पाकिस्तान: संकट में कूड़ा बीनने वालों का भविष्य
२३ नवम्बर २०२३आबादी के लिहाज से पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर कराची लाखों अफगानों का घर रहा है. इनमें से ज्यादातर अवैध रूप से पाकिस्तान में रह रहे थे. कई अफगान कूड़ा बीनकर अपना जीवन चला रहे थे. उनके जाने से यहां के रिसाइक्लिंग कारोबार को तगड़ा झटका लगेगा.
इस महीने में अब तक कुल 2.80 लाख लोगों को अफगानिस्तान भेजा जा चुका है. पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि उनके देश में लगभग 40 लाख अफगान रह रहे हैं और इनमें से 17 लाख शरणार्थी ऐसे हैं जिनके पास कोई वैध दस्तावेज नहीं हैं.
कराची दो करोड़ की आबादी वाला पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर है. लाखों अफगान दशकों से यहां रह रहे हैं. जिन लोगों के पास यहां रहने के वैध दस्तावेज नहीं है, उनके पास जीवन चलाने का एक मात्र साधन है कचरा चुनना और उसका निपटारा करना.
शहर का कचरा कौन उठाएगा
कराची स्कूल ऑफ बिजनेस एंड लीडरशिप के सर्कुलर प्लास्टिक इंस्टीट्यूट से जुड़े शोध प्रमुख शिजा असलम कहते हैं, "ये अफगान सरकार की उदासीनता की नीति में फंस गए हैं." असलम कहते हैं कि कराची में कम से कम 43,000 लोग कचरा बीनने का काम करते हैं, जिनमें से अधिकांश हैं अफगान नागरिक हैं.
वो कहते हैं, "अगर वे चले गए तो यह पाकिस्तान के लोगों के लिए स्वास्थ्य आपदा का कारण बनेगा."
पाकिस्तान प्लास्टिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के सदस्य शोएब मुंशी का कहना है कि इन अफगान श्रमिकों के जाने से शहर के कचरे की रिसाइक्लिंग भी धीमी हो जाएगी. मुंशी के मुताबिक, "कचरा ट्रांसफर स्टेशन ओवरलोड हो जाएंगे और कूड़ा सड़कों और नालियों पर बहने लगेगा या फिर अधिक कूड़ा जलाया जाएगा."
उन्होंने राज्य सरकार से प्रवासी श्रमिकों के जाने से पैदा हो रहे संकट से निपटने के लिए कार्रवाई की अपील की है.
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के प्रांतीय बोर्ड के एक अधिकारी के मुताबिक मजदूरों की कमी से पैदा हुई खाई को भरने के लिए एक योजना तैयार की गई है. नाम न छापने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा, "अफगानों के निर्वासन से बहुत पहले ही हमारे पास एक योजना थी. रीसाइक्लिन करने वाले अब सीधे हमसे खरीद सकते हैं."
अफगान प्रवासी शहरों को साफ रखने में मदद करते हैं
कुछ अफगान शरणार्थियों को अफगानिस्तान में तालिबानी शासन का डर सता रहा है. पाकिस्तान में रह रहे ये शरणार्थी न तो अपने देश लौटना चाहते हैं और न ही निर्वासित होना चाहते हैं. खास तौर से हजारा शिया समूह जैसे अल्पसंख्यक समुदायों जिन्हें पहले चरमपंथी तालिबान द्वारा सताया गया जा चुका है.
जबकि कुछ अन्य लोगों का मानना है कि वे केवल पाकिस्तान में ही बेहतर जीवन जी सकते हैं. पाकिस्तान उनका एकमात्र देश है, कई युवा अफगानों ने यहां अपनी आंखें खोलीं और वे इस जमीन को छोड़ना नहीं चाहते हैं.
20 साल के मूसा का जन्म पाकिस्तान में हुआ था और उन्होंने कभी अफगानिस्तान नहीं देखा. डर की वजह से पूरा नाम नहीं बताने वाले मूसा कहते हैं, "हमारे रिश्तेदार हमें नहीं आने के लिए कह रहे हैं, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं है."
एक महीने पहले तक मूसा और उसका भाई कचरा छांटकर और रिसाइक्लिंग के लिए कीमती चीजें जैसे कार्डबोर्ड, धातु और प्लास्टिक की बोतलें बेचकर हर महीने 1,20,000 रुपये कमाते थे.
दोनों भाइयों के पास अफगान नागरिक कार्ड है, जो एक आधिकारिक सरकारी दस्तावेज है, जो उन्हें कानूनी रूप से पाकिस्तान में रहने और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंचने के साथ-साथ अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने की इजाजत देता है.
लेकिन अब पाकिस्तान में कानूनी रूप से रह रहे अफगानों को भी डर है कि उन्हें भी देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
एए/वीएस (रॉयटर्स)