हाथरस हादसा: भोले बाबा के 'चमत्कारी' संत बनने की कहानी
३ जुलाई २०२४उत्तर प्रदेश के हाथरस में 2 जुलाई की दोपहर को सत्संग के बाद हुए हादसे में मरने वालों की संख्या 121 तक पहुंच गई है. जिला प्रशासन इसकी पुष्टि कर चुका है. आस-पास के कई जिलों के अस्पतालों में घायलों का इलाज चल रहा है और मृतकों की संख्या बढ़ने का भी अनुमान है. 3 जुलाई को घटनास्थल पर पहुंचे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले की जांच हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से कराने के आदेश दिए हैं.
एफआईआर में भोले बाबा का नाम नहीं
घटना के लिए जिम्मेदार आयोजकों पर एफआईआर दर्ज हो गई है, लेकिन इसमें भोले बाबा का नाम नहीं है. इसपर सवाल भी उठ रहे हैं. भोले बाबा का नाम इससे पहले तब चर्चा में आया था, जब दो साल पहले भारत में कोरोना काल की चिंताजनक स्थितियों के बीच उन्होंने फर्रुखाबाद में सत्संग का आयोजन किया था.
उस वक्त जिला प्रशासन की तरफ से सत्संग में 50 लोगों के शामिल होने की अनुमति दी गई थी, लेकिन उस वक्त भी नियमों और अनुमति की धज्जियां उड़ाते हुए कार्यक्रम में पचास हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे. भीड़ के चलते शहर की यातायात व्यवस्था चरमरा गई थी और इस कारण जिला प्रशासन ने आयोजकों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज की थी.
2 जुलाई को हाथरस में हुए सत्संग को 'मानव मंगल मिलन' नाम दिया गया था. आयोजक के तौर पर 'मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम समिति' का नाम इश्तिहारों में दिया गया था. इस समिति में छह आयोजकों के नाम शामिल हैं. इन्हीं आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, लेकिन इसमें बाबा का नाम नहीं है. जानकारों के मुताबिक, इस तरह के आयोजनों में किसी भी घटना की जिम्मेदारी प्राथमिक तौर पर आयोजकों की ही होती है, लेकिन जांच के दौरान यदि किसी और की संलिप्तता नजर आती है, तो उनके नाम भी जोड़े जा सकते हैं.
क्या है भोले बाबा की पृष्ठभूमि
सूरजपाल जाटव उर्फ भोले बाबा कासगंज के पटियाली क्षेत्र के बहादुरनगरी गांव के रहने वाले हैं. प्रवचन के दौरान सूट-बूट और रंगीन चश्मे में अपनी पत्नी के साथ दिखते हैं. स्थानीय पत्रकार अशोक शर्मा बताते हैं कि पहले वह यूपी पुलिस की लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) में काम करते थे.
अशोक शर्मा के मुताबिक, "वह (भोले बाबा) तो कहते हैं कि स्वैच्छिक अवकाश (वीआरएस) लिया, लेकिन सच्चाई यह है कि छेड़छाड़ के एक मामले में पहले वह निलंबित किए गए और फिर बर्खास्त कर दिए गए. उसके बाद पटियाली में उन्होंने अपना आश्रम बनाया." अशोक शर्मा बताते हैं, "उनके घर पर एक नल लगा था. उन्होंने और उनके शुरुआती अनुयायियों ने प्रचारित किया कि उस नल का पानी पीने से तमाम रोग ठीक हो जाते हैं, लोगों की परेशानियां दूर हो जाती हैं. लोग नल का पानी भरकर ले जाने लगे."
अशोक शर्मा आगे बताते हैं, "यह बात फैलने लगी. अब तो घर पर कई नल लाइन से लगे हुए हैं. उसके बाद यह कासगंज से एटा चले गए और वहां सत्संग करने लगे. फिर तो भक्तों की संख्या बढ़ने लगी और देखते-ही-देखते यूपी के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश में भी अनुयायी बनने लगे. उनकी पैठ दलितों और पिछड़ों में काफी ज्यादा है."
कई राजनीतिक दलों से अच्छे संबंध
75 वर्षीय सूरजपाल उर्फ भोले बाबा तीन भाई हैं. एक भाई की मौत हो चुकी है, दूसरे भाई गांव के प्रधान रह चुके हैं. भोले बाबा गांव कम आते-जाते हैं, लेकिन उनके श्रद्धालु यहां आते हैं. तमाम जगहों पर इनके कई कार्यक्रम होते रहते हैं, जो स्थानीय आयोजकों की ओर से कराए जाते हैं. आयोजकों को आर्थिक लाभ भी होता है.
क्या इंदौर हादसे को रोका जा सकता था?
