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कानून और न्यायभारत

भारत के हर छठवें पुलिस थाने में नहीं लगे हैं सीसीटीवी कैमरे

आदर्श शर्मा
२७ सितम्बर २०२४

ओडिशा के एक थाने में हुई यौन उत्पीड़न की घटना ने सीसीटीवी कैमरों की सख्त जरूरत की ओर ध्यान दिलाया है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही आदेश दे चुका है कि पुलिस हिरासत में होने वाली हिंसा रोकने के लिए सीसीटीवी जरूरी हैं.

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2022 में यास तूफान के आने से पहले जानमाल की सुरक्षा के इंतजामों में तैनात ओडिशा पुलिस
फाइल फोटो: ओडिशा पुलिसतस्वीर: STR/NurPhoto/picture alliance

बीते दिनों ओडिशा से एक परेशान करने वाली खबर आई. एक महिला ने आरोप लगाया कि राजधानी भुवनेश्वर के एक पुलिस थाने में उनके साथ यौन उत्पीड़न किया गया. कथित घटना 14-15 सितंबर की दरमियानी रात को हुई. महिला कुछ युवकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए भुवनेश्वर के भरतपुर पुलिस स्टेशन गई थीं. उनके साथ उनके मंगेतर भी थे, जो सेना में अधिकारी हैं.

महिला ने मीडिया से कहा, "थाने में मेरी एफआईआर दर्ज नहीं की गई. बल्कि मेरे मंगेतर को कस्टडी में डाल दिया. विरोध करने पर दो महिला अफसरों ने मुझे पीटना शुरू कर दिया. जैकेट से मेरे हाथ बांध दिए और एक स्कॉर्फ से पैर बांधकर मुझे कमरे में डाल दिया. इसके बाद एक पुरुष अधिकारी ने मेरी छाती पर लातें मारीं. फिर स्टेशन के प्रभारी निरीक्षक आए और उन्होंने मेरा और खुद का पैंट नीचे कर दिया और मुझे अपना लिंग दिखाकर भद्दी बातें कीं.”

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पुलिस ने तब महिला को गिरफ्तार भी कर लिया था. महिला को 18 सितंबर को ओडिशा हाईकोर्ट से जमानत मिली. उसके बाद उन्होंने मीडिया के सामने आकर पुलिस पर यह आरोप लगाए. इस मामले में थाने के प्रभारी निरीक्षक समेत पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है और उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई है. मामले की न्यायिक जांच के आदेश भी दिए गए हैं.

पुलिस स्टेशन में नहीं लगे थे सीसीटीवी कैमरे

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भरतपुर पुलिस स्टेशन की नई इमारत का उद्घाटन इसी साल मार्च में हुआ था. लेकिन उसमें सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए गए थे. मामले की जांच कर रही क्राइम ब्रांच ने कहा है कि कैमरे ना होने की वजह से सबूत जुटाने में दिक्कत आएगी. ओडिशा हाईकोर्ट ने भी थाने में सीसीटीवी कैमरे ना होने पर नाराजगी व्यक्त की और कहा कि इस वजह से सच्चाई सामने नहीं आ सकी. हाईकोर्ट ने राज्य के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश भी दिया.

इसके बाद ओडिशा के पुलिस महानिदेशक वाईबी खुरानिया ने कहा है कि आठ अक्टूबर तक राज्य के प्रत्येक पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगा दिए जाएंगे. दरअसल, पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों का होना कानूनी रूप से जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2020 में इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए थे. जस्टिस आरएफ नरीमन, केएम जोसेफ और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया था कि हर थाने में सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिए.

