दुनिया भर में दबाव में है नागरिक समाज
११ अप्रैल २०२२नागरिक समाज में जुड़ाव कई रूप ले सकता है- जैसे, पर्यावरणीय सक्रियता, लैंगिक समानता के लिए संघर्ष, स्वदेशी समूहों का सेना में शामिल होना इत्यादि. लोग बेहतर कामकाजी परिस्थितियों के लिए एकजुट होते हैं, अपने सेक्सुअल जीवन को स्वतंत्र रूप से जीना चाहते हैं, विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न से अपना बचाव करते हैं....और भी बहुत कुछ.
कभी-कभी सरकारों द्वारा इन चीजों का स्वागत किया जाता है. जैसे कि जब नागरिक शरणार्थियों की देखभाल के लिए राज्य की मदद करते हैं, जैसा कि जर्मन यूक्रेन से भागे लाखों लोगों की मदद करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन कई अन्य ऐसा नहीं कर रहे हैं.
इस प्रभाव को दुनिया भर में लोग महसूस कर रहे हैं. जर्मनी स्थित गैर-सरकारी संगठन ब्रोट फुर डी वेल्ट (ब्रेड फॉर द वर्ल्ड) में ह्यूमन राइट्स एंड पीस यूनिट की प्रमुख सिल्के फाइफर कुछ चौंकाने वाले आंकड़ों के साथ डीडब्ल्यू को बताते हैं, "दुनिया की आबादी में केवल 3 फीसद लोग ही भाग्यशाली हैं जो उन देशों में रहते हैं जहां नागरिक समाज के लिए स्थितियां अनुकूल हैं.”
‘खुले' देशों में सिर्फ 24 करोड़ लोग
दुनिया में लगभग 8 अरब लोगों में से नागरिक समाज के लिए खुले माने जाने वाले देशों में सिर्फ दो अरब चालीस करोड़ लोग ही रहते हैं. दूसरी ओर अधिकतर लोग उन देशों में रहते हैं जहां सरकार की आलोचना करने वालों को प्रताड़ित किया जाता है, सताया जाता है और हिरासत में लिया जाता है और जहां उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया जाता है.
ये आंकड़े नवीनतम "सिविल सोसाइटी एटलस” से लिए गए हैं, जिन्हें ब्रोट फु डी वेल्ट अब पांचवीं बार जारी कर रहा है. यह हाल ही में बर्टेल्समैन ट्रांसफॉर्मेशन इंडेक्स और एमनेस्टी इंटरनेशनल की वार्षिक रिपोर्ट में बताई गई प्रवृत्तियों की पुष्टि करता है- यानी दुनिया भर में लोकतंत्र कमजोर हो रहा है, कई देशों में मानव और नागरिक अधिकार दबाव में आ रहे हैं.
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सिविल सोसाइटी एटलस का एक अनिवार्य घटक CIVICUS मॉनिटर है. गैर-सरकारी संगठन CIVICUS का मुख्यालय दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में है और यह विश्व स्तर पर भागीदार संगठनों के साथ-साथ सार्वजनिक स्रोतों की रिपोर्टों का लगातार मूल्यांकन करता है. इसके आंकड़ों के आधार पर, विभिन्न देशों को ‘'खुले' से लेकर ‘बंद' तक 5 श्रेणियों में बांटा गया है. उनकी पिछली रिपोर्ट की तुलना में, केवल एक देश में सुधार हुआ है. यह देश है मंगोलिया, जिसकी स्थिति ‘रिस्ट्रिक्टेड' श्रेणी से ‘इम्पेयर्ड' श्रेणी में अपग्रेड हुई है.
यूरोप को धक्का
इसी दौरान 14 देशों की रैंकिंग नीचे चली गई है, जिसमें दो यूरोपीय संघ के सदस्य देश भी शामिल हैं. ये देश हैं चेक गणराज्य और बेल्जियम जो ‘ओपेन' से ‘इम्पेयर्ड' श्रेणी में पहुंच गए हैं. सिल्के फाइफर बताती हैं, "बेल्जियम के मामले में साल 2020 के अंत में और 2021 की शुरुआत में शांतिपूर्ण विधानसभाओं पर हुई पुलिस की कार्रवाई के कारण ऐसा हुआ है.”
बेलारूस में, निकारागुआ की तरह CIVICUS मॉनिटर ने बताया कि स्थिति इतनी खराब हो गई है कि दोनों देशों को सबसे खराब श्रेणी में डाल दिया गया जिसे ‘बंद' श्रेणी कहते हैं. इस श्रेणी में उत्तर कोरिया, चीन और सऊदी अरब जैसे 23 अन्य देश शामिल हैं.
