गंगा सागर के चुंबा
हर साल बड़ी संख्या में हिंदू श्रद्धालु गंगा सागर पहुंचते हैं और वहां सिक्कों की भेंट चढ़ाते हैं. एक नजर चुंबक से इन सिक्कों को खींचकर गुजर बसर करने वाले लोगों पर.
गंगा के आखिरी दर्शन
पश्चिम बंगाल में गंगा सागर हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक पवित्र जगह है. वहां पहुंचने वाले श्रद्धालु गंगा की एक धारा को हिंद महासागर में विलीन होते हुए देखते हैं. इस दौरान वे पूजा भी करते हैं और गंगा सागर में भेंट के तौर पर सिक्के भी डालते हैं.
समंदर सब लौटा देगा
इलाके में एक कहावत मशहूर है कि समंदर को जो देंगे, वो उसे लौटा देगा. सिक्कों के साथ भी यही होता है. बड़ी संख्या में सिक्के लहरों के साथ बहते हुए किनारे पर आ जाते हैं. छिछले पानी में कई चुंबकों के साथ कुछ लोग उनका इंतजार कर रहे होते हैं.
जितना ताकतवर चुंबक, उतनी आसानी
जिसके पास जितने ज्यादा और पावरफुल चुंबक होंगे, उसे उतने ज्यादा सिक्के मिलेंगे. भारत के एक, दो, पांच और दस रुपये के नए सिक्के आराम से इन चुंबकों में चिपक जाते हैं.
हर दिन का काम
गंगा सागर में करीब 60 से 70 लोग आमदनी के लिए पूरी तरह अपने चुंबकों और इन सिक्कों पर निर्भर हैं. वे सुबह से देर शाम तक सिक्के बीनने में ही लगे रहते हैं.
कोई रोक टोक नहीं
सिक्के बीनने वालों में आम तौर पर निर्धन परिवारों से ताल्लुक रखने वाले पुरुष, बच्चे और महिलाएं शामिल हैं. इलेक्ट्रिशियन की दुकान से पुराने चुंबक खरीदकर ये लोग इस काम में लगे रहते हैं.
कितनी कमाई
लेकिन क्या इन सिक्कों के सहारे परिवार पाला जा सकता है? डीडब्ल्यू के संवाददाता ने सिक्के बीनने वाली एक महिला कुरनी से पूछा तो उन्होंने कहा कि कभी कभार एक हजार रुपये की कमाई भी हो जाती है.
महामारी की मार
आम तौर पर गंगा सागर में नौ महीने भारी भीड़ रहती है. लेकिन कोविड-19 के कारण बीते दो साल में सागर तट काफी हद तक सूना रहा है. बहुत कम श्रद्धालु यहां आ रहे हैं और इसका सीधा असर सिक्का बीनने वालों पर भी पड़ा है. (रिपोर्ट: सत्यजीत साहू, गंगा सागर)