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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

वैज्ञानिक हैरानः सिर्फ 30 लाख साल में कैसे बना ग्रह

२५ नवम्बर २०२४

खगोलविदों ने एक ऐसा नया ग्रह खोजा है, जो सिर्फ 30 लाख साल में बनकर तैयार हो गया. यह खोज ग्रहों के निर्माण की गति को लेकर वैज्ञानिक समझ को चुनौती देती है.

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मिल्की वे के बाहर सितारों की तस्वीर
मिल्की वे की बाहरी परत पर सितारेतस्वीर: K. Ohnaka et al./ESO/REUTERS

खगोलविदों ने एक ऐसा नया ग्रह खोजा है, जो सिर्फ 30 लाख साल में बनकर तैयार हो गया. यह खोज ग्रहों के निर्माण की गति को लेकर विज्ञान की समझ को चुनौती देती है.

यह ग्रह, जिसका द्रव्यमान पृथ्वी के मुकाबले 10 से 20 गुना ज्यादा है, अब तक खोजे गए सबसे युवा ग्रहों में से एक है. यह हमारे सौरमंडल से बाहर, यानी एक "एक्सोप्लैनेट," के रूप में पाया गया है. यह ग्रह उस घनी गैस और धूल की डिस्क के पास मौजूद है, जिसे "प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क" कहा जाता है. यही डिस्क ग्रह के निर्माण के लिए कच्चा माल देती है.

कैसा है इस ग्रह का तारा

यह ग्रह जिस तारे की परिक्रमा करता है, वह भविष्य में "ऑरेंज ड्वॉर्फ" बनेगा. ऑरेंज ड्वॉर्फ आकार, तापमान और चमक में हमारे सूर्य से छोटे और ठंडे होते हैं. इन तारों का जीवनकाल लंबा होता है। ये तारे धीमी गति से जलते हैं, जिससे इनका जीवन अरबों से लेकर खरबों साल तक हो सकता है.

खोजा गया तारा हमारी आकाशगंगा, मिल्की वे, में पृथ्वी से लगभग 520 प्रकाश वर्ष दूर है. एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो प्रकाश एक वर्ष में तय करता है, यानी लगभग 9.5 ट्रिलियन किलोमीटर.

नॉर्थ कैरोलाइना यूनिवर्सिटी की छात्रा और इस अध्ययन की मुख्य लेखिका मैडिसन बार्बर बताती हैं कि यह खोज साबित करती है कि ग्रह 30 लाख सालों में बन सकते हैं. उन्होंने कहा, "यह पहले स्पष्ट नहीं था क्योंकि पृथ्वी को बनने में 100 से 200 लाख साल लगे थे."

अध्ययन के सह-लेखक और खगोल भौतिकीविद एंड्रू मैन ने कहा, "हम यह नहीं जानते कि ग्रहों को बनने में कितना समय लगता है लेकिन बड़े ग्रहों को डिस्क के खत्म होने से पहले ही बनना पड़ता है, क्योंकि उन्हें गैस की जरूरत होती है. लेकिन डिस्क को खत्म होने में 50 से 100 लाख वर्ष लगते हैं. तो सवाल यह है कि ग्रह 10 लाख साल में बनते हैं, 50 लाख साल में में या एक करोड़ साल में." 

कैसा है नया ग्रह 

इस ग्रह का नाम आईआरएएस 04125+2902बी और टीआईडीवाईई-1बी रखा गया है. यह ग्रह अपने तारे की परिक्रमा हर 8.8 दिन में करता है और तारे से उतनी ही दूरी पर है, जितना हमारे सौरमंडल में बुध और सूर्य के बीच की दूरी का पांचवां हिस्सा बनता है.

यह ग्रह पृथ्वी और नेप्च्यून के द्रव्यमान के बीच है. यह पृथ्वी से कम घना है और इसका व्यास पृथ्वी से 11 गुना ज्यादा है. इसकी रासायनिक संरचना के बारे में अभी वैज्ञानिकों को कोई जानकारी नहीं है. वैज्ञानिकों को संदेह है कि यह ग्रह पहले तारे से दूर बना और फिर धीरे-धीरे उसके करीब आ गया.

मैडिसन बार्बर ने बताया, "तारे के करीब बड़े ग्रह का बनना मुश्किल है, क्योंकि डिस्क सबसे पहले तारे के पास से खत्म होती है. इससे जल्दी और बड़े ग्रह के बनने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं बचती." 

कैसे मिला ग्रह

वैज्ञानिकों ने इस ग्रह को "ट्रांजिट" पद्धति से खोजा है. इसमें उस वक्त तारे की चमक में गिरावट का अध्ययन किया गया, जब ग्रह तारे के सामने से गुजरता है. इस खोज में नासा के टीईएसएस (ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट) स्पेस टेलीस्कोप का उपयोग किया गया. 

मंगल ग्रह में वैज्ञानिकों की इतनी दिलचस्पी क्यों

बार्बर ने बताया, "यह सबसे युवा ज्ञात ट्रांजिटिंग ग्रह है. यानी यह अब तक के सबसे युवा ग्रहों में से एक है." 

तारे और ग्रह गैस और धूल के बादलों से बनते हैं. बार्बर बताती हैं, "तारा-ग्रह प्रणाली बनने के लिए गैस और धूल का बादल ढहता है और घूमकर एक समतल डिस्क बनाता है. तारा केंद्र में होता है और उसके चारों ओर डिस्क रहती है. ग्रह इसी डिस्क में बनते हैं."

बार्बर ने यह भी कहा, "पहले ऐसा माना जाता था कि इतने युवा ट्रांजिटिंग ग्रह नहीं मिल सकते क्योंकि डिस्क के कारण ग्रह तारे के सामने नहीं दिखते. लेकिन इस डिस्क के बाहरी हिस्से में किसी कारण से विकृति है, जिससे तारे तक देखने के लिए सही खिड़की मिल गई और हम इस ग्रह को देख पाए." 

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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