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कोयला-विरोध और ऊर्जा संकट के बीच फंसा है जर्मनी

३ जनवरी २०२३

जर्मनी समेत कई यूरोपीय देश ऊर्जा संकट के दौर से गुजर रहे हैं. कंपनियों पर कोयला खनन बढ़ाने की जिम्मेदारी आ गई है तो जलवायु सुरक्षा से जुड़े कार्यकर्ता इसका हर कीमत पर विरोध कर रहे हैं.

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जर्मनी के लुएत्सेराथ में गांव को खाली कराए जाने की पुलिस की कोशिशें अब तक नाकाम
जर्मनी के लुएत्सेराथ में गांव को खाली कराए जाने की पुलिस की कोशिशें अब तक नाकामतस्वीर: Henning Kaiser/dpa/picture alliance

जर्मनी के लुत्सेराथ गांव को कोयले की खुदाई के लिए खाली कराने की योजना है. मामला सालों तक अदालतों में रहा. अदालत ने बिजली कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया. गांव को खाली करा लिया गया. लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने गांव पर कब्जा कर लिया है और गांव को खत्म किए जाने का विरोध कर रहे हैं. अदालत के फैसले के बाद पास में मौजूद ओपन-पिट खदान के विस्तार के लिए गांव को खाली कराने के लिए पुलिस पहुंची है और कोयला खनन के विरोधियों का उनके साथ विवाद चल रहा है. लुत्सेराथ गांव जर्मनी के पश्चिम में स्थित नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया प्रांत के ग्रामीण इलाके में बसा है.

जलवायु परिवर्तन की चिंता करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता साफ कर चुके हैं कि वे कोयला निकालने और कोयला जलाए जाने के खिलाफ हैं और इसीलिए इस विस्तार का विरोध करेंगे. सोमवार को उन्होंने पुलिस पर पटाखे फेंके, फिर बोतलें और पत्थर भी. बाद में स्थिति तब शांत हुई जब पुलिस पीछे हटी.

क्यों ब्लॉक किया गांव को जाने वाला रास्ता

इसके पहले प्रदर्शनकर्ताओं ने कंस्ट्रक्शन वर्करों को गांव पहुंचने से रोकने के लिए जलते हुए बैरिकेड लगाए थे और खुद उसके पीछे खड़े हो गए थे. पुलिस ने तभी उन्हें बता दिया था कि सोमवार को गांव को जाने वाली सड़क को खाली करा देंगे ताकि कर्मचारी वहां पहुंच सकें. यह सब तब हो रहा है कि जबकि गांव की जमीन और वहां बने घरों की मालिक आरडब्ल्यूई नाम की बिजली कंपनी है जिसकी यहां पहले से ही कोयला खदान है.

असल में एक्टिविस्ट इस गांव में करीब दो साल से पहुंचे हुए हैं. इस गांव का भविष्य और देश में कोयला जलाने पर रोक की बहस आपस में जुड़े हुए हैं. ऊर्जा के कुछ सबसे बड़े प्रदूषक स्रोतों में गिने जाने वाला कोयला अगर जलता रहे तो जर्मनी कार्बन उत्सर्जन घटाने के अपने पेरिस समझौते के लक्ष्य पूरे नहीं कर पाएगा.

हामबाखर जंगल वाला मॉडल यहां भी

जर्मनी में इस जगह के पास ही स्थित हामबाखर जंगल को साफ कराए जाने का भी खूब विरोध हुआ था. लुत्सेराथ इनीशिएटिव नाम के समूह ने वहां भी यही सब तरीके आजमाए थे. कई एक्टिविस्ट वहां लंबे समय तक पेड़ों पर ही रहे थे लेकिन 2019 में पुलिस की एक भारी भरकम और महंगी कार्रवाई में उसे खाली करा लिया गया था. इस कार्रवाई में कुल 5 करोड़ यूरो लगे जो कि जर्मनी के इतिहास में किसी पुलिस ऑपरेशन में हुआ सबसे बड़ा खर्च है.

लुत्सेराथ में गांव को हटाकर वहां जमीन के नीचे से कोयला निकालने की अनुमति है लेकिन जंगल को नष्ट नहीं करने पर सहमति बन गई थी. जर्मनी में भूरे कोयले या लिग्नाइट का उत्पादन बंद हो रहा था तभी ऊर्जा संकट आ गया. तभी इस गांव को उजाड़ कर यहां दबे भूरे कोयले को निकालने की योजना बनी थी. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक लिग्नाइट कोयले की खुदाई के लिए 300 से ज्यादा जर्मन गांव उजाड़े जा चुके हैं. इसकी वजह से करीब 120,000 लोग विस्थापित हुए हैं.

लास्ट जेनरेशन एलायंस नाम के समूह से जुड़े एक एक्टिविस्ट ने तो अपना बांया हाथ ही सड़क पर चिपका दिया
लास्ट जेनरेशन एलायंस नाम के समूह से जुड़े एक एक्टिविस्ट ने तो अपना बांया हाथ ही सड़क पर चिपका दियातस्वीर: Henning Kaiser/dpa/picture alliance

जर्मन स्टाइल 'चिपको-आंदोलन'

कोयला खनन का विरोध कर रही लुत्सेराथ लेब्ट नामक समूह की प्रवक्ता यूलिया रीडेल ने कहा, "पुलिस ने आज घोषणा कर दी है कि वे उन बैरिकेडों को हटा देंगे जो हमने गांव को सुरक्षित रखने के लिए खड़े किए हैं." लास्ट जेनरेशन एलायंस नाम के समूह से जुड़े एक एक्टिविस्ट ने तो अपना बांया हाथ ही सड़क पर चिपका दिया. इस समूह के लोग यह तरीका कुछ और विरोध प्रदर्शनों में भी आजमा चुके हैं.

पुलिस के एक प्रवक्ता का कहना है कि कम से कम गांव को जाने वाली सड़क को साफ कराया ही जाएगा ताकि एनर्जी कंपनी आरडब्ल्यूई निर्माण के लिए जरूरी अपनी मशीनें वहां पहुंचा सके. योजना के अनुसार, जनवरी के मध्य तक गांव को खाली कराया जाना है. इसका विरोध करने वाले प्रदर्शनकर्ता उसके पहले 10 जनवरी तक अपने समर्थकों का वहां पहुंचने के लिए आह्नान कर रहे हैं.

वहीं, बिजली कंपनी आरडब्ल्यूई के अनुसार, लुत्सेराथ को जाने वाले तीन और देहाती रास्ते पूरी तरह से बंद हैं. कंपनी ने कहा है कि गांव के निवासियों को पहले ही दूसरी जगहों पर बसाया जा चुका है. कंपनी इन जाड़ों में इस जमीन का इस्तेमाल करना चाहती है ताकि जर्मनी में लगातार बड़े होते ऊर्जा संकट से निपटने में मदद मिल सके.

आरपी/एमजे (डीपीए, एएफपी)