शुरू हुआ कार्बन डाई ऑक्साइड सोखने वाले 'मैमथ' का निर्माण
१ जुलाई २०२२स्विट्जरलैंड आधारित क्लाइमवर्क्स एजी ने कहा है कि यह उसका दूसरा संयंत्र होगा जो आइसलैंड में बनाया जा रहा है. डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC) तकनीक पर आधारित इस संयंत्र को ‘मैमथ' नाम दिया गया है. ‘मैमथ' 18 से 24 महीने में बनकर तैयार होगा और हर साल 36 हजार टन कार्बन डाई ऑक्साइड सोखेगा.
कंपनी ने कहा कि पिछले साल 36 अरब टन ऊर्जा संबंधी कार्बन डाई ऑक्साइड वातावरण में छोड़ी गई और 36,000 टन उसके मुकाबले कोई खास मायने नहीं रखता, लेकिन क्लाइमवर्क्स की पहले से मौजूद क्षमता में यह संयंत्र दस गुना की वृद्धि करेगा. यह दुनिया का सबसे बड़ा प्लांट होगा.
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नए संयंत्र में पंखों और फिल्टर के 80 विशाल ब्लॉक होंगे जो हवा में से कार्बन डाई ऑक्साइड सोख लेंगे. इस कार्बन डाई ऑक्साइड की कार्बन स्टोरेज कंपनी कार्बफिक्स इस कार्बन डाई ऑक्साइड को पानी में मिला देगी और फिर उस पानी को धरती में छोड़ दिया जाएगा. वहां एक रसायनिक प्रक्रिया इसे चट्टान में बदल देगी. यह प्रक्रिया नए संयंत्र के पास ही मौजूद एक फैक्ट्री में की जाएगी. यह फैक्ट्री थर्मल ऊर्जा से चलती है.
और संयंत्रों की जरूरत
क्लाइमवर्क्स के सीईओ क्रिस्टोफ गेबाल्ड ने कहा कि इस संयंत्र के शुरू हो जाने के बाद उनकी कंपनी एक और बड़ा संयंत्र बनाना चाहती है जो हर साल 50 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड सोखने की क्षमता वाला होगा. कंपनी इस दशक के आखिर तक ऐसे कई संयंत्र बनाना चाहती है लेकिन यह उपलब्ध वित्त पर निर्भर करेगा.
‘मेमथ' के लिए अप्रैल में कंपनी ने 6.27 करोड़ डॉलर धन जुटाया था. क्लाइमवर्क्स दुनिया का सबसे महंगा ‘कार्बन रिमूवल क्रेडिट' भी बेचती है. इसकी कीमत लगभग 80 रुपये प्रति टन होती है. कंपनी के ग्राहकों में माइक्रोसॉफ्ट, आउडी और बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रूप जैसी कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं. गेबाल्ड कहते हैं, "कीमत लगातार बढ़ रही है और यह निवेश है जो हमें आगे बढ़ने के लिए चाहिए."
फिलहाल दुनिया में 18 ऐसे संयंत्र हैं जो ‘डायरेक्ट एयर कैप्चर' तकनीक के आधार पर काम कर रहे हैं. अमेरिकी तेल कंपनी ऑक्सिडेंटल भी 2024 तक ऐसा ही एक संयंत्र शुरू करने पर विचार कर रही है जो हर साल दस लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड सोखने की क्षमता वाला होगा.
संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल के मुताबिक आने वाले दशकों में पृथ्वी के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने देने से रोकने के लिए भविष्य में डीएसी जैसी महंगी तकनीकों की जरूरत होगी जो विशाल मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड को वातावरण से हटा सके. आइंडहोवेन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर हेलीन डी कॉनिक कहती हैं कि डीएसी को कार्बन डाई ऑक्साइड रहित ऊर्जा से ही संचालित किया जाना चाहिए तभी यह लाभदायक हो सकती है.
उन्होंने इस तकनीक को कार्बन हाउस गैसों के उत्सर्जन कम करने के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "जिसकी फौरी तौर पर जरूरत है, उससे बचने के तौर पर अगर इस तकनीक को प्रयोग किया गया तो यह उलटी भी पड़ सकती है."
वीके/सीके (रॉयटर्स)