एक बार फिर उबल रहा है ‘पूर्व का ऑक्सफोर्ड’
२७ सितम्बर २०२२इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हजारों छात्र पिछले करीब 22 दिन से विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में फीस में हुई बढ़ोत्तरी के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन ने करीब तीन हफ्ते पहले हुई कार्यकारी परिषद में विभिन्न पाठ्यक्रमों में काफी ज्यादा फीस बढ़ाने का फैसला किया जिससे छात्रों में नाराजगी बढ़ गई. छात्रों ने विश्वविद्यालय की कुलपति से मिलकर अपनी आपत्ति दर्ज करानी चाही लेकिन कुलपति से मिलना का मौका उन्हें अब तक नहीं मिला है. इसी वजह से आंदोलन नारेबाजी और पोस्टर प्रदर्शनों से शुरू होकर तालाबंदी, मशाल जुलूस और आत्मदाह की कोशिशों तक पहुंच गया है.
आंदोलनकारी छात्रों का कहना है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से हजारों की संख्या में गरीब छात्र पढ़ने आते हैं और उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती है कि वो इतनी ज्यादा फीस और फिर यहां रहने का खर्च उठा सकें. इस विश्वविद्यालय में न सिर्फ यूपी और बिहार बल्कि देश के अन्य राज्यों के भी छात्र बड़ी संख्या में पढ़ने आते हैं. इसके अलावा विश्वविद्यालय और उसके आस-पास के इलाकों में बड़ी संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र भी रहते हैं.
मध्य प्रदेश के सीधी जिले के रहने वाले दुर्गेश सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं यहां से एमकॉम कर रहा हूं. बीकॉम की पढ़ाई में हर साल सिर्फ एक हजार रुपये फीस लगती थी लेकिन नए छात्रों को अब इसी पढ़ाई के लिए साल भर में चार हजार देने होंगे. इसके अलावा बाहर रहने का पांच-छह हजार रुपया खर्च अलग. यहां सभी बच्चों को हॉस्टल मिल नहीं पाता है और अब तो हॉस्टल की फीस भी कई गुना बढ़ा दी गई है. हमारे जैसे गरीब परिवारों के घरों से यदि दो-तीन बच्चे पढ़ रहे हों तो भला बताइए, वो कैसे पढ़ पाएंगे?”
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कक्षाओं यानी बीए, बीएससी और बीकॉम के छात्रों से ट्यूशन और अन्य मदों के लिए सालाना फीस के तौर पर 975 रुपये लिए जाते थे, उन्हें बढ़ाकर अब 3901 रुपये सालाना कर दिया गया है. इसी तरह से मास्टर डिग्री और अन्य कोर्सों की फीस भी इसी अनुपात में बढ़ाई गई है. विश्वविद्यालय प्रशासन का तर्क है कि लंबे समय से फीस नहीं बढ़ाई गई थी, और अब बढ़ाई जा रही है तो छात्रों को यह ज्यादा लग रही है. जबकि अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पहले से ही इतनी या इससे भी ज्यादा फीस ली जा रही है.
विश्वविद्यालय में सेल्फ फाइनेंस स्कीम के तहत पहले से ही कई ऐसे व्यावसायिक कोर्स चल रहे हैं जिनकी फीस साल भर में पचास हजार से भी ज्यादा है. छात्रों को इन कोर्सों की फीस पर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि एक तो ये प्रोफेशनल कोर्सों की फीस हैं, दूसरे इन कोर्सों के लिए छात्रों को लोन इत्यादि भी मिल जाते हैं लेकिन बीए, बीएससी और बीकॉम जैसे कोर्स तो सामान्य छात्र और लगभग सभी छात्र करते हैं.
छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अजय यादव सम्राट कहते हैं, "विश्वविद्याल प्रशासन तर्क दे रहा है कि उसके पास फंड की कमी है जबकि छात्रों के पैसे का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा है. कई ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति लाखों रुपये महीने की तनख्वाह पर की गई है जिनका कोई काम नहीं है. हॉस्टलों की स्थिति बद से बदतर है लेकिन वहां कोई पैसा नहीं खर्च हो रहा है. कक्षाओं और प्रयोगशालाओं की अव्यवस्था किसी से छिपी नहीं है तो विश्वविद्यालय केंद्र से मिल रहे पैसों का क्या कर रहा है और अब वह गरीब छात्रों से इतना पैसा वसूल कर क्या करना चाहता है. सच्चाई तो यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और खासकर कुलपति गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा से ही वंचित करना चाहते हैं. फीस इतनी बढ़ा दी जाए ताकि वो विश्वविद्यालय में पढ़ने की हिम्मत ही न जुटा पाएं.”