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जानकारों के मुताबिक, इस फैसले का उद्देश्य पुलिस हिरासत में होने वाली हिंसा पर लगाम लगाना था, जिससे फरियादियों और आरोपियों दोनों के मानवाधिकार सुरक्षित रहें. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मुताबिक, पूरे देश में साल 2018 से 2023 के बीच पुलिस हिरासत में हुई मौतों के संबंध में 650 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. सबसे ज्यादा मामले गुजरात (81) और महाराष्ट्र (80) में दर्ज हुए. इसके अलावा एमपी में 50, यूपी में 41, पश्चिम बंगाल में 40 और  तमिलनाडु में 36 मामले सामने आए.

देश के तीन हजार थानों में नहीं लगे सीसीटीवी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, अभी तक देश के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं. ओडिशा का भरतपुर थाना इसका ताजा उदाहरण है. पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के डेटा के मुताबिक, एक जनवरी, 2023 को देशभर में करीब 18 हजार पुलिस थाने थे. इनमे से करीब 15 हजार पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे थे और करीब तीन हजार थानों में नहीं थे. यानी देश के हर छठवें पुलिस थाने में सीसीटीवी रिकॉर्डिंग की व्यवस्था नहीं थी. वहीं, ओडिशा की बात करें तो एक जनवरी 2023 को वहां कुल 679 पुलिस थाने थे, जिनमें से 88 थानों में सीसीटीवी कैमरे नहीं थे.

इसके अलावा, अलग-अलग राज्यों की पुलिस के पास मौजूद सीसीटीवी कैमरों की संख्या में भी भारी अंतर है. डेटा के मुताबिक, एक जनवरी 2023 को देश भर में पुलिस के पास करीब साढ़े पांच लाख सीसीटीवी कैमरे थे. इनमें से करीब दो लाख 80 हजार कैमरे सिर्फ तेलंगाना पुलिस के पास थे. वहीं ओडिशा पुलिस के पास सिर्फ 780 सीसीटीवी कैमरे मौजूद थे. इसके अलावा असम, झारखंड, बिहार और उत्तराखंड आदि राज्यों में भी पुलिस के पास हजार से कम सीसीटीवी थे.

थाने में किन जगहों पर सीसीटीवी जरूरी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, थानों में लगाए जाने वाले सीसीटीवी कैमरे चौबीसों घंटे चलने चाहिए. उनमें नाइट विजन और ऑडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा होनी चाहिए. साथ ही कम से कम साल भर की फुटेज सुरक्षित रखने की क्षमता होनी चाहिए. थानों के सभी प्रवेश और निकास द्वार पर सीसीटीवी होने चाहिए. इसके अलावा सभी हवालात, गलियारे, बरामदे, रिसेप्शन एरिया, निरीक्षक और उप-निरीक्षक के कमरे और शौचालयों के बाहर की जगह भी कैमरों की जद में आनी चाहिए.

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शीर्ष अदालत ने कहा था कि इसके लिए राज्य और जिला स्तर पर निरीक्षण समितियां बनाई जाएं, जिनमें उच्च अधिकारी शामिल हों. सीसीटीवी कैमरों के संचालन, निगरानी और रखरखाव का जिम्मा जिला स्तरीय निगरानी समिति के पास होगा. यह समिति थानों के सीसीटीवी फुटेज देखकर यह भी पता लगाएगी कि किसी थाने में मानवाधिकार का उल्लंघन तो नहीं हुआ है. वहीं, राज्य स्तरीय निगरानी समिति की जिम्मेदारी होगी कि वह जिलों से आने वाली शिकायतों का निपटारा करे.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर पुलिस थाने में बल प्रयोग के चलते किसी को गंभीर चोट आती है या हिरासत में मौत होती है, तो राज्य मानवाधिकार आयोग या मानवाधिकार अदालतों में इसकी शिकायत की जा सकती है. इसके बाद आयोग या अदालत तुरंत घटना से जुड़ी सीसीटीवी फुटेज मंगवा सकती है, जिससे उसे सुरक्षित रखा जा सके और बाद में आगे की कार्रवाई के लिए जांच एजेंसी को उपलब्ध कराया जा सके.