ऑस्ट्रेलिया: मूल निवासियों के समर्थन में साथ आये 'देसी' लोग
७ जुलाई २०२३ऑस्ट्रेलिया में इसी साल होने वाले एक जनमत संग्रह में इस बात पर फैसला होना है कि ऐतिहासिक रूप से शोषित देश के मूल निवासियों को संसद में एक स्थायी समिति दी जाए ताकि वे उनसे जुड़े हर फैसले पर अपनी राय दे सकें.
इस समिति को 'वॉइस' नाम दिया गया है और देश का जनमत इस मुद्दे पर काफी हद तक बंटा हुआ है. सरकार वॉइस की स्थापना के समर्थन में अभियान चला रही है लेकिन एक बहुत बड़ा समुदाय उसका विरोध कर रहा है.
ऐसे में दक्षिण एशियाई मूल के लोगों का एक संगठन मूल निवासियों के समर्थन में एकजुट हुआ है. ‘देसीज फॉर येस' नाम से यह संगठन ‘वॉइस टु पार्लियामेंट' के समर्थन में दक्षिण एशियाई मूल के ऑस्ट्रेलियाई लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहा है.
पिछले हफ्ते ‘देसीज फॉर येस' की शुरुआत हुई. संस्थापकों का कहना है कि वे वॉइस के बारे में सूचनाओं को दक्षिण एशियाई समुदाय के लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं ताकि वे यस कैंपेन के समर्थन में वोट करें. ‘देसीज फॉर येस' के बैनर तले 150 से ज्यादा सांस्कृतिक और सामुदायिक संगठन मिलकर काम कर रहे हैं.
दक्षिण एशियाई लोगों के लिए मौका
रेडिकल सेंटर रिफॉर्म लैब नामक संगठन की निदेशक और एक वकील डॉ. शिरीन मोरिस कहती हैं, "मूल निवासियों को संवैधानिक मान्यता की जरूरत के बारे में जागरूकता जितनी बढ़ेगी, उसका समर्थन उतना ही बढ़ता जाएगा. यह देखना अद्भुत है कि इतने सारे दक्षिण एशियाई ऑस्ट्रेलियाई इस अभियान का हिस्सा बनने के लिए साथ आ रहे हैं.”
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‘देसीज फॉर येस' के सह-संयोजक और सिडनी अलांयस के सह-अध्यक्ष निशाध रेजो कहते हैं कि यह 21वीं सदी में पहुंच चुके ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों की मान्यता के लिए होने वाला जनमत संग्रह प्रतीकात्मक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है.
रेजो कहते हैं, "दक्षिण एशियाई मूल के लोगों के लिए यह जनमत संग्रह ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के साथ खड़ा होने का एक अनूठा मौका है. हम आप्रवासियों में से बहुत से लोग इस जनमत संग्रह में दिलचस्पी ले रहे हैं और बहुत से लोगों के अंदर इस बात को लेकर उत्सुकता होगी कि इसकी क्या अहमियत है व इसका असर क्या होगा.”
रेजो बताते हैं कि ‘देसीज फॉर येस' लोगों की इसी उत्सुकता को शांत करने के लिए काम करेगा और समुदायों तक यह बात पहुंचाएगा कि मूल निवासियों के लिए वॉइस की क्या जरूरत और अहमियत है.
संगठन के एक और संयोजक खुशहाल व्यास के मुताबिक आप्रवासी भी मूल निवासियों से भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करते हैं और उनका जीवन बदलने में हिस्सेदार बनना चाहते हैं.
व्यास कहते हैं कि बहुत से लोगों को मूल निवासियों के इतिहास और चुनौतियों के बारे में जानने का मौका नहीं मिल पाया है, जो वॉइस के प्रति जागरूकता के माध्यम से किया जा सकता है.
व्यास ने कहा, "यह एक ऐसा इतिहास है जिससे दक्षिण एशियाई लोग समानुभूति महसूस कर सकते हैं क्योंकि उपमहाद्वीप ने भी साम्राज्यवाद के प्रभाव झेले हैं.”
क्या है वॉइस
ऑस्ट्रेलिया में इस बात की कोशिश हो रही है कि 60 हजार साल से इस जमीन पर रह रहे मूल निवासियों को संवैधानिक रूप से ज्यादा मान्यता और अधिकार मिलें. 122 साल पुराने संविधान में उनका जिक्र तक नहीं है. इसलिए यह जनमत संग्रह आयोजित किया जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया के संविधान में किसी भी बदलाव के लिए जनमत संग्रह अनिवार्य है.
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मूल निवासी ऑस्ट्रेलिया की कुल 2.6 करोड़ आबादी का मात्र 3.2 प्रतिशत हैं. अधिकतर सामाजिक-आर्थिक मानकों पर उनका स्तर अन्य तबकों से कहीं नीचे है. अंग्रेजों के ऑस्ट्रेलिया की धरती पर आने के बाद से वे लगातार पीड़ित और दमित वर्ग बने रहे हैं. 1960 के दशक तक तो उन्हें मतदान का भी अधिकार नहीं था.
अब सरकार संविधान संशोधन प्रस्ताव पेश कर रही है जिसके तहत अक्तूबर और दिसंबर के बीच कभी जनमत संग्रह करवाया जाएगा. उसमें ऑस्ट्रेलिया के लोगों से सवाल पूछा जाएगा कि यह संशोधन होना चाहिए या नहीं. इसके तहत संसद में एक स्थायी समिति बनाए जाने का प्रावधान है.
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इस समिति को ‘एबॉरिजिनल एंड टॉरेस स्ट्रेट आइलैंड वॉइस' नाम दिया गया है. इस समिति का काम होगा मूल निवासियों से संबंधित मामलों पर सरकार को मश्विरा देना. हालांकि इस मश्विरे को मानना या ना मानना सरकार के हाथ में होगा.