हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों को मिले नए जीव
२९ नवम्बर २०२२पर्थ से करीब ढाई हजार किलोमीटर दूर समुद्र में ऑस्ट्रेलिया के सबसे दूर-दराज इलाके में एक द्वीप है जिसे कोकोस द्वीप कहते हैं. हिंद महासागर के इस द्वीप में ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकजैव विविधता और समुद्रतल का नक्शा तैयार करने का काम कर रहे हैं, जो विश्व में पहली बार हो रहा है. अपने इस अभियान के दौरान इन्वेस्टिगेटर जहाज पर सवार इन वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे अनोखे जीव खोजे हैं जिन्हें इंसान ने पहली बार देखा है.
डंपलिंग जैसी दिखने वाली मछली से लेकर अपने ‘गलफड़ों' पर खड़े होने वाले जीवों तक जैसे अनूठे जीव वैज्ञानिकों ने खोजे हैं, जिन्हें नाम देने की प्रक्रिया अभी चल रही है. ये जीव समुद्र की गहराई में पांच किलोमीटर नीचे तक पाए गए हैं जहां ना रोशनी है, ना खाना है.
ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय शोध संस्थान कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (CSIRO) द्वारा चलाए जा रहे इस अभियान का नेतृत्व विक्टोरिया प्रांत की म्यूजियम्स विक्टोरिया नाम की संस्था कर रही है. इन्वेस्टिगेटर जहाज पर सवार म्यूजियम विक्टोरिया की अधिकारी डाएन ब्रे के मुताबिक वैज्ञानिकों ने जो मछलियां खोजी हैं, वे अनूठी और डरावनी हैं.
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सितंबर में जब इन्वेस्टिगेटर अपनी यात्रा पर निकला था, तब इस अभियान को ‘अनजान जगहों पर खजाने की तलाश' कहा गया था. सीएसआईआरओ ने कहा, "हमारा शोध जहाज इन्वेस्टिगेटर समुद्र की गहराइयों में जाने की प्रभावशाली क्षमता रखता है और हमारे महासागरों के दूर-दराज इलाकों में काम करने में काबिल है. हमारे महासागरों का पूरी तरह अनुसंधान नहीं हुआ है. इसलिए समय-समय पर हमारे शोधकर्ता नई प्रजातियां खोजते हैं.”
चार तरह की प्रजातियां
इस बार जो जीव खोजे गए हैं उनमें चार तरह की प्रजातियां हैं. इनमें से एक है तिपाई मछली, जिसके तीन तीन गलफड़ हैं जो तीन पांवों जैसे नजर आते हैं. यह मछली इन गलफड़ों पर खड़ी हो सकती है और हर तरह का खाना खा सकती है.
एक मछली है जो चमगादड़ जैसी दिखती है और इसे डंपलिंग जैसा भी देखा जा सकता है. एक मछली जिसे लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता देखी गई है, वह ईल प्रजाति की नई मछली है. इस बारे में ब्रे कहती हैं, "इसकी आंखें बहुत छोटी हैं. तस्वीरों में आप देखेंगे कि उसकी त्वचा में सुनहरा रंग नजर आता है. त्वचा भी फूली हुई और पसरी हुई है, जो बेहद दुर्लभ है.”
इन मछलियों को पकड़ने के लिए वैज्ञानिक एक जाल का उपयोग करते हैं. वे इस जाल को समुद्र की तलहटी तक उतारकर फैला देते हैं और फिर तीस मिनट तक स्थिर रखते हैं. उसके बाद उसे ऊपर खींचा जाता है. ब्रे बताती हैं कि जाल के साथ जो जीव आते हैं उनमें अद्भुत विविधता होती है.
वह कहती हैं, "हमारे पास ज्यादा बड़ा जाल नहीं है इसलिए वहां तलहटी में और भी बहुत से जीव रहते हैं जिन्हें हम नहीं उठा पाए हैं.”
इन जीवों को लेकर जब वैज्ञानिक तट पर आते हैं तो उनके सामने इनकी बांट-छांट करने का बड़ा काम होता है. उसमें वे खोजते हैं कि कौन से जीव हैं जिनके बारे में पहले से पता है और कुछ ऐसा हो जो पहले नहीं देखा गया हो.
अब नामकरण की बारी
सीएसआईआरओ के सामने इन नई प्रजातियों के नामकरण का बड़ा काम भी है. संस्था के मैट मैरिसन ने एक लेख में बताया है कि यह कितना बड़ा काम है. वह कहते हैं कि नामकरण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह किसी भी जीव के संरक्षण की दिशा में पहला कदम होता है, क्योंकि नाम के बिना तो प्रजाति का अस्तित्व ही नहीं है.
मैरिसन लिखते हैं, "अगर बिना नाम की कोई प्रजाति विलुप्त हो जाती है तो वह ब्रह्मांड में एक खला छोड़ जाती है. भोजन श्रंखला में, विस्तृत ईको सिस्टम में हर प्रजाति का स्थान है और उसके नुकसान का असर लहर की तरह सब तक पहुंचता है.”
इन्वेस्टिगेटर पहली बार समुद्रतल का नक्शा खींचने का काम कर रहा है. वैज्ञानिक द्वीपों का एक थ्रीडी नक्शा तैयार कर रहे हैं, जो कि अपनी तरह का पहला नक्शा होगा और समुद्र की उन गहराइयों को दिखा पाएगा, जिनसे इंसान पूरी तरह अज्ञात है.