छात्रों के इस आंदोलन के दौरान कई बार छात्रों की पुलिस से भी झड़प हो चुकी है और कई छात्र चोटिल भी हुए हैं. दो दिन पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों ने कुछ हॉस्टलों और विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार को बंद करने की कोशिश की. इस दौरान पुलिस के साथ छात्रों की झड़पें हुईं, कुछ छात्रों को गिरफ्तार भी किया गया और कई छात्रों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई है. इस बीच, छात्रों के आंदोलन को समाज के दूसरे वर्गों के लोग भी समर्थन दे रहे हैं.
मंगलवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कमल कृष्ण रॉय के नेतृतव में बड़ी संख्या में वकीलों ने छात्रों के समर्थन में जुलूस निकाला और विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले की आलोचना की. डीडब्ल्यू से बातचीत में कमल कृष्ण रॉय ने कहा, "आज हमारे हजारों छात्र-छात्राएं नई शिक्षा नीति, शिक्षा पर कॉरपोरेट कंट्रोल और केंद्र सरकार का सबसे क्रूर हमला झेल रहे हैं. करीब तीन हफ्ते होने को हैं, फीस वृद्धि के खिलाफ सारे छात्र एक अभूतपूर्व आंदोलन और जुझारू संघर्ष में मोर्चा लगाए हुए हैं. कदम कदम पर खाकी वर्दी से छात्रावासों और डेलीगेसी के लड़ाकों से मुठभेड़ें हो रही हैं. आत्मदाह करने का प्रयास करने वाले छात्रों को बचाने की बजाय उन पर लाठियां बरसाई जा रही हैं. अगर यह लड़ाई नही जीती गई तो गरीब, मध्यमवर्गीय, ग्रामीण, कस्बाई परिवारों के बच्चों का यह आखिरी शैक्षणिक सत्र होगा.”
फीस वृद्धि के मामले में डीडब्ल्यू ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति डॉक्टर संगीता श्रीवास्तव से बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई. हालांकि पता चला है कि 28 सितंबर को कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाई गई है और हो सकता है कि उसमें फीस वृद्धि के मामले पर भी चर्चा हो लेकिन विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी से इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ भवन के सामने छात्र संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा पिछले 22 दिनों से आमरण अनशन जारी है. आमरण अनशन कर रहे छात्र नेता अजय सिंह यादव सम्राट का कहना है कि छात्रों को इस बात पर भी आपत्ति है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने पूरे परिसर को छावनी में तब्दील कर दिया है जबकि यहां बड़े-बड़े आंदोलनों के बावजूद परिसर में पुलिस जल्दी नहीं घुसती है. अनशन पर बैठे और आंदोलनरत छात्रों के समर्थन में विश्वविद्यालय के कई पुरा छात्रों और राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों का भी आना-जाना लगा रहता है और सभी ने इस फीस वृद्धि को वापस लेने की अपील की है.
सोमवार को कुछ छात्रों ने कुलपति के लापता होने संबंधी पोस्टर लगा दिए जिसके शहर में काफी चर्चा हुई और ये पोस्टर सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गए. विश्वविद्यालय के एक छात्रावास में रहने वाले बीएससी तृतीय वर्ष की छात्रा रेणुका पुरी भी फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन में शामिल हैं.
पश्चिमी यूपी के एक गांव की रहने वाली रेणुका कहती हैं, "यह ठीक है कि दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी फीस बढ़ी है इसलिए यहां भी बढ़ा दी गई. लेकिन एक ही बार में इतनी ज्यादा बढ़ोत्तरी नहीं करनी थी. .. एकाएक चार गुना ही बढ़ा दिया." रेणुका आगे बताती हैं कि "अमीर लोगों के लिए चार-पांच हजार रुपये कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन जिनके परिवारों की आय ही महज दस-पंद्रह हजार रुपये महीने की हो, वो अपने बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे? और इस विश्वविद्यालय में एक बड़ी तादाद ऐसे ही परिवारों के बच्चों की है.”
इलाहाबाद विश्वविद्यालय देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है. साल 1887 में स्थापित इस विश्वविद्यालय ने अभी चार दिन पहले यानी 23 सितंबर को ही अपना 135 वां स्थापना दिवस मनाया है. विश्वविद्यालय में पढ़े छात्रों में से देश के कई प्रधानमंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति, गवर्नर, न्यायाधीश, नौकरशाह, साहित्यकार और कलाकार भी रह चुके हैं. प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी के लिए आज भी यह विश्वविद्यालय छात्रों की पहली पसंद होता है, हालांकि अब यहां से इन सेवाओं में जाने वाले छात्रों की संख्या में काफी कमी आ गई है.
अभी कुछ साल पहले विश्वविद्याल ने यूजीसी को तीन सौ करोड़ रुपये इसलिए लौटा दिए थे क्योंकि विश्वविद्यालय इन पैसों को खर्च नहीं कर सका था. छात्रों का सवाल है कि तीन सौ करोड़ रुपये बिना खर्च किए लौटा देने वाले विश्वविद्यालय को एकाएक पैसों की इतनी कमी का सामना क्यों करना पड़ गया कि उसने एक ही बार में चार गुना फीस बढ़ा दी.