाते हैं- कृत्रिम चमड़ा, फोटोग्राफिक पेपर, पेस्टिसाइड, अग्निशमन उपकरणों के झाग, डाई और विमान- हर कहीं.
मानवों में सबसे ज्यादा पीएफएएस, उनके भोजन से जाता है. दूषित इलाकों की मछली, मीट, दूध, अंडों और सब्जियों में ये रसायन खासतौर पर बड़ी मात्रा में हो सकते हैं.
अधिकांश सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, रासायनिक अवशेषों या गंदगी को छान नहीं पाते हैं, लिहाजा वे पर्यावरण में दाखिल हो जाते हैं- कचरा ठिकानों, औद्योगिक कचरों या कपड़ा धुलाई में. पैटागोनिया के दूरस्थ पहाड़ों, अंटार्कटिका की बर्फ और मध्य और पूर्व एशिया के अलताई पहाड़ों और यहां तक कि ध्रुवीय भालुओं, परिंदों और डॉल्फिनों के भीतर भी पीएफएएस पाए गए हैं.
पीएफएएस की उच्च दर वाले कुछ पशुओं में हॉर्मोन के स्तरों मे बदलाव देखा गया है और उनके लीवर और थायरॉइड पर भी असर पड़ा है. जैव प्रणालियों (ईकोसिस्टम्स) पर उनके असर को लेकर कम शोध हुए हैं.
एटम बम से लेकर किचन की अल्मारी तक
1938 में, अमेरिकी रसायन कंपनी डूपोन्ट ने, पीएफएएस रसायनों में से एक पीटीएफई का आविष्कार किया था. यह अत्यधिक तीव्र तापमान में धातु को जंक लगने या गलने से बचा सकता था, लिहाजा पहले एटम बम में उसका इस्तेमाल किया गया.
पीटीएफई जल्द ही घरों में भी दिखने लगा, "टेफ्लॉन" नाम से फ्राइंग पैन की टिकाऊ कोटिंग के रूप में. बाजार में उसने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए.
लेकिन 1998 में, ये नॉनस्टिक ब्रांड विवादों में फंस गया. एक किसान ने शिकायत दर्ज कराई कि पार्कर्सबर्ग वेस्ट वर्जीनिया में टेफ्लॉन के उत्पादन प्लांट के पास चर रही उसकी गायें बीमार पड़कर दम तोड़ रही हैं.
पर्यावरण अधिवक्ता और मवेशीपालक किसान की डुपोंट के खिलाफ कानूनी लड़ाई के झंडाबरदार, रॉबर्ट बिलॉट ने कहा कि उनके मुवक्किल ने "अपनी जमीन के पास एक कचरा ठिकाने से सफेद झाग निकलते देखा था." जल्द ही ये पता चल गया कि डुपोंट फैक्ट्री के सीवेज और कचरा ठिकाने के रिसाव से इलाके के हजारों लोग पीएफएएस जैसे विषैले रसायन से संक्रमित हो गए थे.
दस्तावेज दिखाते हैं कि डुपोन्ट को दशकों से खतरे का पता था लेकिन पर्यावरण में जहरीला पदार्थ बहाना उसने जारी रखा. अधिकारियों को इसकी कानोंकान खबर नहीं हुई.
अध्ययन दिखाते है कि इलाके में पाए गए पीएफएएस के उच्च स्तरों का संबंध गुर्दे और अंडकोषीय कैंसर के मामलों में बढ़ोत्तरी से है. 2017 में डुपोंट, शारीरिक नुकसान की एवज पीड़ितों को बतौर मुआवजा 67 करोड़ डॉलर देने को राजी हो गई.
कानून की कमियों से उद्योग की चांदी
नीदरलैंड्स, बेल्जियम और इटली समेत दूसरे देशों में भी पीने के पानी और पर्यावरण को दूषित करने वाले पीएएफएएस के मामले मिले हैं. इनमें से कुछ विषैले रसायन यूरोपीय संघ, अमेरिका और जापान में अब हटाए जा रहे हैं. आबादी में मिल रही मात्रा में भी गिरावट आई है. जर्मनी में 1990 से ये औसत आधे से भी कम रह गया है.
इन कार्रवाइयों के जवाब में कैमिकल इंडस्ट्री नयी पीढ़ी के पीएफएस का उत्पादन कर रही है जो अपने पूर्ववर्तियों से बहुत ही मामूली तौर पर अलग हैं लेकिन अब किसी प्रतिबंध की जद में नहीं आते.
मैं अपनी हिफाजत कैसे करूं?
ये तमाम चीजें जानकर मुझे क्या हासिल होगा? मैं तो थोड़ा हैरान-परेशान हूं. इतनी सारी चीजों में जो पदार्थ मौजूद है लेकिन जिसकी कोई सूचना न लेबल पर होती है ना पैकिंग में, उससे बचे रह पाना बड़ी असंभव सी बात लगती है.
फिलहाल तो, मैंने रसोई से नॉनस्टिक पैन को हटा दिया है. पीने के पानी में पीएफएएस न मिले, इसके लिए मैं एक वॉटर फिल्टर खरीदने की सोच रहा हूं. लगता है कि टेकअवे और तुरतफुरत खाना मेरे खाने के मेन्यू में और नीचे खिसक जाएगा, मुझे वो वैसे ज्यादा पसंद कभी था भी नहीं. इस तरह मैं पीएफएएस वाली डिस्पोसेबल पैकिंग से दूर रह सकता हूं. लेकिन फ्रोजन पालक के डिब्बे का क्या करूं, उसे तो मैं नहीं हटा सकता- मुझे बचपन से काफी पसंद है.
वैश्विक स्तर पर, पीएफएएस को हटाने का दबाव बढ़ने लगा है. ग्रीनपीस की एक मुहिम के बाद, कपड़ा निर्माता कंपनियों वाउडे, परामो और रोटाउफ ने अपने माल को डिटॉक्स करने की प्रतिबद्धता जताई है. स्वीडन की फर्नीचर निर्माता कंपनी आइकिया ने कहा है कि उसने भी उन विषैले पदार्थों पर बैन लगा दिया है. जबकि जर्मनी, डेनमार्क, नॉर्वे और स्वीडन जैसे देश, 2030 तक यूरोपीय संघ में पीएफएएस पर समग्र रूप से प्रतिबंध लगाने पर जोर दे रहे हैं.