हालांकि, भोले बाबा के बारे में कहा जाता है कि वह अपने अनुयायियों से कोई भेंट या चढ़ावा या चंदा नहीं लेते हैं, लेकिन आयोजक उन्हें जरूर भेंट अर्पित करते हैं. आरोप है कि यह भेंट अनुयायियों या श्रद्धालुओं से ही चंदे और दूसरे तरीके से वसूल की गई होती है.
भोले बाबा मीडिया से तो बहुत कम बात करते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी टीम जरूर सक्रिय रहती है. बाबा का राजनीतिक रसूख भी है, सभी पार्टियों में है. आरोप लगते हैं कि बीएसपी सरकार में मंत्रियों जैसा रुतबा था, तो समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव उनके प्रशंसक हैं. प्रदेश की मौजूदा बीजेपी सरकार में भी उनके रुतबे में कमी नहीं आई है और कई मामले दर्ज होने के बावजूद उनपर कार्रवाई नहीं हुई है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, बड़े-बड़े अधिकारी भी उनके आश्रम पर आते-जाते रहते हैं.
बाबा के सत्संग में गए लोग क्या बताते हैं
मैनपुरी के रहने वाले सुनील भी हाथरस में भोले बाबा के कार्यक्रम में गए थे. वह पहले भी उनके सत्संग में जा चुके हैं. सुनील बताते हैं कि बाबा अपने प्रवचन में खुद को भगवान, यानी हरि का शिष्य बताते हैं और कहते हैं कि साकार हरि ही संपूर्ण ब्रह्मांड के मालिक हैं. हालांकि सुनील का यह भी कहना है कि ज्यादातर लोग उनकी कथित चमत्कारिक शक्ति की वजह से उनके अनुयायी बने हैं.
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "धार्मिक आयोजनों की एक पूरी अर्थव्यवस्था है. आयोजक तो कई तरह से आर्थिक लाभ उठाते ही हैं, स्थानीय लोगों से चंदा भी लेते हैं. बाबा भले ही न लेते हों, लेकिन आयोजक स्थानीय लोगों से लेकर बाबा को भेंट देते हैं. तो आम लोगों से ये बाबा भले ही न लेते हों, लेकिन बिना पैसे के इतना सब कुछ करते हों, यह तो संभव नहीं है. दूसरे धर्माचार्य तो पूरे ताम-झाम के साथ चलते हैं. उनकी टीम सब कुछ मैनेज करती है. आयोजकों से सीधे पैसा लेते हैं. इन धर्मगुरुओं के पास तो पूरा सिस्टम होता है. मीडिया तक को हैंडल करते हैं."
ऐसे आयोजनों की अनुमति कौन देता है?
हाथरस हादसे के बाद एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर इतने बड़े आयोजन की अनुमति मिलती कैसे है, जबकि इतनी बड़ी भीड़ को बुलाने के लिए तमाम तरह की औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं. अनुमति तो स्थानीय प्रशासन या जिला प्रशासन ही देता है, जैसा कि हाथरस के मामले में एसडीएम ने अनुमति दी थी. लेकिन तमाम अन्य विभागों से क्लियरेंस भी लेना होता है. हाथरस में आयोजित सत्संग से जुड़ी मौजूदा जानकारी के मुताबिक, यहां ऐसा कुछ नहीं किया गया. आरोप है कि प्रशासन ने भी बहुत जोर नहीं दिया.
क्यों मचती है भगदड़ और कैसे मरते हैं लोग?
सिद्धार्थ कलहंस बताते हैं, "राजनीतिक कार्यक्रम या सामाजिक और शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए तो तमाम तरह की औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं. एलाआईयू रिपोर्ट ली जाती है, जिसमें कई तरह की सूचनाएं होती हैं. यूपी में तो ऐसे कार्यक्रमों में ज्यादातर जगहों पर धारा 144 का हवाला देते हुए मना ही कर दिया जाता है. लेकिन धार्मिक कार्यक्रमों से जुड़े मामलों में तमाम मानकों को दरकिनार कर दिया जाता है. यहां तक कि आयोजक कोई औपचारिकता तक नहीं पूरी करते. सिर्फ सूचना दे देते हैं. वे जो बता देते हैं, प्रशासन वही मान भी लेता है."
अनुमति लेने के बाद प्रशासन यह भी सुनिश्चित करता है कि जरूरी सुविधाएं जैसे शौचालय, पानी के टैंकर वगैरह की जरूरत है कि नहीं. पुलिस का भी इंतजाम किया जाता है, लेकिन धार्मिक कार्यक्रमों में उन्हीं के वॉलंटियर्स पर सब छोड़ दिया जाता है.
भगदड़ के कारण मौतों का केंद्र बन रहा है भारतः शोध
यही नहीं, आने वाले लोगों के साथ कोई हादसा हो जाए तो उनका किसी तरह का कोई इंश्योरेंस भी नहीं होता. हादसे के बाद परिजन पूरी तरह से सरकारी अनुग्रह राशि के भरोसे ही रहते हैं और इलाज भी सरकार ही कराती है.