रूस की स्थिति दूसरी सबसे खराब श्रेणी वाली है जिसे ‘सप्प्रेस्ड' श्रेणी कहा गया है यानी जहां स्थिति पिछले कुछ समय से लगातार खराब होती जा रही है. सिल्के फाइफर कहती हैं, "यूक्रेन के खिलाफ जब से रूस का आक्रामक रवैया शुरू हुआ है, तब से यह स्थिति और खराब हुई है.”
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वो कहती हैं, "जो लोग आक्रमण का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं, उन्हें सामूहिक रूप से गिरफ्तार किया जाता है, मीडिया आउटलेट बंद कर दिए जाते हैं, कुछ चीजों को अब रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं है. मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर मुखर रहने वाले लोग अब विदेश जाने के लिए मजबूर हैं.”
उन्हीं आवाजों में से एक हैं एंजेलिना डेविडोवा. मार्च के अंत से ही, रूस की ये पत्रकार और नागरिक समाज विशेषज्ञ व पर्यावरण कार्यकर्ता बर्लिन में हैं. उन्होंने कई अन्य लोगों की तरह इस्तांबुल के रास्ते रूस छोड़ दिया. डेविडोवा ने हाल के वर्षों में नागरिक समाज द्वारा झेले जा रहे बढ़ते दबाव और कार्यकर्ताओं के दमन का वर्णन किया है.
डेविडोवा पिछले साल के अंत में देश के सबसे प्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन, मेमोरियल इंटरनेशनल के प्रतिबंध के कारण ‘भारी सदमे' की बात करती हैं क्योंकि यह सिर्फ एक संकेत था कि उनके काम को सरकार शत्रुतापूर्ण मानती है. मेमोरियल इंटरनेशनल सोवियत काल में स्थापित किया गया था और साल 2004 में इसके काम के लिए इसे वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
डेविडोवा कहती हैं कि इन बढ़ती कठिनाइयों के बावजूद, कई कार्यकर्ताओं ने देश में ही रहने का विकल्प चुना है. वह चाहती हैं कि पश्चिमी देश रूसी नागरिक समाज के साथ संवाद बनाए रखें और यह कभी न भूलें कि ‘रूस में ऐसे लोग भी हैं जो अलग तरह से सोचते हैं और नागरिक समाज की पहल महत्वपूर्ण हैं.'
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नेटवर्किंग और गलत सूचना
सिविल सोसाइटी एटलस में एक प्रमुख विषय डिजिटलीकरण है. मैकेनाटा फाउंडेशन के नागरिक समाज विशेषज्ञ रूपर्ट ग्राफ स्ट्रैचविट्ज के अनुसार, "पिछले तीस वर्षों में नागरिक समाज इतनी मजबूती से यदि विकसित हो पाए, तो बिना किसी 'द्वारपाल' के सूचना के प्रसार की संभावना भी इसका एक बड़ा कारण था.”
डिजिटल मीडिया की शक्ति इस बात से भी प्रदर्शित होती है कि सत्तारूढ़ दल किस हद तक अपनी तकनीकी क्षमता को उन्नत कर रहे हैं. लक्ष्य यह है कि डिजिटल स्पेस में मजबूत जगह बनाई जाए.
एटलस के अनुसार, एक विशेष रूप से कठोर उपाय का बहुत ही सामान्य तरीके से उपयोग किया जा रहा है, और यह उपाय है- इंटरनेट को पूरी तरह से बंद करना. उदाहरण के लिए, तंजानिया में कई सोशल मीडिया साइटों को साल 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बंद कर दिया गया था. भारत में भी जो खुद को ‘दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र' के रूप में कहलाना करना पसंद करता है, पिछले साल 100 से ज्यादा बार विभिन्न क्षेत्रों में सूचना के प्रवाह पर लगाम लगाने की कोशिश की गई.
डिजिटलीकरण के नकारात्मक पक्ष में गलत सूचना और अभद्र भाषा का प्रसार भी शामिल है. एटलस के अनुसार, यूक्रेन पर आक्रमण शुरू होने से पहले ही रूस बड़े पैमाने पर झूठ को हथियार बना रहा था. सूचना का अधिकार, हालांकि, एक मौलिक मानव अधिकार है और एक गतिशील नागरिक समाज के लिए एक आवश्यक शर्त है. सिल्के फाइफर बताती हैं, "अगर झूठी रिपोर्ट के प्रसार से इस अधिकार को कम किया जाता है, तो यह नागरिक समाज की भागीदारी के लिए एक महत्वपूर्ण आधार को नष्ट कर देता है.”